भारतीय हिंदी परिषद के 47वें अधिवेशन में संस्कृति पर्व के 32वें विशेषांक का लोकार्पण
नए भारत की यात्रा की दिशा दिखाता सनातन भारत का ज्योति पथ अंक
विशेष संवाददाता
झांसी। संस्कृति पर्व का विशेषांक अद्भुत है। संस्कृति पर्व का यह विशेषांक नए भारत की यात्रा की दिशा का संवाहक बनता दिख रहा है। श्रीराम के सनातन राष्ट्र से लेकर वर्तमान वैश्विक परिवेश में भारत की सकारात्मक भूमिका को यह अंक बहुत सलीके से रेखांकित करने वाला है। इसके लिए भारत संस्कृति न्यास के संस्थापक और पत्रिका के संपादक संजय तिवारी, कार्यकारी संपादक डॉ अर्चना तिवारी और उनकी संपादकीय परिषद निश्चय ही बधाई के पात्र हैं।
संस्कृति पर्व के लोकार्पण के अवसर पर उत्तर प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री योगेन्द्र उपाध्याय सहित अनेक विद्वानों ने उक्त बातें कहीं। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में पिछले दो दिनों से चल रहे अखिल भारतीय हिंदी परिषद के समापन समारोह में संस्कृति पर्व के इस विशेष अंक का भव्य लोकार्पण संपन्न हुआ।अखिल भारतीय हिंदी परिषद के इस अधिवेशन के संयोजक बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष, अधिष्ठाता कला संकाय प्रो मुन्ना तिवारी ने इस भव्य समारोह का संचालन किया।
अखिल भारतीय हिंदी परिषद का यह 47वाँ अधिवेशन है। संस्कृति पर्व का यह 33वाँ विशेषांक है जिसका लोकार्पण हुआ। माह अक्टूबर और नवंबर का यह संयुक्त अंक है जो कार्तिक मास की मंगल योजनाओं के साथ ही वर्तमान वैश्विक संदर्भ, महारानी अहिल्याबाई होलकर की 300 वीं जयंती, सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती, भारतीय संविधान के 75 वर्ष की मजबूती , भारत के विगत 10 वर्षों की प्रगति यात्रा , श्रीराम, बुंदेलखंड का साहित्य और वहां की रामकथा और राम लीलाओं के साथ अनेक गंभीर सामग्री प्रस्तुत कर रहा है।
इस भव्य समारोह में मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री योगेन्द्र उपाध्याय, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो मुकेश पाण्डेय, भारतीय हिंदी परिषद के सभापति प्रो पवन अग्रवाल, परिषद के प्रधानमंत्री प्रो योगेंद्र प्रताप सिंह प्रयाग केंद्रीय विश्वविद्यालय, मंडलायुक्त झांसी श्री विमल द्विवेदी,
प्रो सत्यकेतु ,दिल्ली, प्रो अवधेश शुक्ल वर्धा, प्रो उमेश वर्धा, प्रो वसुंधरा उपाध्याय उत्तराखंड, प्रो अशोक कुमार ज्योति काशी हिंदू विश्वविद्यालय, प्रो गोपेश्वर दत्त,दिल्ली विश्वविद्यालय, कुलसचिव बुंदेलखंड विश्वविद्यालय सहित भारी संख्या में विद्वान आचार्य, शोधार्थी , शिक्षक और छात्र उपस्थित थे।