आधुनिक शिक्षा के हिमायती है जमीयत उलमा-ए-हिंद
सिलीगुड़ी: इन दिनों जहां एक ओर लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर सभी पार्टियां जोड़ घटाव में लगी है तो दूसरी ओर मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में आधुनिक शिक्षा को लेकर बहस छिड़ा हुआ है। कहा जा रहा है की ,शिक्षा समाज की प्रगति का सबसे अहम और बुनियादी जरिया है जो जातियाँ शिक्षा हासिल करती हैं और विज्ञान और तकनीक के मैदान में अपने कदम आगे बढ़ाते हुए नए ज्ञान की रोशनी से भरपूर फायदा उठाती हैं वही प्रगति के मार्ग पर चलती हैं और जो जातियाँ शिक्षा से दूर हो जाती हैं वह प्रगति की राह में भी पिछड़ जाती हैं यानी शिक्षा के बगैर कोई भी समाज प्रगति नहीं कर सकता। इतिहास गवाह है कि शिक्षित समुदायों ने हमेशा तरक़्क़ी की है। किसी भी व्यक्ति के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए शिक्षा अनिवार्य है। जमीयत उलमा-ए-हिंद ने मुसलमानों से मुस्लिम बच्चों को आधुनिक शिक्षा प्रदान करने के लिए आधुनिक स्कूल और कॉलेज स्थापित करने की अपील की। राजनीतिक दलों की मुसलमानों के प्रति असमानता की नीति पर प्रहार करते हुए जमीयत ने कहा कि, सभी राजनीतिक दलों की हमेशा से मुसलमानों को अपने पैरों पर खड़ा नहीं होने देने की एक आम नीति रही है।मौलाना अरशद मदनी ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया कि जमीअतम उलमा-ए-हिंद आधुनिक शिक्षा की कदापि विरोधी नहीं है. कौम को जहां आलिमों और फाज़िलों की आवश्यकता है वहीं उसे डाक्टरों, इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की भी आवश्यकता है लेकिन इसके साथ-साथ वह धार्मिक शिक्षा को अनिवार्य समझती है। मौलाना मदनी ने ज़ोर देकर कहा कि हमारे बड़े भी आधुनिक शिक्षा के विरोधी नहीं थे, हालांकि यह सब के सब इस्लामी शिक्षा में निपुण थे। देश की आज़ादी के लिए उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ लम्बे समय तक संघर्ष किया और जान-माल का बलिदान भी दिया, मगर वास्तविकता यह है कि यह अंग्रेज़ी शिक्षा के खिलाफ नहीं थे, इसलिए जब देश आज़ाद हुआ तो जमीअतम उलमा-ए-हिंद के नेतृत्व ने मदरसों और स्कूलों की स्थापना के लिए नियमित रूप से राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाया क्योंकि वह इस बात को समझते थे कि कौम का शिक्षित होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि, हमारा भी पक्ष यही है कि आधुनिक शिक्षा भी हमारे लिए अनिवार्य है, लेकिन इसके साथ साथ धार्मिक शिक्षा को इसलिए ज़रूरी समझते हैं कि अगर हमारा बच्चा डाक्टर इंजीनियर बन गया है तो उसे इतनी धार्मिक शिक्षा तो होनी ही चाहिए कि वह अंतिम समय में कलिमा पढ़ सके। उन्होंने इस बात पर गहरा दुख प्रकट किया कि आधुनिक शिक्षा के संबंध में दक्षिण भारत के मुसलमानों में जो चेतना है वह उत्तर भारत के मुसलमानों में नहीं है। हम शादी ब्याह और अन्य अर्थहीन चीज़ों पर तो लाखों रुपये खर्च कर देते हैं परन्तु स्कूल और काॅलेज खोलने के बारे में नहीं सोचते। ऐसा नहीं है कि दक्षिण की तुलना में उत्तर के मुसलमानों के पास पूंजी की कमी है। वास्तव में उनके अंदर चेतना नहीं है जिसको जागृत करने की अब बहुत ज़रूरत है। मौलाना मदनी ने कहा कि इसका हल यह है कि मुसलमान लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग शैक्षणिक संस्थान खोलें, जहां सुरक्षित धार्मिक वातावरण में क़ौम के बच्चे और बच्चियां शिक्षा प्राप्त कर सकें। उन्होंने कहा कि अगर अभी कुछ न किया गया तो दस साल बाद यह स्थिति विस्फोटक भी हो सकती है। अपनी बात को जारी रखते हुए उन्होंने यह भी कहा कि आप इस उम्मीद में बिलकुल भी न रहें कि सरकारें आपके लिए कुछ करेंगी, क्योंकि 1947 से ही सभी राजनीतिक दलों में घुसे हुए सांप्रदायिक लोगों की सर्वसम्मत नीति यह है कि मुसलमानों को अपने पैरों पर खड़ा न होने दें, यही कारण है कि आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी मुसलमान देश का सबसे पिछड़ा वर्ग है। यहां तक कि वह हर क्षेत्र में दलितों से भी पीछे हैं। मौलाना मदनी ने कहा कि, आज़ादी के बाद शासकों की एक निश्चित नीति के अंतर्गत मुसलमानों को शैक्षिक और आर्थिक क्षेत्र से बाहर कर दिया गया। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट इसकी गवाही देती है इसलिए अब समय आगया है कि मुसलमान पेट पर पत्थर बांध कर अपने बच्चों को शिक्षा दिलवाएं।उन्होंने कौम के प्रभावशाली लोगों से यह अनुरोध किया कि वह अधिक से अधिक लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग ऐसे स्कूल और काॅलेज बनाएँ जहां वह धार्मिक वातावरण में आसानी से शिक्षा प्राप्त कर सकें। आज मुसलमानों में पढ़े लिखे लोगों की कमी नहीं है, उनमें शिक्षा प्राप्त करने का चलन बढ़ा है। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मुसलमानों ने जीवित रहने और आगे बढ़ने का साहस नहीं खोया है। उन्होंने कहा कि, आज भी उत्तर भारत में अच्छे और गुणवत्तापूर्ण शिक्षण संस्थानों की कमी है इसलिए मैं कहता हूं कि आधुनिक शिक्षा के लिए आधुनिक स्कूल और काॅलेज भी ज़रूरी हैं. आपके पास साधन नहीं हैं, कोई बात नहीं, किसी झोंपड़ी में बच्चियों के लिए स्कूल खोल दें, आप अगर ऐसा करेंगे तो यह प्रमाणित कर देंगे कि आपके अंदर राष्ट्रीय चेतना है और आप एक जिंदा कौम हैं. ऐसा नहीं करेंगे तो मुर्दा हो जाएंगे।
मौलाना मदनी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि, जमीअतम उलमा हिंद हर प्रकार की सांप्रदायिकता के खिलाफ है क्योंकि यह देश की एकता एवं शांति के लिए घातक है।उन्होंने यह भी कहा कि आज़ादी के बाद जब धर्म के आधार पर देश को विभाजित करने की कुछ लोगों की ओर से साज़िश हुई तो उसके खिलाफ उठने वाली पहली आवाज़ जमीअतम उलमा-ए-हिंद की थी। रिपोर्ट अशोक झा