या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता…हर रूप करता है स्त्री शक्ति का प्रतिनिधित्व
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता…हर रूप करता है स्त्री शक्ति का प्रतिनिधित्व
सिलीगुड़ी: नवरात्रि के पहले दिन दुर्गा के शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है। देवी के इस रूप को इन अर्थो में ले सकते हैं कि बेटियों के इरादे अपने कर्तव्यों के प्रति चट्टान की तरह होते हैं, अतः उनका दृढ़ निश्चयी रूप पूजनीय है। दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा होती है. इसे हम इस रूप में भी देख सकते हैं कि स्त्री ब्रह्मा के बनाये हुए आचरण का निर्वहन करती है, इसलिए उसका संयमित, धैर्यवान व अनुशासित रूप पूजनीय है। तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा होती है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- चांद की तरह चमकने वाली। अर्थात स्त्री का दिव्य रूप उसके आंतरिक गुणों का प्रतिनिधित्व करता है, अत: उसकी भावनाओं, गुणों का सदा सम्मान करो। चौथे दिन दुर्गा के कूष्माण्डा रूप की पूजा की जाती है, इसका अर्थ हुआ कि पूरा जगत उनके पैरों तले है। अर्थात स्त्री के वश में पूरा संसार है, उसे कमजोर समझने की भूल न करो। पांचवे दिन स्कंदमाता पूजी जाती हैं. इसका अर्थ है- कार्तिक स्वामी की माता। अर्थात औरत का मातृ स्वरूप सदा पूजनीय है।छठा रूप है कात्यायनी। यानी कात्यायन आश्रम में जन्म लेने वाली। इसका व्यवहारिक पहलू यह है कि बेटियां सर्वथा सम्माननीय हैं। सातवां रूप कालरात्रि, जिसका अर्थ है, काल का नाश करने वाली। स्त्री अपनी दृढ़ शक्ति से काल को भी मात दे सकती है।आठवां रूप है महागौरी. अर्थात गौर वर्ण वाली मां। ये चरित्र की पवित्रता की प्रतीक देवी हैं, जो सर्वथा पूजनीय है। नौवां रूप है सिद्धिदात्री, जो सारी सिद्धियों का मूल सर्व सिद्धि देने वाली हैं। देवी पुराण कहता है भगवान शिव ने देवी के इसी स्वरूप से कई सिद्धियां प्राप्त की। अत: स्त्री को सम्मान देने वाले सभी सिद्धियों को प्राप्त कर सकते हैं। यह पर्वों का देश है, इसीलिए व्रत, तीज-त्योहार और धार्मिक अनुष्ठान प्रत्येक वर्ष हर्षोल्लास व श्रद्धा पूर्वक मनाये जाते हैं। व्रत-उपवास का धार्मिक रूप से क्या फल मिलता है, यह तो अनुभव की बाते हैं, लेकिन इतना तो प्रमाणित है कि व्रत-उपवास हमें संतुलित और संयमित जीवन जीने के लिए तन को स्फूर्त और मन को सशक्त तो करते ही हैं, साथ ही सही मायने में मानवता का पाठ भी पढ़ाते हैं। वैसे तो सभी व्रतों और त्योहारों के अपने अलग महत्व हैं, किंतु नवरात्रि में विशेष रूप से स्त्री शक्ति का प्रतिनिधित्व करती मां दुर्गा के नौ रूपों की विधिवत पूजा की जाती है, इसलिए यह पर्व विशेष हो जाता है, खास तौर से स्त्रियों के लिए क्योंकि दुर्गा पूजा से यह सिद्ध हो जाता है कि हमारी संस्कृति में स्त्रियां आदिकाल से ही सर्व शक्तिमान रही हैं, इसलिए पूजनीय भी रही हैं। महादेवी वर्मा ने भी लिखा है कि हमारी संस्कृति मातृ सत्ता की रही है. हमारी ज्ञान और विवेक की अधिष्ठात्री सरस्वती, शक्ति की दुर्गा, ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री लक्ष्मी मानी जाती हैं। स्त्री को इन तीनों रूपों में रखकर भारतीय मनीषियों ने पूरी संस्कृति को बांध दिया है. पुरुष तो कहीं बीच में आता ही नहीं. यह कथन नवरात्रि मनाये जाने के पीछे पौराणिक मान्यता से भी सिद्ध होता है। इस कथा के अनुसार, महिषासुर नाम का एक दैत्य था, जो ब्रह्माजी से अमर होने का वरदान पाकर देवताओं को सताने लगा था। महिषासुर के अत्याचार से परेशान होकर सभी देवतागण शिव, विष्णु और ब्रह्मा के पास गये। इसके बाद तीनों देवताओं ने आदि शक्ति का आवाहन किया। भगवान शिव और विष्णु के क्रोध व अन्य देवताओं से मुख से एक तेज प्रकट हुआ, जो नारी के रूप (मां दुर्गा) में बदल गया। अन्य देवताओं ने उन्हें अस्त्र-शस्त्र प्रदान किये। इसके बाद देवताओं से शक्तियां पाकर देवी दुर्गा ने महिषासुर को ललकारा। महिषासुर और देवी दुर्गा का युद्ध शुरू हुआ, जो नौ दिनों तक चला। फिर दसवें दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। मान्यता है कि इन नौ दिनों में देवताओं ने रोज देवी की पूजा-आराधना कर उन्हें बल प्रदान किया। तब से ही नवरात्रि का पर्व मनाने की शुरुआत हुई। नवरात्रि की एक कथा प्रभु श्रीराम से भी जुड़ी है। कहा जाता है कि माता सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने और रावण पर विजय पाने के लिए श्रीराम ने देवी दुर्गा का अनुष्ठान किया। ये अनुष्ठान लगातार नौ दिनों तक चला। अंतिम दिन देवी ने प्रकट होकर श्रीराम को विजय का आशीर्वाद दिया। दसवें दिन श्रीराम ने रावण का वध कर दिया। प्रभु श्रीराम ने आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तक देवी की साधना कर दसवें दिन रावण का वध किया था। तभी से हर साल नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। बेटियों का सम्मान ही मां की पूजा: मां दुर्गा के नौ रूपों से सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि एक स्त्री के अनेक रूप हैं। वह सहज है, तो कठोर भी है, सुंदर है, तो कुरूप भी है, सहनशील है, तो क्रोधी भी। उसको कमतर आंकने की भूल नहीं करना, वरना विनाश निश्चित है, जैसे महिषासुर का अंत हुआ।उससे सभी देवता त्रस्त थे, लेकिन एक स्त्री के द्वारा उसका अंत हुआ । अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन का विधान भी यही संदेश देता है। बेटियों का सम्मान करो, क्योंकि वे सर्वगुणसंपन्न, सर्वशक्तिमान हैं. वे सृजन हैं, उन्हीं से सृष्टि का शृंगार हो सकता है, वरना संहार निश्चित है। सरल शब्दों में कहें, तो ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का संकल्प हम मनसा, वाचा, कर्मणा से लें, यही सही मायने में दुर्गा की पूजा है। @रिपोर्ट अशोक झा