महाशिवरात्रि : चेतना व जागरूकता से भरी एक रात! ग्रहों की शुभ युति तथा शिवयोग के सर्वार्थ सिद्धि योग
महाशिवरात्रि : चेतना व जागरूकता से भरी एक रात! ग्रहों की शुभ युति तथा शिवयोग के सर्वार्थ सिद्धि योग
सिलीगुड़ी: महाशिवरात्रि का महापर्व भगवान शंकर और माता पार्वती के विवाह के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार हर साल महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन मास की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष महाशिवरात्रि पर्व आठ मार्च को मनाया जाएगा। महाशिवरात्रि का पर्व ग्रहों की शुभ युति तथा शिवयोग के सर्वार्थ सिद्धि योग में मनेगा। इस बार की महाशिवरात्रि बेहद खास होगी। इस अवसर पर सिलीगुड़ी चंदमुनि, जांगलीबाबा मंदिर, बिहार के ठाकुरगंज स्थित हरगौरी मंदिर में पूजा करने वालों की भीड़ उमड़ेगी। शिव की बारात निकलेगी। इसमें कोई व्यवधान ना हो इसके लिए सभी प्रकार की तैयारी की जा रही है। भारत -नेपाल बंगाल और बांग्लादेश की सीमावर्ती किशनगंज जिले के ठाकुरगंज में स्थापित है हरगौरी मंदिर। यहां का शिवलिंग स्वयंभू है। जिसके एक और मां पार्वती की आकृति इसकी महत्ता बढ़ाती है। रविंद्र नाथ टैगोर से जुड़े होने के कारण इसे बिहार का देवघर माना जाता है। इन दिनों 100 वर्षों के बाद देखा जा रहा है कि स्वयंभू शिवलिंग का क्षरण हो रहा है। इसका प्रमुख कारण लगातार हजारों की संख्या में आने वाले श्रद्धालु और पूजा के दौरान जलाभिषेक के साथ कई प्रकार से बाबा भोलेनाथ का जलाभिषेक करते है। कहते है की महाभारत काल में इस शिवलिंग की पूजा पांडव और कुंती के द्वारा किया गया था। इस बात को इसलिए भी बल मिलता है क्योंकि यहां से मात्र 7 किलोमीटर दूर नेपाल के कीचक वध में भीम ने कीचक का वध किया था। जिसका प्रमाण आज भी वहां विद्यमान है। पुरातत्व विभाग को चाहिए कि इस अलौकिक शिवलिंग का हर प्रकार के संरक्षण करें। उन्होंने कहा कि आज महाशिवरात्रि के अवसर पर शिव भक्तों द्वारा अपने आराध्य देव के संरक्षण का विचार सराहनीय है। उन्होंने कहा कि भगवान भोलेनाथ के भक्तों के लिए महाशिवरात्रि बहुत ही विशेष पर्व है। महादेव के भक्त पूरे वर्ष महाशिवरात्रि का इंतजार करते हैं। इस खास दिन माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ था। साथ ही यह भी कहा जाता है की भगवान शंकर ने इसी दिन साकार रूप लिया था। भगवान भोलेनाथ औघड़ दानी भी कहे जाते हैं। पंचांग के अनुसार, महाशिवरात्रि पर इस प्रकार के योग संयोग व ग्रह स्थिति 300 साल में एक या दो बार ही बनती है। इस बार महा शिवरात्रि आठ मार्च को मनाई जाएगी। ग्रहों की शुभ युति तथा शिवयोग के सर्वार्थ सिद्धि योग में महा शिवरात्रि का महापर्व मनाया जाएगा। इस दुर्लभ योग में भगवान शिव की पूजा शीघ्र फल प्रदान करने वाली मानी गई है। शुक्रवार के दिन श्रवण नक्षत्र उपरांत धनिष्ठा नक्षत्र, शिवयोग, गर करण तथा मकर, कुंभ राशि के चंद्रमा की साक्षी रहेगी। कुंभ राशि में सूर्य, शनि, बुध का युति संबंध रहेगा। इस प्रकार के योग तीन शताब्दी में एक या दो बार बनते हैं। जब नक्षत्र योग और ग्रहों की स्थिति केंद्र त्रिकोण से संबंध रखती है।
सत्यं शिवं सुंदरम् के प्रतीक शिव और उनकी रात्रि, महाशिवरात्रि जागरण की रात्रि है, जो चेतना और जागरूकता से भरी है। महाशिवरात्रि आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधकों के लिए बहुत महत्व रखती है। यह उनके लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है, जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं और संसार की महत्वाकांक्षाओं में मग्न हैं। पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव के रूप में मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मग्न लोग महाशिवरात्रि को, शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं। परंतु, साधकों के लिए यह वह दिन है, जिस दिन वे कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे। वे एक पर्वत की भांति स्थिर व निश्चल हो गए थे। यौगिक परंपरा में शिव को किसी देवता की तरह नहीं पूजा जाता। उन्हें आदि गुरु माना जाता है, पहले गुरु, जिनसे ज्ञान उपजा। ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के पश्चात, एक दिन वे पूर्ण रूप से स्थिर हो गए। वही दिन महाशिवरात्रि का था। उनके भीतर की सारी गतिविधियां शांत हुईं और वे पूरी तरह से स्थिर हुए, इसलिए साधक महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात्रि के रूप में मनाते हैं। इसके पीछे की कथाओं को छोड़ दें, तो यौगिक परंपराओं में इस दिन का विशेष महत्व इसलिए भी है, क्योंकि इसमें आध्यात्मिक साधक के लिए बहुत-सी संभावनाएं मौजूद होती हैं। आधुनिक विज्ञान अनेक चरणों से होते हुए, आज उस बिंदु पर आ गया है, जहां उन्होंने आपको प्रमाण दे दिया है कि आप जिसे भी जीवन के रूप में जानते हैं, पदार्थ और अस्तित्व के रूप में जानते हैं, जिसे आप ब्रह्मांड और तारामंडल के रूप में जानते हैं; वह सब केवल एक ऊर्जा है, जो स्वयं को लाखों-करोड़ों रूपों में प्रकट करती है। यह वैज्ञानिक तथ्य प्रत्येक योगी के लिए एक अनुभव से उपजा सत्य है। ‘योगी’ शब्द से तात्पर्य उस व्यक्ति से है, जिसने अस्तित्व की एकात्मकता को जान लिया है। जब मैं कहता हूं, ‘योग’ तो मैं किसी विशेष अभ्यास या तंत्र की बात नहीं कर रहा होता हूं। इस असीम विस्तार को तथा अस्तित्व में एकात्म भाव को जानने की सारी चाह, योग है। महाशिवरात्रि की रात, व्यक्ति को इसी अनुभव को पाने का अवसर देती है। शिवरात्रि माह का सबसे अंधकारपूर्ण दिवस होता है। प्रत्येक माह शिवरात्रि का उत्सव तथा महाशिवरात्रि का उत्सव मनाना ऐसा लगता है मानो हम अंधकार का उत्सव मना रहे हों। कोई तर्कशील मन अंधकार को नकारते हुए, प्रकाश को सहज भाव से चुनना चाहेगा। परंतु शिव का शाब्दिक अर्थ ही यही है, ‘जो नहीं है’। ‘जो है’, वह अस्तित्व और सृजन है। ‘जो नहीं है’, वह शिव है। ‘जो नहीं है’, उसका अर्थ है, अगर आप अपनी आंखें खोल कर आसपास देखें और आपके पास सूक्ष्म दृष्टि है तो आप बहुत सारी रचना देख सकेंगे। अगर आपकी दृष्टि केवल विशाल वस्तुओं पर जाती है, तो आप देखेंगे कि विशालतम शून्य ही, अस्तित्व की सबसे बड़ी उपस्थिति है। कुछ ऐसे बिंदु, जिन्हें हम आकाशगंगा कहते हैं, वे तो दिखाई देते हैं, परंतु उन्हें थामे रखने वाली विशाल शून्यता सभी लोगों को दिखाई नहीं देती। इस विस्तार, इस असीम रिक्तता को ही शिव कहा जाता है। वर्तमान में, आधुनिक विज्ञान ने भी साबित कर दिया है कि सब कुछ शून्य से ही उपजा है और शून्य में ही विलीन हो जाता है। इसी संदर्भ में शिव यानी विशाल रिक्तता या शून्यता को ही महादेव के रूप में जाना जाता है।सामान्यत जब लोग अपना कल्याण चाहते हैं, तो हम उस ‘दिव्यता’ को प्रकाश के रूप में दर्शाते हैं। जब लोग अपने कल्याण से ऊपर उठ कर, अपने जीवन से परे जाने पर, विलीन होने पर ध्यान देते हैं तथा उनकी उपासना और साधना का उद्देश्य विलयन ही हो, तो हम सदा उनके लिए दिव्यता को अंधकार के रूप में परिभाषित करते हैं। यह एक ऐसा दिन है, जब प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद करती है। पूरी रात मनाए जाने वाले इस उत्सव में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि ऊर्जाओं के प्राकृतिक प्रवाह को उमड़ने का पूरा अवसर मिले।महाशिवरात्रि एक अवसर और संभावना है, जब आप स्वयं को, हर मनुष्य के भीतर बसी असीम रिक्तता के अनुभव से जोड़ सकते हैं, जो कि सारे सृजन का स्रोत है। एक ओर शिव संहारक कहलाते हैं और दूसरी ओर वे सबसे अधिक करुणामय भी हैं। वे बहुत ही उदार दाता हैं। यौगिक गाथाओं में वे अनेक स्थानों पर महाकरुणामय के रूप में सामने आते हैं। उनकी करुणा के रूप विलक्षण और अद्भुत रहे हैं। इस प्रकार महाशिवरात्रि कुछ ग्रहण करने के लिए भी एक विशेष रात्रि है। ऐसी हमारी इच्छा होनी चाहिए कि हम इस रात में कम-से-कम एक क्षण के लिए उस असीम विस्तार का अनुभव करें, जिसे हम शिव कहते हैं। यह केवल एक नींद से जागते रहने की रात भर न रह जाए। यह आपके लिए जागरण की रात्रि होनी चाहिए, चेतना व जागरूकता से भरी एक रात! रिपोर्ट अशोक झा