सकारात्मक सोच से हासिल होती है जीवन में कामयाबी
स्वयं पर जीत है जरूरी
जीवन में कोई लक्ष्य ही न हो, तो ऐसी जिंदगी हालात के हवाले हो जाती है। काम छोटा हो या बड़ा उसे पूरा करने के लिए हमेशा सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए…
जीवन को सफल बनाने के लिए कई लोग तरह-तरह के संकल्प लेते हैं। जीवन का लक्ष्य तय होता है। प्रसिद्ध विचारक स्वेट मार्डेन ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि ऐसा व्यक्ति कठिनता से मिलता है, जो विश्वास के साथ यह कह सके कि जो कार्य मुझे करना चाहिए मैं उसे करूंगा, मैं उस कार्य को करता हूं, जो मैं कर सकता हूं, वह मुझे करना चाहिए। मैंने परमपिता परमेश्वर के सम्मुख प्रण लिया है कि मैं इस कार्य को अवश्य पूर्ण करूंगा। व्यक्ति इस आधार पर अपना संकल्प ले, तो उसमें जो आत्मविश्वास एवं दृढ़ता आएगी। इससे उसके संकल्प के पूरा होने में कोई संदेह नहीं रहेगा।
■ शांत एवं एकाग्र हो जाएं किसी भी संकल्प को लेने से पहले सबसे ज्यादा जरूरी है कि बिल्कुल शांत एवं एकाग्र हो जाएं। फिर अपनी तमाम शक्तियों या क्षमताओं तथा कमजोरियों का पूरा आकलन करें। इसमें अपनी रुचि को सर्वोच्च स्थान दें। ऐसा करने से आपको अपनी सीमाओं का पता चल जाएगा और आप अपनी हद में रहकर संकल्प ले सकेंगे। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो संकल्प अतिउत्साह या आवेग में लिया हुआ माना जाएगा, जिसका ज्वार बहुत जल्दी उतर जाता है। ऐसे में व्यक्ति का संकल्प भी धरा का धरा रह जाता है। इसका असर इतना विपरीत होता है कि व्यक्ति निराश एवं हताश हो जाता है, जिससे उसके दूसरे कार्य भी बिगड़ जाते हैं।
■ उकसावे में न आएं
कई लोगों को लगता है कि जिंदगी बहुत छोटी है। इसमें कई बड़े काम करने हैं। यह सही है कि जीवन बहुत छोटा है, लेकिन यह सोच कतई उचित नहीं है कि आप एक साथ कई संकल्प ले लें या कामों की लाइन लगा दें। मतलब यही है कि आप कई संकल्प एक साथ न लें। ऐसा करना अपनी क्षमता को बहुत ज्यादा आंकने से हो सकता है। अक्सर देखा गया है कि देखा-देखी या किसी के उकसावे में आकर
भी संकल्प ले लिए जाते हैं। ऐसे संकल्पों की कोई ठोस जमीन नहीं होती। नकल करने या किसी के कहने में आकर संकल्प बेहतर है अपनी रुचि, इच्छा तथा तैयारी हो तभी उसे लें।
■ लक्ष्य का दूसरा नाम संकल्प
कई लोगों का जीवन बिना उद्देश्य या लक्ष्य के होता है। उद्देश्य या लक्ष्य का ही दूसरा नाम संकल्प है। ऐसे लोग सिर्फ समय के साथ जिए चले जाते हैं और अपनी सफलता या असफलता ईश्वर के भरोसे छोड़ देते हैं। इस प्रकार के लोग कर्मशील न होकर अकर्मण्य या आलसी हो जाते हैं। उन्हें अपनी क्षमताओं का भान ही नहीं रहता, जबकि मानव विधाता की सबसे सुंदर कृति है, जिसने मानव में अकूत क्षमताएं एवं संभावनाएं भरकर धरती पर भेजा है। जब जीवन में कोई संकल्प ही न हो, तो ऐसी जिंदगी हालात के हवाले हो जाती है। काम छोटा हो या बड़ा उसे पूरा करने के लिए सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए।
स्वयं पर जीत है जरूरी
व्यक्ति के सबसे बड़े शत्रुओं में से एक डर भी है। इसका उसके आत्मविश्वास तथा छता पर भारी विपरीत असर पड़ता है। डरपोक व्यक्ति अवसर अपनी मंजिल से दूर रह जाता है। मंजिल पर पहुंचने के लिए आदमी को सबसे पहले स्वयं को जीतना पड़ता है। उसे अपने दिलोदिमाग से डर को निकाल देना होता है। किसी संकल्प को पूरा करने में शुरू में असफलता हाथ लग सकती है। कमजोर इच्छाशक्ति वाले या डरपोक लोग फिर इस भय से कदम नहीं बढ़ाते कि फिर कहीं नाकामयाबी हाथ न लग जाए।