प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सैनिकों के साथ दीपावली बनाने हिमाचल के लेप्चा गांव पहुँचे

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सैनिकों के साथ अपनी 10वीं दीपावली मनाने के लिए रविवार को हिमाचल प्रदेश के लेप्चा गांव पहुंच गए। वह यहां भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के जवानों के साथ दिवाली का त्योहार मनाएंगे। तिब्बत सीमा पर भारत के इस आखिरी गांव में भारत की प्रमुख जनजातियों में से एक लेप्चा
की आबादी है। इन्हें रोंग भी कहते हैं। भारत की इस प्रमुख जनजाति की अपनी अलग परंपरा (प्रथा) एवं संस्कृति है। प्रधानमंत्री के इस कदम से देश के लेप्चा समुदाय के लोगों में खुशी है। वे इस समुदाय के परंपरागत नृत ओर संगीत को भी करीब से जानेंगे।
सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने दो माह पहले अगस्त में आदिवासी लेपचा संस्कृति को संरक्षित करने के लिए कई उपायों की घोषणा की है। यह फैसला लेप्चा भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने की लंबे समय से चली आ रही मांगों के बीच लिया गया है। भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषाओं की सूची है। दरअसल, यह जनजाति प्रमुख रूप से पूर्वी नेपाल, पश्चिमी भूटान, तिब्बत के कुछ क्षेत्र, भारत के सिक्किम, पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग, कलिम्पोंग, मिरिक, पोखरियाबोंग, कुर्सीओंग में पाई जाती है। एक अनुमान के मुताबिक कुल मिलाकर देश में इनकी संख्या 46 हजार है। भारत के अन्य क्षेत्रों में 11 हजार, सिक्किम में 25 हजार और भूटान में 10 हजार के आसपास, तिब्बत और नेपाल में जनजाति लेप्चा की संख्या नगण्य है।
सामाजिक स्थिति : दार्जिलिंग में पत्थर (शिंगिल) काटने वाले लेपचा समाज के यह लोग सिक्किम और दार्जिलिंग के सबसे पुराने निवासी माने जाते हैं, लेकिन 14वीं शताब्दी और उसके बाद आए भूटिया लोगों की संस्कृति के कई तत्वों को इस जनजाति ने अपना लिया। भूटिया मुख्यतः ऊंचे पहाड़ों के पशुपालक होते हैं, जबकि लेप्चा सामान्यत: दूरस्थ घाटियों में रहते हैं। इन दोनों समूह में कुछ अंतर्विवाह हुए हैं और अपनी-अपनी भाषाएं बोलने का प्रयास करते हैं, जो तिब्बत भाषा की बोलियां हैं। इनमें से किसी भी समूह का नेपाली हिन्दू अधिवासियों से कोई संबंध नहीं है, जो 18वीं शताब्दी में सिक्किम में आए और 20 वीं शताब्दी के अंत में जनसंख्या का दो-तिहाई भाग हो गए थे।
सांस्कृतिक विरासत : लेप्चा जनजाति के लोग मुख्यतः एक ही विवाह करते हैं। हालांकि, एक विवाहित पुरुष अपने छोटे अविवाहित भाई को अपने साथ रहने के साथ-साथ अपने खेत और प्रॉपर्टी का हिस्सा भी देते हैं। कभी-कभी एक पुरुष की एक या अधिक पत्नियां भी हो सकती हैं। लेपचा अपना मूल पितृवंश के आधार पर मानते हैं और उनके बड़े पितृसत्तात्मक वंश होते हैं। लेप्चा
जनजाति प्रेम विवाह, अरेंज मैरिज करते हैं। लेप्चा लोग अंतरजातीय विवाह भी करते हैं। वे वर्ण व्यवस्था का पालन नहीं करते हैं, इसलिए उनके लिए सभी जातियां जनजाति के समान होती हैं। तिब्बती बौद्ध धर्म है मूल : लेप्चा, भूटिया द्वारा तिब्बती बौद्ध धर्म में परिवर्तित किए गए थे, लेकिन अब भी लेपचा लोग आत्मा के अनुकूल व उनके ओझाओं की अपनी पुरानी मान्यता को मानते हैं। यह जनजाति रोगों का उपचार करती है, देवताओं से मध्यस्थता करती है और जन्म-विवाह तथा मृत्यु के समय की जाने वाली रस्मों को मानती है। दार्जिलिंग, मिरिक, कलिम्पोंग, सिक्किम क्षेत्र में लेपचा ट्राइब क्रिश्चियन भी मिलेंगे, जिन्होंने ब्रिटिश काल में ईसाई धर्म अपनाया था। कुछ लेप्चा जनजाति आपको हिंदू भी मिलेंगे। लेप्चा लोग ज्यादातर प्रकृति पूजक हुआ करते थे और बाद में अन्य धर्मों का पालन करने लगे।
भाषा, बोली और राजा: भारत में रहने वाली इस प्रमुख जनजाति की बोली और भाषा लेप्चा कहलाती है। 1660-1676 के बीच लेप्चा लोगों के अंतिम राजा को गेबो अचोक राजा के रूप में जाना जाता है। उनका खंडित किला कलिम्पोंग के जिला दमसांग गड़ी के पास स्थित है। दलिम लेप्चा
किला कलिम्पोंग जिले के कलिम्पोंग शहर के गोरुबथन में स्थित है। वर्तमान में इसका उपयोग बर्ड वाचिंग सेंटर के रूप में किया जा रहा है। यह कलिम्पोंग से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है
लेप्चा जनजाति का भोजन: परम्परागत रूप से शिकारी और भोजन संग्राहक लेप्चा जनजाति लोग अब कृषि व पशुपालन में भी संलग्न है। इस जनजाति के लोग सूअर, बीफ, चिकन, बकरी, मछली, भेड़ आदि का मांस खाते हैं। कुछ लेप्च जनजाति के लोग आपको शराब पीने वाले भी मिलेंगे। इसमें भी ईसाई धर्म अपनाने वाली लेप्चा जनजाति में शराब पीने की परंपरा कम है। रिपोर्ट अशोक झा

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