भाजपा नेता अर्जुन सिंह पहुंचे सिलीगुड़ी, लेंगे गीता पाठ में भाग
आने लगे श्रद्धालु बढ़ने लगी अभी से ही भीड़, सुरक्षा चाक चौबंद
अशोक झा, सिलीगुड़ी: भारत सेवाश्रम संघ, बेलडांगा के प्रमुख कार्तिक महाराज जी के नेतृत्व में रविवार को सिलीगुड़ी में आयोजित हो रहे ‘लक्खो कंठे गीता पाठ’ कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आज रात भाजपा नेता सह पूर्व सांसद अर्जुन सिंह
बागडोगरा एयरपोर्ट पहुँचे। आयोजन समिति की ओर से दार्जिलिंग के सांसद राजू बिष्ट, निर्गुणानन्द जी महाराज, जितेन्द्र सरीन समेत सनातनी समाज के विभिन्न लोगों के साथ मिल कर आयोजन स्थल का पूर्वावलोकन किया। अर्जुन सिंह ने कहा कि
सभी सनातनियों से अनुरोध है कि वे इस कार्यक्रम में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल होकर सनातनी समाज को मजबूती प्रदान करें। इसके पहले पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सह भाजपा नेता दिलीप घोष पहुंच चुके है। गीता उपनिषदों का सार है। कुरुक्षेत्र के तर्ज पर कल सुबह 8 बजे शंखनाद के साथ गीता पाठ कार्यक्रम का शुभारंभ होगा। कहा कि महाभारत युद्ध के समय रणभूमि में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जो ज्ञान दिया था वह गीता में बताया गया है। गीता में ऐसी बहुत सी बातें हैं जो मनुष्य को जीवन की कई कठिनाइयों को आसान बनाती है। इतना ही नहीं गीता पढ़ने पर मनुष्य को बहुत सी नई जानकारियां भी मिलती है। साथ ही हर अध्याय के नियमित पाठ का अपना लाभ और महत्व है। भगवान शिव ने देवी पार्वती को गीता के पहले अध्याय के पाठ का महत्व जो बताया है वही यहां आपके लिए प्रस्तुत है। लेकिन गीता के पहले अध्याय के महत्व को जानने से पहले जान लीजिए श्रीमद्भगवद्गीता के प्रथम अध्याय की खास बातें। गीता के पहले अध्याय का नाम अर्जुन विषाद योग है। इस अध्याय में कुरुक्षेत्र के मैदान में उपस्थित बंधुओं और संबंधियों को सामने देखकर अर्जुन के मन में उठे विषाद और मनःस्थिति का वर्णन किया गया है, जिसे संजय धृतराष्ट्र को बताते हैं।एक समय पार्वती जी ने पूछा है महादेव जी किस ज्ञान के बल पर संसार के सब लोग आपको शिव कहकर पूजते हैं। मृगछाला ओढ़े और अपने सभी अंगों में शमशान की विभूति लगाएं, गले में सर्प और नर मुंडों की माला पहने हुए हो। इनमें तो कोई भी पवित्र नहीं, फिर आप किस ज्ञान से पवित्र माने जाते हैं? तब महादेव ने उत्तर दिया कि हे प्रिये सुनो मैं गीता ज्ञान को अपने हृदय में धारण करने से पवित्र माना जाता हूं। इस ज्ञान से मुझे बाहर के कर्म नहीं व्यापते। तब पार्वती जी ने कहा कि हे भगवान जिस गीता ज्ञान की आप ऐसी स्तुति करते हैं, उसके श्रवण करने से कोई कृतार्थ भी हुआ है? महादेव ने उत्तर देते हुए कहा कि इस ज्ञान को सुनकर बहुत से जीव कृतार्थ हुए हैं और आगे भी होंगे। मैं तुम्हें एक पुरातन कथा कहता हूं। तुम सुनो।एक समय पाताल लोक में शेषनाग की शय्या पर श्री नारायण जी नैन मूंदकर आनंद में मग्न थे। उस वक्त भगवान के चरण दबाते हुए लक्ष्मी जी ने पूछा हे प्रभू! निद्रा और आलस्य तो उन पुरुषों को व्यापता है जो जीव तामसी होते हैं, फिर आप तो तीनों गुणों से अतीत हो। आप तो वासुदेव हो, आप जो नेत्र मूंद रहे हों, इससे मुझके बड़ा आश्चर्य है। नारायण जी ने उत्तर देते हुए कहा हे लक्ष्मी! मुझको निद्रा आलस्य नहीं व्यापता, एक शब्द रूप जो भगवद्गीता है उसमें जो ज्ञान है उसके आकार रुप है, यह गीता शब्द रूप अवतार है, इस गीता में यह अंग है पांच अध्याय मेरे मुख है, दस अध्याय मेरी भुजा हैं, सोलहवां अध्याय मेरा हृदय और मन और मेरा उदर है, सत्रहवां अध्याय मेरी जंघा है, अठारहवां अध्याय मेरे चरण हैं। गीता श्लोक ही मेरी नाड़ियां हैं और जो गीता के अक्षर है वो मेरा रोम हैं। ऐसा मेरा शब्द रुपी जो गीता ज्ञान है उसी के अर्थ मैं हृदय में विचार करता हूं और बहुत आनंद प्राप्त होते हूं। लक्ष्मी जी बोलीं हे श्री नारायण जी ! जब श्री गीता जी का इतना ज्ञान है तो उसको सुनकर कोई जीव कृतार्थ भी हुआ है। सो मुझसे कहो। तब श्री नारायण ने कहा हे लक्ष्मी! गीता ज्ञान को सुनकर बहुत से जीव कृतार्थ हुए हैं, सो तुम श्रवण करो।तोते से पूछा की तू सवेरे क्या पढ़ता है। तोते ने कहा, मैं पिछले जन्म में विप्र का पुत्र था। मेरे पिता ने मुझे गीता के पहले अध्याय का पाठ सुनाया करते थे। एक दिन मैंने गुरु से कहा कि मुझको आपने क्या पढ़ाया है। तब गुरुजी ने मुझे शाप दिया कि तू तोता बन जा। इसके बाद से मैं तोता बन गया। एक दिन बहेलिया मुझे पकड़ ले आया और एक विप्र ने मुझे मोल ले लिया। वह विप्र भी अपने पुत्र को गीता का पाठ सिखाता था। तब मैंने भी यह पाठ सीख लिया। उसी दिन विप्र के घर में चोर घुस गए। उन्हें घन तो प्राप्त नहीं हुआ लेकिन, वह मेरा पिंजरा उठा ले आए। उनकी यह गणिका मित्र थी। वह मुझे उसके पास ले आए। सो में नित्य प्रात: गीताजी के पहले अध्याय का पाठ करत हूं। जिसे यह गणिका सुनती है। पर इस गणिका को समझ में नहीं आती। जो मैं पढ़ता हूं, वही, इस गणिका ने तेरे निमित्त दिया था। वह श्रीगीताजी के पहले अध्याय का फल था। तब विप्र ने कहा कि हे, तोते तू भी विप्र है मेरे आशीर्वाद से तेरा कल्याण हो। सो हे लक्ष्मी! विप्र के इतना कहते ही वह तोता भी मुक्ति को प्राप्त हो गया। तब गणिका ने बुरे कर्म छोड़, भले कर्म ग्रहण किए और नित्य स्नान करके श्री गीताजी के प्रथम अध्याय का पाठ करना शुरू कर दिया जिससे उसकी भी मुक्ति हो गई।