बंगाल भी बनेगा सोनार बांग्ला, सिर्फ जरूरत है नेक इरादे का : भाजपा

अशोक झा, सिलीगुड़ी: बंगाल और हिंसा दोनों दशकों से एक दूसरे के पूरक है। विकास में पिछड़े होने का मुख्य कारण ही हो रही हिंसा है। तीन लोकसभा सीटों पर हो रहे चुनाव के दौरान इस बात की जमकर चर्चा हो रही है। भाजपा नेता सह विहार के मंत्री दिलीप जायसवाल नितिन मिश्रा का कहना है की बंगाल में नक्सलबाद का जन्म हुआ। आज विकास के कारण नक्सलवाद लगभग समाप्त हो गई। असम में हिंसा के कारण विकास नहीं हो पा रहा था। जब से भाजपा वहां सत्ता में आई है तब से उग्रवाद खत्म हो गया है। संघ के थिंक टैंक कहे जाने वाले इंद्रेश कुमार का कहना है की जब कश्मीर बदल सकता है तो बंगाल क्यों नही? कश्मीर पर चर्चा करते हुए कहा की जहां गोली और पत्थर चलते थे आज वहां पद्म पुरस्कार विजेता सामने आ रहे है। कैसे स्कूल ड्रॉप आउट गुलाम नबी डार ने अखरोट की लकड़ी की नक्काशी में महारत हासिल। श्रीनगर के 72 वर्षीय मास्टर शिल्पकार गुलाम नबी डार उन 134 हस्तियों में से एक हैं, जिन्हें भारत के राष्ट्रपति ने इस साल के प्रतिष्ठित पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया।अखरोट की लकड़ी पर नक्काशी के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले इस कारीगर का नाम जम्मू के रोनालो राम और अन्य 110 पद्म श्री पुरस्कार विजेताओं के साथ आया। वह पहले ही 1984 में राज्य पुरस्कार और एक दशक बाद राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके हैं।राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने मास्टर शिल्पकार को सम्मानित किया, जिससे डार का मनोबल और महत्वाकांक्षा और अधिक बढ़ गई। गणतंत्र दिवस के मौके पर श्रीनगर के 72 वर्षीय मास्टर शिल्पकार गुलाम नबी डार को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। 72 वर्षीय मास्टर शिल्पकार गुलाम नबी डार का मानना है कि पारंपरिक कलाओं को संरक्षित करने के लिए सरकारी मान्यता और समर्थन बहुत महत्वपूर्ण है।श्रीनगर के 72 वर्षीय मास्टर शिल्पकार गुलाम नबी डार को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। 72 वर्षीय मास्टर शिल्पकार गुलाम नबी डार का मानना है कि पारंपरिक कलाओं को संरक्षित करने के लिए सरकारी मान्यता और समर्थन बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने बड़ी कम उम्र में ही लड़की पर नक्काशी का कार्य शुरू कर दिया था। उनको काम सिखाने वाले उनके गुरु का नाम नूरुद्दीन टिकू था।छह दशकों से अधिक समय तक अपनी कला के प्रति उनके अटूट समर्पण ने उन्हें कई प्रशंसाएं दिलाई, जिसकी परिणति देश के 75वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर घोषित इस राष्ट्रीय मान्यता के रूप में हुई। कम उम्र में सीखी थी लड़की पर नक्काशी
कई लोगों का मानना है कि डार को पुरस्कार मिलना कश्मीर के इतिहास में डूबी इस कला के पुनरुद्धार के लिए काम करेगा। शुक्रवार को गुलाम नबी डार ने अपनी कठिन यात्रा के बारे में बात की और बताया कि वह बड़ी प्रतिकूल परिस्थितियों में जन्मे थे। उन्होंने बड़ी कम उम्र में ही लड़की पर नक्काशी का कार्य शुरू कर दिया था। उनको काम सिखाने वाले उनके गुरु का नाम नूरुद्दीन टिकू था, जिन्होंने कागजों पर जटिल डिजाइनों के माध्यम से उनको काम सिखाया।सीखने का किया दृढ़ निश्चय
डार ने कहा कि पांच साल लकड़ी पर नक्काशी सीखने के बाद वह कुछ खास नहीं कर पाए थे, लेकिन वहां रहते रहते उनकी इस काम में रुचि बढ़ गई थी। उन्होंने फैसला लिया कि वह अपनी आजीविका चलाने के लिए इस काम को सीखेंगे। उन्होंने बताया कि इस काम को सीखने में उनको काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्होंने बताया कि मैं कई कारीगरों के पास गया लेकिन उन्होंने मुझे यह कहकर लौटा दिया कि मैं नहीं सीख पाऊंगा, लेकिन मैंने दृढ़ निश्चय किया और कड़ी मेहनत की। रिपोर्ट अशोक झा

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