सबका साथ समाज का विकास है मंच का मूल मंत्र: अत्रि शर्मा

यह किसी एक समाज का नहीं बल्कि 26 वर्षों से हिंदी भाषियों की आवाज है

अशोक झा, सिलीगुड़ी: बिहारी कल्याण मंच के नव निर्वाचित अध्यक्ष अधिवक्ता अत्रि शर्मा ने वरिष्ठ पत्रकार अशोक झा से विशेष बातचीत में कहा की मंच सबका साथ समाज का चहुमुखी विकास के लिए कृत संकल्पित है। कुछ लोग संगठन के नाम में बिहारी शब्द को देख एक जाति विशेष से जोड़ने की कोशिश करते है जो गलत है। यह मंच पिछले 26 वर्षों से समाज में रहकर समाज के लिए काम कर रही है। इसमें हिंदीभाषी सभी समाज के लोग जुड़े है। अब सवाल उठता है की बंगाल में बिहारी कल्याण मंच की जरूरत क्यों पड़ी? सवाल लाजमी है। अब आपको बता दे की बंगाल का उत्तर बंगाल क्षेत्र मिनी इंडिया है। जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 16 जून 1925 को निधन से पहले ‘देशबंधु’ चित्तरंजन दास गंभीर रूप से बीमार हो गए थे। उन्हें देखने बापू यहां आए थे। सियालदह से दार्जिलिंग मेल द्वारा सिलीगुड़ी जंक्शन (अब सिलीगुड़ी टाउन स्टेशन) पहुंचे। यहां से दार्जिलिंग गए। सफर में यहां के तत्कालीन दिग्गज कांग्रेसी नेता शिवमंगल सिंह भी उनके साथ थे। दार्जिलिंग के माल स्थित चित्तरंजन दास के घर जाकर गांधी जी ने हालचाल लिया। एक रात्रि विश्राम भी किया। अगले दिन वापसी के क्रम में महात्मा गांधी सिलीगुड़ी में शिवमंगल सिंह के मकान पर ठहरे। वहीं, कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं संग बैठक की थी। आज उसी स्थान पर बने होटल में मंच का कार्यालय है। उत्तर बंगाल का सिलीगुड़ी सबसे बड़े बिजनेस हब और बाजार है। इसकी चहल-पहल के बीच हिंदी और इससे जुड़ी बोलियां बोलने वाले लोगों को देखकर आपको एहसास होगा कि आप किसी हिंदी भाषी प्रदेश में आ गए हैं। यहां यूपी-बिहार, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों से आए लोग पीढ़ियों से बसे हैं। इसीलिए इसे ‘मिनी भारत’ भी कहा जाता है। संख्या के लिहाज से हिंदी बोलने वाले सबसे ज्यादा हैं। यह तो एक सैंपल है, जिससे बंगाल में हिंदी भाषियों की मौजूदगी का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसके अलावा जलपाइगुड़ी, कूच बिहार, इस्लामपुर, रायगंज, कोलकाता, नॉर्थ 24 परगना, आसनसोल, दुर्गापुर, पुरूलिया और खड़गपुर में हिंदी भाषियों की तादाद इतनी है कि वे चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
अगर हिंदी भाषियों की बात करे तो बंगाल में करीब सवा करोड़ से ज्यादा हिंदी भाषी हैं। जिनमें से करीब 72 लाख वोटर हैं। माकपा के शासनकाल में हिंदीभाषी और बिहारी को मजदूरों से तुलना किया जाता था। लेकिन आपको पता होना चाहिए की हिंदी भाषियों का प्रभाव इसी से पता चलता है कि सिलीगुड़ी हो या कोलकाता के ज्यादातर बड़े उद्योगपति नॉन बंगाली हैं। ये राजस्थान-बिहार जैसे राज्यों से यहां आकर बसे हैं। बाजार का पूरा कंट्रोल इन्हीं उद्योगपतियों के हाथ में है। जब ऐसे लोगों के साथ भी दोयम दर्जे का व्यवहार होने लगा तो 26 साल पहले साम संगठित होकर अपनी एकता की आबाज बुलंद करना शुरू किया। सरकार और राजनीतिक पदों में अपनी भागेदारी बढ़ाई। ‘हिंदी भाषी कई सीटों पर निर्णायक हैं, इसलिए हर पार्टी उन्हें लुभाने की कोशिश कर रही है। सिलीगुड़ी जैसे जिले में तो इनकी आबादी 50% के करीब है। यह भी एक कारण हो सकता है की पिछले दस साल में राज्य में ममता सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया कि हिंदी भाषी उनसे नाराज हो जाएं। राज्य सरकार ने छठ पूजा पर यहां दो दिनों की छुट्‌टी कर रखी है। पिछले दस सालों में दीदी ने राज्य में 600 हिंदी मीडियम के स्कूल दिए। 7 कॉलेज दिए, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। मंच का लक्ष्य होगा की संगठित तरीके से आज के युवा को सभी स्तर का सम्मान समाज और सरकार में मिले। इसमें महत्वपूर्ण भूमिका हमारी नई टीम की होगी। यह टीम दो वर्षों में समाज में निर्णायक भूमिका में नजर आएगी।

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