बिहार में शिव सर्किट बनाने की तैयारी हुई तेज
हरगौरी मंदिर ऐतिहासिक और पौराणिक धरोहरों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त
अशोक झा, पटना: बिहार सरकार के पर्यटन विभाग ने सूबे में शिव सर्किट बनाने की तैयारी तेज कर दी है। इस योजना के तहत राज्य के भगवान शिव से संबंधित प्रमुख पर्यटन स्थलों को विकसित करने और उन्हें सड़क मार्ग से आपस में जोड़ने की पहल की जा रही है। पर्यटन निदेशालय, पटना के निदेशक ने इस उद्देश्य के लिए संबंधित जिलों के जिलाधिकारी (डीएम) को पत्र लिखा है, जिसमें उन्हें शिव सर्किट के अंतर्गत आने वाले मंदिरों और स्थलों के विकास के लिए कदम उठाने को कहा गया है। इसमें किशनगंज जिले का ठाकुरगंज हर गौरी मंदिर का नाम नहीं है। जबकि इस मंदिर को बिहार का देवघर कहा जाता है। यहां का शिवलिंग महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। राज्य के मंत्री से संत्री तक यहां पूजा अर्चना कर चुके है। इस मंदिर ओर मूर्ति की विशेषताएं फिल्मी हस्तियों के भी ध्यान है। आखिर फिर क्यों इसको पर्यटक विकास के लिए क्यों नहीं चिन्हित किया गया है। जल्द ही इस मुद्दे को लेकर बिहार का सीमांचल गरमाने वाला है। बता दें की इस पत्र में उल्लेख किया गया है कि पर्यटन विभाग की ओर से राज्य में “विकास भी, विरासत भी” की संकल्पना के तहत भगवान शिव से संबंधित सभी प्रमुख स्थलों को चरणबद्ध तरीके से विकसित करने पर विचार किया जा रहा है। इस योजना के तहत ऐतिहासिक और पौराणिक धरोहरों के संरक्षण और उनके विकास के लिए कार्ययोजना तैयार की जा रही है, जिससे इन स्थानों को पर्यटन की दृष्टि से और अधिक आकर्षक बनाया जा सके। इस बात को राज्य सरकार के राजस्व मंत्री सह भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल भी जानते है। इस योजना के लिए पर्यटन विभाग ने पत्र में जिलों के डीएम से अनुरोध किया गया है कि वे अपने संबंधित क्षेत्रों में स्थित शिव मंदिरों और धरोहर स्थलों के विकास के लिए भूमि चिह्नित कर उसकी स्थिति, स्वामित्व और नजरी नक्शा के आधार पर विस्तृत प्रतिवेदन पर्यटन विभाग को उपलब्ध कराएं। यह कार्ययोजना शीघ्र क्रियान्वित करने के लिए डीएम को दिशा-निर्देश दिए गए हैं।बिहार के 12 जिलों में इन शिव मंदिर का होगा विकासवैशाली – हरिहरनाथ मंदिर, दरभंगा – कुशेश्वरनाथ शिव मंदिर, मधेपुरा – सिंघेश्वर महादेव मंदिर, कटिहार – गोरखनाथ शिव मंदिर, गया – कोचेश्वर शिव मंदिर (कोंच), पटना – खुसरूपुर में बैकटपुर धाम, पूर्वी चम्पारण – सोमेश्वरनाथ महादेव मंदिर
सीवान – सिसवन स्थित महेन्द्रनाथ शिव मंदिर, अररिया – कुर्साकांटा स्थित सुन्दरनाथ महादेव मंदिर, मुजफ्फरपुर – औराई प्रखंड स्थित भैरव स्थान शिव मंदिर, भागलपुर – सुल्तानगंज स्थित अजगैबीनाथ मंदिर और कहलगांव स्थित बाबा बटेश्वरनाथ मंदिर, मधुबनी – राजनगर प्रखंड में एकादश रुद्र मंदिर, रहिका प्रखंड में कपिलेश्वर स्थान शिव मंदिर और बाबूबरही प्रखंड में मदनेश्वर स्थान शिव मंदिर को चयनित किया है।
क्या है इस मंदिर का इतिहास : सिलीगुड़ी से मात्र 58 किलोमीटर दूर किशनगंज जिले के ठाकुरगंज में हरगौरी मंदिर का इतिहास बेहद रोचक है, जहां आस पास पांडवों के कई स्थल आज भी मौजूद हैं। यहीं 123 वर्ष पूर्व रविन्द्रनाथ ठाकुर के वंशजों ने हरगौरी मंदिर की स्थापना की थी। यह बिहार के अलावा बंगाल, असम, नेपाल और भूटान के श्रद्धालुओं के आस्था का केन्द्र है। सालाें भर इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ होती है पर सावन में इसकी छटा कुछ अलग ही निराली होती है। मंदिर के पुरोहित जयंत गांगुली के अनुसार ठाकुरगंज का पुराना नाम कनकपुर था, जिसे रविंद्र नाथ टैगोर के वंशज ज्योनिन्द्र मोहन ठाकुर ने खरीदी थी। उसके बाद इसका नाम ठाकुरगंज रखा गया।
कहते है कि इतिहास है कि 1897 में उनके परिवार द्वारा पूर्वोत्तर कोण में पाण्डव काल के भग्नावशेष की खुदाई क्रम में कई शिवलिंग मिले। इसमें एक जाे एक फुट काले पत्थर का था। शिवलिंग पर आधे हिस्से में भगवान शिव और आधे हिस्से में मां पार्वती अंकित है। इन मूर्तियों को कोलकोता लेकर टैगोर पैलेश में रखा गया। इसी बीच परिवार को स्वप्न आया कि इस शिवलिंग को जहां से लाया गया है वहां स्थापित करों। हरगौरी मंदिर और खुदाई में प्राप्त हरगौरी शिवलिंग: स्वप्न में निर्देश के बाद 1957 में हुई थी स्थापना: ठाकुर परिवार इसे कलकत्ता में स्थापित करना चाहते थे, लेकिन स्वप्न में निर्देश मिलने के बाद बांग्ला संवत 21 माघ 1957 को एक टीन के घर में ठाकुर परिवार द्वारा इसकी स्थापना यहां की गई। चार फरवरी 1901 से हरगौरी मंदिर में पूजा -अर्चना विधिवत रूप से शुरु हुई। इस बात की पुष्टि स्वर्गीय पंडित यशोधर झा द्वारा लिखित हर गौरी मंदिर नमक पुस्तक में भी वर्णित है। ठाकुर परिवार द्वारा नियुक्त पुरोहित भोलानाथ गांगुली के वंशज आज भी मंदिर में पूजा-अर्चना कराते आ रहे हैं, जिसे हरगौरी धाम के नाम से जाना जाता है। स्वर्गीय गणपत रामजी अग्रवाल, सुधीर लाहिड़ी, भूतपूर्व आपूर्ति निरीक्षक रूदानंद झा के प्रयास से इस मंदिर के भव्य रूप का सपना साकार हुआ। 2001 चार फरवरी को मंदिर के सौ वर्ष पूर्ण होने पर स्वर्गीय सुशील अग्रवाल ने स्वर्गीय निरंजन मोर के देखरेख में मंदिर का जीर्णोद्धार और शताब्दी समारोह कराया गया था।