पौराणिक दुर्ग “कालिंजर”चंदेल कालीन जल प्रबंधन की अद्भुद मिशाल

पौराणिक दुर्ग "कालिंजर"चंदेल कालीन जल प्रबंधन की अद्भुद मिशाल

यूपी में बुन्देलखंड के बांदा जिले का ऐतिहासिक और पौराणिक दुर्ग “कालिंजर”चंदेल कालीन जल प्रबंधन की अद्भुद मिशाल है। अपने देश का यह एक ऐसा दुर्ग है ! जहां जल स्रोतों का विपुल भंडार है। इस इलाके में कई बार भयंकर सूखा पड़ा। पूरे इलाके के ताल-तलैया,कुअा-बावडी,सब सूख गये ! परन्तु कालिंजर दुर्ग मे पधारे भगवान नीलकंठ मंदिर के ठीक ऊपर दुर्गम पहाड मे प्रकृति प्रदत्त स्वर्गारोहण कुण्ड का पानी कभी कम नहीं हुआ। सतत प्रवाहित इस विलच्छण कुण्ड की अविरल जलधारा हमेशा गतिमान बनी रही। यह जलधारा किस नदी,तालाब,पोखर,आदि मे जाकर मिलती है ? यह रहस्य आज तक कोई जान नहीं पाया। कोई कहता है इस कुण्ड का पानी पहाड के अंदर प्राकृतिक सुरंग के रास्ते कोटतीरथ तालाब, और मृगधारा मे जाकर विलीन हो जाता है ! तो कोई कहता है कि इस कुण्ड की जलधारा दुर्ग के दच्छिणी हिस्से मे स्थित पाताल गंगा मे मिल जाती है।

कोई नहीं जानता स्वर्गारोहण कुण्ड का राज
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कालिंजर दुर्ग के नीलकंठ मंदिर मे स्थापित अद्भुद शिवलिंग और इसके ऊपर पहाड के वच्छस्थल मे निर्मित प्रकृति प्रदत्त स्वर्गारोहण कुण्ड का राज बेहद गहरा है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले जिस कालकूट का पान किया था ! उसका प्रभाव यहां दिखाई देता है। स्वर्गारोहण कुण्ड से निकल कर कठोर पाषाणों को चीरती एक पतली जलधारा यहां मंथर गति से शिवलिंग पर हमेशा प्रवाहित होती रहती है। प्रकृति की इस कारीगरी को यहां आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक अपलक निहारते रह जाते हैं। ऐसा अनोखा दृश्य जो मानव निर्मित नही, प्रकृति निर्मित है !शायद ही कहीं देखने को मिले?

अथाह जलराशि का स्वामी है कालिंजर दुर्ग
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कालिंजर और उसके आस-पास ग्राम्यांचल मे बसे इलाके के बडे-बुजुर्ग जगनंदन,हीरा सिंह,पूर्व प्रधान विपिन बिहारी,दादूराम,मइयादीन,सुरेश चन्द्र, जगमोहन सिंह,पूर्व ब्लाक प्रमुख नरैनी रुद्रप्रताप सिंह, पूर्व प्रधान रामनारायन पांडेय,आदि लोग बताते हैं कि कालिंजर दुर्ग में कोट तीरथ,मृगधारा, बुड्ढी-बुड्ढा तालाब,सुरसरि गंगा और पातालगंगा आदि करीब एक दर्जन जलाशय अथाह जलराशि के स्वामी हैं। इनमे हमेशा लबालब पानी रहता है।
नीलकंठेश्वर मंदिर के गर्भगृह मे पूरब दिशा की तरफ प्रकृति ने एक ऐसी गुफा का निर्माण किया है, जो किसी को साधारणतया दिखाई नहीं देती। शुरु मे यह गुफा काफी संकरी है। यहां लेटकर आगे जाया जा सकता है।करीब 10मीटर आगे जाने के बाद गुफा काफी चौडी और एक कमरेनुमा हाल मे परिवर्तित हो जाती है। यहां भी झरने के रुप मे मंदिर के ठीक पीछे की तरफ पहाड़ काटकर पानी का कुंड बनाया गया है। माना जाता है कि इस गुफा का इस्तेमाल चन्देल राजा आपातकाल मे करते थे। ताकि युद्ध की स्थिति मे दुश्मन राजाओं से बचा जा सके। इस प्राचीनतम किले में मौजूद खजाने का रहस्य भी इसी गुफा में माना जाता है। लेकिन आज तक कोई इसका पता नहीं लगा सका है।

हमेशा अजेय रहा कालिंजर दुर्ग
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बुन्देलखंड का कालिंजर दुर्ग चंदेल राजाओं के कुशल प्रबंधन की वजह से हमेशा अजेय रहा। कोई भी राजा अथवा विदेशी आक्रान्ता इसे जीत नहीं पाया। इतिहास कारों के मुताबिक कालिंजर दुर्ग मे कब्जा करने को लेकर 100 से ज्यादा युद्ध लडे गये। किन्तु कोई सफल नहीं हुआ। भूख-प्यास से बेहाल होकर दुश्मन की फौजों को हमेशा अपने पैर पीछे खींचने पडे। दूसरी तरफ उम्दा जल प्रबंधन और भरपूर रसद सामग्री की उपलब्धता से चंदेल सैनिक हमेशा दुश्मन पर भारी पडे। विदेशी आक्रान्ता शेरशाह सूरी को कालिंजर दुर्ग जीतने की चाह मे अपने प्राण गंवाने पडे थे।

 

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