सीएम ममता बनर्जी को एकला चलो के कारण होगा नुकसान या इसके पीछे कोई और कारण ?
कोलकोता: एग्जिट पोल की माने तो सीएम ममता बनर्जी को कांग्रेस और वाम मोर्चे से अलग चुनाव लडने का नुकसान स्पष्ट दिख रहा है। पार्टी वैसे तो इंडिया गठबंधन का हिस्सा है मगर वह कांग्रेस या वाम दलों के साथ सीटों का तालमेल नहीं कर पाई थी। यही कारण है कि पार्टी 11 से 14 सीटों के बीच सिमटती दिख रही है। ऐसा क्यों होता नजर आ रहा है? क्या मुस्लिम वोटर्स ने ममता दीदी को धोखा दे दिया ? तो फिर बीजेपी को किस तबके के वोट सबसे ज्यादा मिले ? और अगर बीजेपी को ज्यादा वोट मिले तो क्यों? आइए इन तमाम सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं?
मुस्लिम वोट कहां गए?: बंगाल में करीब 20 लोकसभा सीटें हैं जहां हिंदू आबादी 35 से 50 प्रतिशत तक है। ये मुर्शिदाबाद जिले में बरहामपुर, मुर्शिदाबाद और जंगीपुर और उत्तर 24 परगना में बशीरहाट जैसी लोकसभा सीटों के अलावा भी हैं।इन सीटों पर मुस्लिम आबादी बहुमत के निशान से काफी ऊपर है। जिन मुस्लिम मतदाताओं ने पहले कांग्रेस और वामपंथियों का समर्थन किया था, वे 2016 के बाद से अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी, भाजपा के खिलाफ लगातार तृणमूल कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस-वाम गठबंधन (गठबंधन) के मजबूत होने के बाद क्या टीएमसी के वोट में कमी आई है। एग्जिट पोल की माने तो टीएमसी को नुकसान हुआ है पर ज्यादा नहीं। पिछली बार 68 परसेंट मुस्लिम वोट टीएमसी को मिले थे जिसमें इस बार 2 प्रतिशत की कमी दिख रही है पर इंडिया गठबंधन को एक परसेंट की बढोतरी और अन्य को 2 परसेंट की बढ़ोतरी से पता चल रहा है कि मुस्लिम वोटों का बिखराव हुआ है. मतलब साफ है कि कांग्रेस और फुरफुरा शरीफ वाले मौलवी अब्बास सिद्दीकी के इंडियन सेक्युलर फ्रंट ने कुछ वोट काटे हैं। क्योंकि लेफ्ट फ्रंट को भी 2 परसेंट वोट पिछली बार से कम मिलते दिख रहे हैं। हालांकि फिर भी लेफ्ट फ्रंट 8 परसेंट वोट पाने में सफल हुआ है। सबसे आश्चर्यजनक तो ये लग रहा है बीजेपी को पिछली बार के चुनावों में 5 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले थे जो इस बार 6 प्रतिशत हो गया है। इस तरह देखा जाए तो ममता बनर्जी इंडिया गठबंधन के साथ चुनाव लड़कर कुछ परसेंट वोट सुधार सकती थीं।
टीएमसी का सीएए-यूसीसी विरोध, फिर संदेशखाली कांड में भूमिका से हिंदू वोट हुए ध्रुवीकृत: एग्जिट पोल की माने तो बीजेपी का वोट शेयर गांव, शहर, अगड़ा-पिछड़ा और शिक्षित-अशिक्षित सभी लोगों में बढ़ा है। अनुसूचित जातियों के कुल वोट का 57 प्रतिशत वोट मिला है जो पिछली बार से करीब 5 प्रतिशत अधिक दिख रहा है।इसी तरह एसटी (52 प्रतिशत) पिछली बार के मुकाबले 4 प्रतिशत अधिक, ओबीसी ( 70 प्रतिशत) पिछली बार से 5 परसेंट अधिक, जनरल (73 प्रतिशत) पिछली बार के मुकाबले 11 प्रतिशत अधिक वोट मिलता दिखता रहा है। टीएमसी का केवल आदिवासी वोट ही पिछली बार के मुकाबले 2 प्रतिशत बढ़ता दिख रहा है। इसके अलावा सभी वोट जनरल ( 20 परसेंट) 10 परसेंट कम, ओबीसी (24) 4 प्रतिशत कम, एससी (34 प्रतिशत) 3 प्रतिशत कम हो रहा है। मतलब साफ है कि हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण बीजेपी की तरफ हुआ है। जिस तरह ममता बनर्जी ने सीएए को बंगाल में नहीं लागू करने की बात की। जिस तरह उन्होंने यूसीसी का विरोध किया वो उनके लिए महंगा पड़ता दिख रहा है।