काशी में गौरा को लगी हल्दी, 3 मार्च, एकादशी को बाबा गौरा का गौना लेने ससुराल जाएंगे

 

वाराणसी। काशीपुराधिपति श्री विश्वनाथ से काशी के लोगों का नाता सिर्फ देवता और भक्त का नहीं है। यहां बाबा ‘लोक’ में रमते हैं, लोग उन्हें अपने घर-परिवार का आत्मीय मुखिया, संरक्षक जानते-मानते हैं। इसीलिए यहां बाबा तिलक कराने से लेकर ब्याह रचाने व गौना लाने में आम काशीवासी जैसे दिखते हैं। होली भी खेलते हैं। उनका यह लोकजीवन वसंत पंचमी से शुरू होता है। महाशिवरात्रि से होता हुआ रंगभरी एकादशी तक विस्तार पाता है। 3 मार्च, एकादशी को बाबा गौरा का गौना लेने ससुराल जाएंगे, गौने की बारात में काशीवासी बाराती बनते हैं। उसी दिन से काशी में रंगोत्सव की विधिवत शुरुआत होती है।
उसी प्रक्रिया के तहत आज गौरा को हल्दी लगी है। जरा सोचिए, सांसारिकों को सुखद दाम्पत्य का अमोघ आशीर्वाद देने वाली गिरिराज किशोरी खुद वधू बनती हैं और सुहागिन उनके लिए मंगलगीत गाती हैं। यह काशी में ही संभव है। क्योंकि काशी में ” ब्रह्मवेदस्वरूपं” महादेव लोकदेवता हैं।

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