आज एक साथ तीन पर्व, परम्परा से विश्वकर्मा पूजा, हरतालिका तीज की धूम
आज एक साथ तीन पर्व, परम्परा से विश्वकर्मा पूजा, हरतालिका तीज की धूम
सिलीगुड़ी: पूर्वोत्तर का प्रवेश द्वार सिलीगुड़ी। यह क्षेत्र मिनी इंडिया है। इस क्षेत्र में जिस प्रकार सभी व्रत त्योहार अपनी परंपरा के साथ मानते है उसी प्रकार इसका उत्साह भी देखने को मिलता है। सोमवार 18 सितंबर को एक साथ तीन -तीन पर्व एक साथ मनाई जा रही है। इस बार विश्वकर्मा पूजा, हरतालिका तीज और चौरचन व्रत तीनों एक ही दिन 18 सितंबर को मनाए जाएंगे। एक विशेष संयोग है कि तीनों पर्व एक ही दिन पड़े। कुछ लोगों के मन में उलझन है कि विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर को मनाया, लेकिन इस बार 18 सितंबर कैसे हो गई। बता दें कि किसी भी सनातनी पर्व, त्योहार का अंग्रेजी तारीख से कोई लेना-देना नहीं होता। यह संक्रांति के अनुसार मनाई जाती है। इस वर्ष संक्रांति 18 सितंबर को है। इसलिए विश्वकर्मा पूजा इस बार 18 सितंबर को की जाएगी।
नेपाली समुदाय नाच गाकर मना रहे तीज का पर्व:
तीज एक नेपाली धार्मिक त्योहार है जो हिंदू देवी पार्वती और शिव के साथ उनके मिलन को समर्पित है। इसे सार्वजनिक अवकाश के रूप में नामित किया गया है, लेकिन त्योहार के अवसर पर केवल महिलाओं को एक दिन की छुट्टी मिलती है। दरअसल, तीज महिलाओं द्वारा अपने जीवनसाथी की खुशहाली के लिए मनाए जाने वाले कई त्योहारों का एक सामान्य नाम है। “तीज” शब्द का अर्थ “तीसरा” है क्योंकि तीज अमावस्या के तीसरे दिन मनाई जाती है। नेपाल में, तथाकथित हरतालिका तीज को सार्वजनिक अवकाश के रूप में मनाया जाता है। यह भाद्रपद माह के दौरान आता है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर में अगस्त या सितंबर में शुरू होता है। हरतालिका तीज तीन दिवसीय त्योहार है जो पार्वती के भगवान शिव के साथ मिलन का जश्न मनाता है। नेपाली महिलाएं अपने शरीर और आत्मा की शुद्धि और अपने परिवार की भलाई के लिए इसे अलग करती हैं। पहला दिन गायन, नृत्य और दावत के साथ मनाया जाता है। दावत की मेजबानी पुरुष करते हैं, महिलाओं को दिन में कुछ नहीं करना पड़ता। उनके लिए, तीज का पहला दिन एक आधिकारिक गैर-कार्य अवकाश है।। त्योहार का दूसरा दिन उपवास को समर्पित है। विवाहित महिलाएं अपने परिवार की समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं, जबकि अविवाहित महिलाएं अच्छे पति की प्राप्ति की उम्मीद में व्रत रखती हैं। तीसरे दिन महिलाएं शुद्धिकरण अनुष्ठान करती हैं।
सुहाग के प्रति समर्पण की भावना स्त्रियों को विरासत में मिली।
