काशी तमिल संगमम ने की है उत्तर व दक्षिण के संबंधों के एक नए अध्याय की शुरुआतः तमिनाडु के राज्यपाल

 

वाराणसी। तमिलनाडु के माननीय राज्यपाल श्री आर. एन. रवि ने कहा है कि काशी तमिल संगमम से उत्तर और दक्षिण के संबंधों में एक नए अध्याय की शुरुआत हुई है। वे काशी तमिल संगमम के अंतर्गत काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के एम्फीथियेटर ग्राउंड में संस्कृति विषय पर आयोजित शैक्षणिक सत्र को संबोधित कर रहे थे। “कावेरी से गंगाः एक सांस्कृतिक संगम” विषय पर आयोजित सत्र को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए राज्यपाल महोदय ने कहा कि भारत की विविधता  ही भारत की शक्ति है। उन्होंने तमिलनाडु से भक्ति आंदोलन की उत्पत्ति के संदर्भ में रामानुजाचार्य की चर्चा की, जो रामानंद के शिक्षक थे और तमिलनाडु से थे। रामानंद के शिष्य तुलसीदास ने रामचरितमानस में योगदान दिया जो बाद में भारत में भक्ति आंदोलन में मील का पत्थर बना। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे तमिलनाडु के लोगों ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत योगदान दिया। उन्होंने काशी तमिल संगमम के शानदार आयोजन के लिए माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को धन्यवाद दिया और कहा कि इस कार्यक्रम ने दोनों प्राचीन संस्कृतियों को और भी करीब ला दिया है।

आज के शैक्षणिक सत्र का आयोजन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा किया गया था। सत्र की अध्यक्षता महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा, के चांसलर प्रोफेसर कमलेश दत्त त्रिपाठी ने की। डॉ. कमलेश त्रिपाठी ने अपने व्याख्यान में काशी को ज्ञान की नगरी और देश के सभी क्षेत्रों के विद्वानों, दार्शनिकों और विचारकों के संगम का केंद्र बताया। उन्होंने कहा कि 13वीं शताब्दी से ही काशी में तमिल विद्वान आते रहे और इस संगम से यह नगरी और समृद्ध हुई। उन्होंने कई विद्वानों का उल्लेख किया जैसे अप्पय्या दीक्षित, जो संस्कृत साहित्यिक आलोचना और अद्वैत वेदांत के विद्वान थे, भट्टोजी दीक्षित जो पाणिनी व्याकरणविद और सिद्धान्त कौमुदी के लेखक थे, भास्कर राय, जिन्होंने श्रीविद्या परंपरा की शुरुआत की और लक्ष्मण शास्त्री, जो एक द्रविड़ विद्वान थे और जिन्होंने अर्थशास्त्र अध्ययन को वाराणसी में पुनर्जीवित किया।
Academy on Vibrant National Arts and Scientific Heritage के निदेशक डॉ. एम.एल. राजा, ने अति प्राचीन काल से सांस्कृतिक एकता और एकात्मकता का उल्लेख किया। उन्होंने राजेन्द्र चोल द्वारा गंगा जल को लाने और कावेरी के साथ मिलाने के अभियान का उल्लेख करते हुए सदियों से तमिल राज्य में गंगा के सांस्कृतिक महत्व का उल्लेख किया तथा प्राचीन तमिल महाकाव्यों और पुराणों में काशी के उल्लेख की चर्चा की। उन्होंने उत्तर प्रदेश के वर्तमान प्रतीक और प्राचीन तमिल शासकों के प्रतीक चेरा की समानता की ओर भी ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने काशी और तमिलनाडु के संबंध पर ऐतिहासिक और वंशावली अनुसंधान की कमी पर पर चिंता जताई। साथ ही इस बात पर जोर दिया कि कैसे भारत का हर व्यक्ति सांस्कृतिक रूप से एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित आध्यात्मिक शख्सियत “कलाइमामणि” देसा मंगैयारकरारसी, ने काशी तमिल संगमम् के दौरान अपने विचार रखने का अवसर प्राप्त होने पर आभार व्यक्त किया।  उन्होंने कहा कि गंगा हम सबकी मां है और कावेरी गंगा की तरह पवित्र है, दोनों में भक्ति के साथ एक पवित्र डुबकी सभी पापों को दूर करती है और मोक्ष प्रदान करती है।  उन्होंने कावेरी नदी के जन्म की गाथा का भी वर्णन किया।

स्वागत वक्तव्य में, आईजीएनसीए क्षेत्रीय केंद्र वाराणसी के प्रो. विजय शंकर शुक्ला ने प्रतिनिधियों के प्रति हार्दिक आभार और उत्साह व्यक्त किया। उन्होंने राज्यपाल को स्मृति चिन्ह एवं उत्तरीय भेंट कर सम्मानित किया।

वैदिक मंगलाचरण और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलगीत की प्रस्तुति कला इतिहास विभाग की डॉ. जया लक्ष्मी त्रिपाठी द्वारा की गई।

डॉ. अभिजीत दीक्षित द्वारा धन्यवाद ज्ञापन प्रेषित किया गया।

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