आज नवरात्रि का 6 वां दिन मां कात्यायनी को समर्पित

मां के पूजा से भक्तों को देती है शत्रुओं पर विजय प्राप्ति का वरदान

अशोक झा, सिलीगुड़ी: नवरात्रि का 6वां दिन मां कात्यायनी को समर्पित होता है. माता इस रूप में भक्तों को शत्रुओं पर विजय प्राप्ति का वरदान देती है। माना जाता है कि देवी दुर्गा की छठी शक्ति मां कात्यायनी का जन्म महर्षि कात्यायन के घर हुआ था, इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा।
कैसा है मां कात्यायनी का स्वरूप: मां कात्यायनी को मां दुर्गा का छठवां स्वरूप माना जाता है। ये अत्यंत चमकीला और भास्वर है. इन्हें ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है। मां का वाहन सिंह है. मां की चार भुजाएं हैं, जिसमें दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा अभयमुद्रा में है और नीचे वाली भुजा वरमुद्रा में है। जबकि, बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में तलवार और नीचे वाली भुजा में कमल-पुष्प है।मान्यता है कि मां कात्यायनी की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और व्यक्ति रोग-दोषों से मुक्त हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार देवी कात्यायनी को कात्यायन ऋषि की पुत्री होने के कारण कात्यायनी नाम से जाना जाता है. आइए जानते हैं मां कात्यायनी के पूजा विधि, मंत्र, आरती और खास भोग के बारे में।पूजा विधि
– नवरात्र के छठे दिन सुबह उठकर स्नान करें और साथ-सुथरे कपड़े धारण कर लें। इसके बाद पूजा स्थल की अच्छे से साफ-सफाई करें।सबसे पहले कलश पूजन करें और फिर मां कात्यायनी का ध्यान करें।फिर मां को अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि चीजें अर्पित करें।धूप- दीप जलाकर माता रानी की चालीसा, आरती का विधि विधान से पाठ करें।इसके बाद मां कात्यायनी को उनका प्रिय भोग लगाएं।मां कात्यायनी का प्रिय भोग: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां कात्यायनी को मीठे पान का भोग लगाना शुभ माना जाता है। इससे व्यक्ति का हर प्रकार का भय समाप्त होता है।मां कात्यायनी मंत्र: सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।।
-ऊं क्लीं कात्यायनी महामाया महायोगिन्य घीश्वरी,
नन्द गोप सुतं देवि पतिं मे कुरुते नमः।। पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्त अनुसारिणीम्।तारिणीं दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भवाम्।।
मां कात्यायनी का ध्यान मंत्र:वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।सिंहारूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥स्वर्णवर्णा आज्ञाचक्र स्थिताम् षष्ठम दुर्गा त्रिनेत्राम्।वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालङ्कार भूषिताम्।मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥प्रसन्नवदना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम्॥

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