रिश्तों को बांधे रखते हैं ये तीज-त्योहार: समय के साथ-साथ तीज-त्योहारों को मनाने का अंदाज भी कुछ बदला-बदला सा है। जहां पहले मां अपनी बेटियों के लिए, भाभी अपनी ननदों के लिए अपने सामर्थ्य के अनुसार कपड़े-गहने खरीदकर तीज की सौगातें भेजती थीं, वहीं आजकल के पति ही विशेष रूप से तीज के अवसर पर अपनी पत्नी के लिए गहने-कपड़े खरीद कर उन्हें विशेष रूप से उपहार देने लगे हैं। यहां तक कि व्रत की तैयारियों में भी सहयोग कर उन्हें एहसास दिलाते हैं कि – ‘मैं हूं न’।दो-तीन दशक पहले तक ये अपेक्षा औरतें अपने पतियों से नहीं रख सकती थीं। उन दिनों संयुक्त परिवार के बीच प्रेम प्रदर्शित करना इतना सहज नहीं था। अब एकल परिवार का चलन है, जिसका ये एक खूबसूरत पहलू सामने आया है। फिर जब गुरहत्थी के रस्म में सोलह शृंगार सामग्री से सजा शृंगार बॉक्स और वस्त्राभूषण ससुराल से चढ़ाया जाता है और उसके बाद सिंदूरदान के रस्म में पिया मांग में सिंदूर भरते हैं, उस क्रम में ही युवतियों के मन के तार पिया से तो जुड़ ही जाते हैं। उसके साथ-साथ सुहाग के प्रतीक चिन्हों से भी उन्हें गहरा जुड़ाव हो जाता है, जिसे स्त्रियां हर हाल में बचाये रखना चाहती हैं। वैसे भी सुहाग के प्रति समर्पण की भावना स्त्रियों को विरासत में मिली होती है, क्योंकि वह अपनी मां, चाची, भाभी आदि को ऐसा करते देखती आयी हैं। इसी समर्पण की भावना से स्त्रियां हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं, जिसमें वह चौबीस घंटे का निराजल उपवास रखती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियों का सुहाग अखंडित रहता है। वैसे भी हम अपने देवी-देवताओं का अनुसरण करते आये हैं। पौराणिक कथानुसार, माता सती ने पार्वती के रूप में राजा हिमालयराज के घर जन्म लिया था. वह बचपन से ही शिव को पाने की कामना करती थी, परंतु जब वह विवाह के योग्य हुई तो नारद मुनि नें राजा के सामने पार्वती का विवाह विष्णु जी से करवाने का प्रस्ताव रखा, जिसे राजा हिमालय ने स्वीकार कर लिया. जब पार्वती को यह पता चला तो वह निराश होकर जंगल चली गयी और वहां महादेव को पति रूप में पाने के लिए रेत का शिवलिंग बनाया और लाखों-सैकड़ों वर्षों तक कठोर तप किया। आखिरकार पार्वती की कठोर तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए और सावन महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को माता पार्वती के सामने प्रकट होकर, वरदान स्वरूप पत्नी रूप में स्वीकृति प्रदान की। अगले दिन पारण और गणेश चतुर्थी की पूजा: तीज के अगले दिन गणेश चतुर्थी का भी त्योहार होता है, जिसे महिलाएं बड़ी श्रद्धा से करती हैं और गणेश जी से मांगती हैं कि वे उनके घर सुख-समृद्धि लेकर आएं। फिर व्रती महिलाएं पारण करती हैं। पारण में भी जहां संयुक्त परिवारों में व्रत तोड़ने के लिए घर के अन्य सदस्य जो व्रत नहीं किये होते, वे तरह-तरह के व्यंजन बनाने के लिए सुबह-सवेरे ही उठकर तैयारियों में जुट जाते, वहीं अब पति स्वयं को बेस्ट कुक साबित करते हुए पारण के लिए कुछ विशेष व्यंजन बनाकर सर्व करने लगे हैं। इस तीज-त्योहार के बहाने पति-पत्नी के मध्य रिश्तों का माधुर्य कई गुना बढ़ जाता है. मन के तार झनक उठते हैं।।ऐसे में उनके मध्य प्रेम की उम्र तो लंबी होती ही है।
