आज मनाया जा रहा है धर्मगुरु दलाई लामा की 89 वां जन्मदिन

आज मनाया जा रहा है धर्मगुरु दलाई लामा की 89 वां जन्मदिन
– सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग हो रहे शामिल
– महज दो साल की उम्र में चुन लिया गया दलाई लामा
अशोक झा, सिलीगुड़ी: धर्मगुरु दलाई लामा की 89वीं जन्मतिथि आज शनिवार को मैक्लोडगंज स्थित मुख्य बौद्ध मंदिर में मनाई जा रही है। इस दौरान विशेष पूजा-अर्चना भी की जाएगी और मुख्य अतिथि सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग होंगे। तिब्बत के अमदो के तकत्सेर में 6 जुलाई 1935 को जन्मे एक बच्चे को महज दो साल की उम्र में दलाई लामा चुन लिया गया। तिब्बत के आध्यात्मिक नेता चुने जाने के समय उसे पता भी नहीं था कि उसके सामने क्या चुनौतियां आने वाली हैं। समय बीतने के साथ चीन की बुरी नजरें तिब्बत पर गड़ती चली गईं और वह दलाई लामा को दुश्मन मानने लगा, क्योंकि तिब्बत पर चीन के अधिकार की राह में वह रोड़ा बने हुए थे। तिल और लम्बे कान वाले इस बच्चे का नाम तेनजिन ग्यात्सो रखा गया, जो आज 14वें दलाई लामा के रूप में पूरी दुनिया में जाना जाता है। आज दलाई लामा भले ही भारत में निर्वासन का जीवन व्यतीत कर रहे हैं पर पूरी दुनिया में बसे तिब्बतियों के मन में उनके प्रति वही सम्मान है. उनके जन्मदिन पर आइए जान लेते हैं दलाई लामा बनने और चीन की दुश्मनी की पूरी कहानी।
भगवान बुद्ध के बाद सबसे ऊंचा स्थान: वास्तव में मंगोलियाई भाषा में दलाई का अर्थ है सागर और लामा का मतलब है गुरु तिब्बत में बौद्ध धर्म में भगवान बुद्ध के बाद सबसे ऊंचा स्थान दलाई लामा को प्राप्त है. इनमें बौद्ध भगवान बुद्ध की छवि देखते हैं. तिब्बती बौद्धों के लिए दलाई लामा धार्मिक के साथ ही राजनीतिक गुरु भी होते हैं. दलाई लामा के चयन की प्रक्रिया आसान नहीं होती है। एक दलाई लामा के रहते किसी दूसरे को इस पद के नहीं चुना जाता है, क्योंकि मान्यता है कि दलाई लामा एक ही व्यक्ति होता है और उसका बार-बार पुनर्जन्म होता है. इसलिए दलाई लामा की मृत्यु के बाद ही अगले दलाई लामा की खोज शुरू की जाती है. तब तक इस पद को अस्थायी तौर पर किसी विद्वान को दिया जाता है, क्योंकि दलाई लामा की खोज सालों चल सकती है। चीन दलाई लामा को बंधक बनाना चाहता था इसलिए वो तिब्बत की राजधानी ल्हासा से निकल गए और भारत आकर शरण ली।13वें दलाई लामा का पुनर्जन्म: पहले संकेतों के आधार पर दलाई लामा के बारे में अंदाजा लगाया जाता है. इसके बाद परीक्षा होती है. चुने गए व्यक्ति से दलाई लामा से संबंधित वस्तुओं की पहचान और कुछ सवाल पूछे जाते हैं. सारे प्रमाण जब मिल जाते हैं तब सरकार को इसके बारे में बताया जाता है. 13वें दलाई लामा की मृत्यु के बाद खोज शुरू हुई तो तकत्सेर के छोटे से गांव में एक किसान परिवार में जन्मे जेट्सन जम्पेल न्गवांग लोबसंग येशे तेनज़िन ग्यात्सो पर जाकर रुकी. लंबे कान, तिल और अन्य पहचान के आधार पर उनको 13वें दलाई लामा थुबतेन ग्यात्सो का पुनर्जन्म माना गया. केवल दो साल की उम्र में उनका नाम ल्हामो धोंडुप रखा गया।
15 साल की उम्र में संभाली राजनीति: साल 1939 में बुमचेन शहर के पास सार्वजनिक रूप से उनको 14वें दलाई लामा के रूप में मान्यता दी गई. 22 फरवरी 1940 को ल्हासा में उनका राज्याभिषेक हुआ और 17 नवंबर 1950 को केवल 15 साल की उम्र में पूरी तरह से राजनीतिक कर्तव्यों को भी संभाल लिया. इसके साथ ही वह चीन के निशाने पर आ गए, क्योंकि चीन चाहता था कि दलाई लामा का चयन उसकी इच्छा के अनुसार हो. वैसे भी तिब्बत और चीन के बीच विवाद का इतिहास काफी पुराना है. साल 1912 में तिब्बत के 13वें दलाई लामा ने उसको स्वतंत्र देश घोषित किया था। तब चीन ने कोई आपत्ति नहीं जताई पर बाद में उसकी नीयत बदल गई।चीन अपनी विस्तारवादी नीति के कारण मानता है दुश्मन: इसके करीब 40 साल बाद चीन में कम्युनिस्ट शासन आया. साल 1950 में चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने अपनी विस्तारवादी नीति आगे बढ़ाई और हजारों सैनिकों ने तिब्बत पर चढ़ाई कर दी. करीब आठ महीने तक चीन धीरे-धीरे तिब्बत पर कब्जा करता रहा. 23 मई 1951 को चीन के दबाव में दलाई लामा को एक समझौते पर हस्ताक्षर करने पड़े. इसके बावजूद चीन इस देश पर कब्जा करता रहा, जिसके कारण 1955 में उसके खिलाफ पूरे तिब्बत में प्रदर्शन शुरू हो गए. इन्हीं प्रदर्शनों के बीच साल 1959 में सूचना आई कि चीन दलाई लामा को बंधक बना लेगा तो दलाई लामा सैनिक के वेश में तिब्बत की राजधानी ल्हासा से निकल गए और भारत आकर शरण ली. तब से दलाई लामा यहीं रहते हैं. इसके कारण दलाई लामा ही नहीं, भारत को भी चीन अपना दुश्मन मानता है। रिपोर्ट अशोक झा

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