ममता बनर्जी ने एक रैली में बोलीं थीं कि पीएम एनआरसी और सीएए लागू करना चाहते हैं। उनका कहना है कि आप सभी बाहरी और घुसपैठिए हैं और आपको नागरिकता के लिए आवेदन करना चाहिए। अगर वह ऐसा कहते हैं तो मैं कहती हूं कि वह भी घुसपैठिए पीएम हैं और मैं भी घुसपैठिया सीएम हूं। किसी को भी नागरिकता के लिए आवेदन करने की जरूरत नहीं है। आपके पास मतदाता कार्ड और राशन कार्ड है, और इसलिए आप भारत के नागरिक हैं। इन मुद्दों के अलावा रही सही कसर संदेशखाली कांड ने पूरी कर दी। जिस तरह ममता बनर्जी और उनके शासन प्रशासन ने इस कांड के प्रमुख आरोपी टीएमसी नेता शाहजहां शेख को बचाने का काम किया, उसने पूरे प्रदेश में टीएमसी के खिलाफ माहौल बनाया। इस मुद्दे को और उभारने में जिस तरह बीजेपी ने लीडरशिप दिखाई, उसने इस पार्टी को टीएमसी के विकल्प के रूप में मजबूती से पेश किया। एग्जिट पोल यदि सही साबित होते हैं तो माना जा सकता है कि हिंदू वोटरों का गुस्सा संदेशखाली को लेकर भी जाहिर हुआ है।
भ्रष्टाचार के मामलों से छवि खराब हुई: बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाला, कोयला तस्करी मामला, नगर पालिका नियुक्ति घोटाला आदि के चलते टीएमसी सरकार के प्रति लोगों में रोष बढ़ा है। राशन वितरण घोटाले में संदेशखाली गई ईडी टीम पर जिस तरह हमले हुए और जिस तरह राज्य सरकार ने भ्रष्टाचारियों को संरक्षण दिया उससे आम जनमानस में नाराजगी बढ़ी है। शिक्षक भर्ती घोटाले में तृणमूल कांग्रेस के एक दर्जन से अधिक नेता मंत्री आदि जेल जा चुके हैं। पश्चिम बंगाल सरकार में तत्कालीन मंत्री व विधायक पार्थ चटर्जी के सहयोगियों के घरों से इतनी रकम बरामद हुई थी कि नोट गिनने वाली मशीन कम पड़ गईं थीं। खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उनके घर से बरामद हुए रकम से इतनी शर्मिंदा हुईं कि उनको मंत्री पद से तो हटाया ही और उनकी पैरवी तक नहीं कीं। विधायक अनुब्रत मंडल, विधायक मानिक भट्टाचार्य विधायक जिबन कृष्ण साहा आदि भी इस घोटाले में जेल गए। बाद में वन मंत्री व पूर्व खाद्य मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक को भी जेल जाना पड़ा था। संदेशखाली में शाहजहां शेख का जिस तरह शेल्टर देती रही राज्य सरकार उसके बाद आम जनता को यह समझ में आने लगा कि मुख्यमंत्री मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते अपराधियों पर भी कार्रवाई नहीं चाहती हैं।ओबीसी कोटे में मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा उल्टा पड़ गया: पीएम नरेंद्र मोदी पूरे देश में अपनी रैलियों में ओबीसी कोटे में मुस्लिम आरक्षण को डकैती बता ही रहे थे, इस बीच कोलकाता हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में 2010 के बाद जारी पांच लाख से अधिक ओबीसी सर्टिफिकेट को रद्द कर दिया है। इसमें अधिकतर मुस्लिम जातियों के लोग शामिल थे. हाईकोर्ट ने 2012 में राज्य की ममता बनर्जी सरकार द्वारा 77 जातियों को पिछड़ा वर्ग में शामिल करने संबंधी कानून को ही अवैध करार दिया। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को आधार बनाकर मुस्लिम धर्म की करीब करीब सभी जातियों को ओबीसी मानकर उन्हें ओबीसी कोटे में आरक्षण दे दिया गया था। 2010 में पश्चिम बंगाल की वाम मोर्चा सरकार ने मुस्लिम धर्म की 53 जातियों को ओबीसी की श्रेणी में डाल दिया। उस वक्त तक करीब 87.1 फीसदी मुस्लिम आबादी आरक्षण के दायरे में आ गई। लेकिन, 2011 में वाम मोर्चा की सरकार सत्ता से बाहर हो गई और उसका यह फैसला कानून नहीं बन सका। ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री बनने पर इस सूची को बढ़ाकर 77 कर दिया। इस तरह राज्य की 92 फीसदी मुस्लिम आबादी को आरक्षण का लाभ मिलने लगा। जिस तरह पीएम नरेंद्र मोदी इस मुद्दे को लेकर लगातार अपने चुनाव अभियान में विपक्ष पर हमला बोल रहे थे उससे क्या ओबीसी और दलित जातियों का ध्रुवीकरण बीजेपी के लिए हुआ है? रिपोर्ट अशोक झा