जानें शुभ मुहूर्त:;पूजा के शुभ मुहूर्त की बात करें तो उसमें विश्वकर्मा पूजा अपराह्न के बाद दिन में की जाएगी। चौथचंद्र जिसे चौरचन भी कहते हैं, चंद्रमा के उदय होते ही दही या कोई फल लेकर इसकी पूजा की जाएगी। वहीं तीज में पूरी रात्रि जाकर भजन कीर्तन विवाहित महिलाएं करती हैं, अगले दिन सुबह में विसर्जन होता है। पति के दीर्घायु के लिए तीज व संतान के दीर्घायु व मंगल कामना के लिए चौठचंद्र व्रत एक ही दिन सोमवार को है। इसको लेकर बाजार सजने लगा है। पंडित हरि मोहन झा ने बताया कि गणेश चतुर्थी व्रत को चौठचंद्र भी कहते हैं।
सभी पर्व सोमवार को ही मनाया जायेगा। सुहागिन महिला तीज व्रत पर पति के लंबी व दीर्घायु जीवन की कामना करती है। महिलाएं 24 घंटे का निर्जला व्रत रखेगी। पारण मंगलवार को होगा। प्राचीन समय से ही इस व्रत को करने की परंपरा रही है। त्रेता काल में भी सुहागिन महिलाओं द्वारा व्रत को किये जाने की है। जिसको लेकर महिलाएं खासकर नवविवाहिता इस पर्व को पूरे श्रद्धा भाव से करती हैं। सुख, समृद्धि व पति की लंबी उम्र के लिए महिलाएं व्रत को कर भगवान शिव व मां पार्वती से आशीर्वाद मांगती है। गणेश चतुर्थी में खाली हाथ नहीं करें चंद्र दर्शन: गणेश चतुर्थी व्रत को चौठचंद्र भी कहते हैं। जो सोमवार को मनाया जायेगा। महिलाएं प्रात: से संध्या तक बिना पानी के व्रत करती है और विघ्न-विनाशक भगवान गणेश की आराधना कर संतान के दीर्घ जीवन की कामना करती हैं। संध्या में चंद्र दर्शन कर अर्घ्य देकर प्रसाद ग्रहण करती हैं। पंडित हरिमोहन झा ने कहा कि जो महिलाएं निर्जला उपवास कर विधि-विधान के साथ व्रत रखती है। उसके संतान की असमय मृत्यु नहीं होती है। चंद्रमा व गणेश में विशेष संबंध है। इस कारण व्रत में चंद्र दर्शन की विशेष महत्ता होती है। रात में विभिन्न प्रकार के फल व पकवान से केला पत्ता पर भोग लगाया जाता है, जिसे (अघौर) कहते हैं। शालीग्राम झा ने बताया कि चौठचंद्र में खाली हाथ चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए। व्रत के बाद किसी भोग लगाये वस्तु को लेकर ही चंद्र दर्शन करने से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
सजने लगा बाजार, खरीदारी को लेकर बढ़ी चहल-पहल
व्रत को लेकर बाजारों में पूजा के सामान की खरीदारी जम कर हो रही है. डलिया, फल, मिष्ठान सहित शृंगार प्रसाधन व स्वर्णाभूषण की दुकानों में महिलाओं की भीड़ काफी देखी जा रही है। तीज की तैयारी में महिलाएं बाजार में पूजन सामग्री, कपड़े आदि की जमकर खरीदारी करने में लगी हैं. बांस से बने छोटे-छोटे डलिया, शिव पार्वती की मिट्टी की मूर्ति आदि की बिक्री हो रही है। हरतालिका इस पर्व का संबंध शिव जी से है और ‘हर’ शिव जी का नाम हैं इसलिए हरतालिका तीज अधिक उपयुक्त है। महिलाएं इस दिन निर्जल व्रत रखने का संकल्प लेती हैं। हरतालिका तीज व्रत बेहद प्रभावशाली है किन्तु इस व्रत के कुछ नियम है जिनका पालन करना आवश्यक है। यदि आप भी पहली बार हरतालिका तीज व्रत रख रही हैं तो ये खास नियम, पूजन विधि जान लें। इनके बिना व्रत अधूरा माना जाता है।
पहली बार ऐसे रखें हरतालिका तीज व्रत:- पहली बार हरतालिका तीज व्रत रखने वाली हैं तो अपनी मान्यता मुताबिक ही व्रत का संकल्प लें। कहते हैं पहली बार जैसा व्रत का संकल्प लिया जाता है आजीवन उसे वैसे ही निभाना पड़ता है। ध्यान रहे निर्जला या फलाहार व्रत का संकल्प लें तो उसे पूरा अवश्य करें।व्रत की अवधि का ध्यान रखें – हरतालिका तीज व्रत 24 घंटे के लिए रखा जाता है। इस व्रत की शुरुआत भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि के सूर्योदय से होती है तथा अगले दिन चतुर्थी के सूर्योदय पर ये समाप्त होता है। हरतालिका तीज में पानी पी सकते हैं ? झा के मुताबिक, हरतालिका तीज व्रत में अन्न, जल का त्याग करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत में भोजन करने वाली व्रती को अगले जन्म वानर तथा पानी पीने से अगले जन्म में मछली की योनि प्राप्त होती है। यदि आप निर्जला व्रत करने में सक्षम न हो तो फलाहार व्रत कर सकती है।
ऐसे वक़्त में न करें पूजा – यदि हरतालिका तीज के दौरान महिलाओं को मासिक धर्म हो जाए तो उन महिलाओं को दूर से ही भगवान की कथा सुननी चाहिए। भगवान को नहीं छूना चाहिए, व्रत बताए गए समय अनुसार ही खोलें।बीच में नहीं छोड़ा जाता व्रत – एक बार हरतालिका तीज का व्रत आरम्भ कर दिया तो इसे बीच में छोड़ा नहीं जा सकता। व्रती के जीवनकाल तक इसका पालन करना पड़ता है। यदि किसी कारणवश ये व्रत न कर पाएं तो इसका उद्यापन कर दें तथा परिवार की दूसरी महिला को ये व्रत सौंप दें जिससे क्रम बना रहे।रात्रि जागरण क्यों है आवश्यक –
शास्त्रों के मुताबिक, हरतालिका तीज व्रत में व्रतधारी महिलाओं का दोपहर या रात्रि सोना वर्जित है। पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन जो महिलाएं सो जाती हैं वो अगले जन्म में अजगर के रूप में पैदा होती हैं। इस व्रत में रात्रि के चारों प्रहर में शिव-पार्वती की पूजा करने से व्रत का शीघ्र फल मिलता है। सोलह श्रृंगार – ये सुहाग पर्व है। इस दिन सुहागिनों को 16 श्रृंगार कर शिव-पार्वती की पूजा करनी चाहिए। मेहंदी अवश्य लगाएं। मान्यता है इससे शंकर जी जल्द खुश होकर समस्त मनोकामना पूरी करते हैं।
कथा-दान के बिना अधूरा व्रत – हरतालिका तीज व्रत में मिट्टी के शंकर-पार्वती जी की विधि विधान से पूजा की जाती है। फुलेरा बांधा जाता है। इसके साथ ही कथा का श्रवण जरुर करें। चारों प्रहर में अंतिम पूजा के पश्चात् माता पार्वती को चढ़ाया सिंदूर अपने माथे पर लगाएं तथा सुहाग की सामग्री ब्राह्मणी को दान कर दें।
व्रत का पारण:-
हरतालिका तीज व्रत का पारण चतुर्थी तिथि यानी गणपति उत्सव के पहले दिन सूर्योदय के पश्चात् ही किया जाता है। व्रत खोलने से पहले स्नान कर विधि वत शिव-पार्वती की पूजा करें। तत्पश्चात, पूजन सामग्री सहित मिट्टी के शिवलिंग का विसर्जन करें तथा फिर प्रसाद खाकर ही व्रत खोलें।