बंगाल में चाहिए मजबूत लड़ाकू प्रदेश अध्यक्ष जो आपसी विवाद पर ले कड़ा एक्शन

अशोक झा, सिलीगुड़ी: पश्चिम बंगाल भारतीय जनता पार्टी 2021 के विधानसभा चुनावों से लेकर हाल के लोकसभा इलेक्शन तक लगातार मिली नाकामयाबी के मद्देनजर राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस से मुकाबला करने के लिए अपनाई जाने वाली रणनीति को लेकर असमंजस में दिख रही है। बैठक में लोकसभा चुनावों में उम्मीद से कम सीटें आने पर मंथन चल रहा था। सच्चाई यह है की भाजपा को प्रदेश में मजबूत, लड़ाकू और कार्यकर्ताओं के साथ संघ और उनसे जुड़े संगठनों को साथ लेकर काम करने बाला अध्यक्ष चाहिए। जब दिलीप घोष अध्यक्ष थे वोट बैंक ना सिर्फ बदला था कारकर्ताओ में डबल उत्साह था। अगर भाजपा को बंगाल में 2026 विधानसभा में सीट बढ़ाना या वर्तमान विधायकों की सीट बचाना है तो अभी फैसला करना होगा। बीजेपी के नेता लगातार दावा कर रहे थे कि लोकसभा चुनाव में पार्टी 25 से ज़्यादा सीटें लाएगी।मगर वो 12 सीटों पर ही सिमट गई, जबकि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को 29 सीटों पर जीत मिली।
प्रदेश बीजेपी में संकट?: कभी बेहद मुखर रहे बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ख़ुद बर्दवान-दुर्गापुर सीट से चुनाव हार गए थे। दिलीप घोष अब एक तरह के अज्ञातवास में हैं। अब वो सार्वजनिक तौर पर ज़्यादा बोलते नहीं हैं, न ही राजनीतिक कार्यक्रमों में नज़र आते हैं। दिलीप घोष वर्ष 2015 से लेकर 2021 तक पश्चिम बंगाल में पार्टी के अध्यक्ष रहे और एक समय में वो जनसंघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता भी रह चुके हैं।वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव में जिस तरह पश्चिम बंगाल की राजनीति में बीजेपी का उदय हुआ और उसने प्रदेश में क़रीब 38 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया, उसका काफ़ी श्रेय दिलीप घोष को भी दिया जाता है। 2021 में ही पार्टी ने उन्हें हटाकर सुकांता मजूमदार को प्रदेश की कमान थमा दी थी।प्रदेश में पार्टी के प्रदर्शन पर हो रहे मंथन कार्यक्रम में दिलीप घोष ने जब बोलना शुरू किया तो सब सकते में आ गए।उन्होंने इस बैठक में मंच से कहा था, “भारतीय जनता पार्टी को संगठन मज़बूत करना आता है. आंदोलन किस तरह चलाया जाए, ये भी आता है. मगर चुनाव कैसे जीता जाए, ये उसे नहीं आता।दिलीप घोष प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं और संगठन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं।
यहीं से प्रदेश बीजेपी की अंतर्कलह भी सामने उभर कर आ आई। इसी के जवाब में मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने दिलीप घोष का नाम तो नहीं लिया मगर उन्होंने कहा, “लोग हर चीज़ की जानकारी लेकर पैदा नहीं होते हैं।उपचुनाव समीक्षा बैठक में भी हंगामा: 21 जुलाई को पार्टी के ही एक कार्यक्रम में विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने कुछ ऐसा कह दिया जिससे प्रदेश से लेकर दिल्ली तक संगठन के नेताओं को सफ़ाई देनी पड़ी। अपने तीख़े तेवरों के लिए जाने जाने वाले शुभेंदु अधिकारी मंच से बोल पड़े, ”सबका साथ सबका विकास नहीं चाहिए. सिर्फ़ उसी का विकास जिसका साथ।फिर उन्होंने मंच से ही अल्पसंख्यक मोर्चे को भंग कर देने का सुझाव दिया।इसी बैठक में पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चे के नेता भी मौजूद थे जो निरुत्तर बैठे रहे।’सबका साथ, सबका विकास’ बीजेपी का नारा रहा है।चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर के साथ इसका काफ़ी इस्तेमाल किया जाता रहा है। ज़ाहिर सी बात है कि संगठन को शुभेंदु के इस बयान पर एक के बाद एक सफ़ाई देनी पड़ी क्योंकि उनका बयान पार्टी की लाइन पर भी नहीं था और वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के ख़िलाफ़ भी था।ऐसा कहा जाता है कि उन्हें इस बयान के बाद फ़ौरन दिल्ली तलब किया गया जहां उनकी मुलाक़ात पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह से भी हुई। तीनों नेताओं के बीच क्या बातचीत हुई वो सार्वजनिक नहीं की गई और उस पर कोई चर्चा भी नहीं कर रहा है। हाल ही में पश्चिम बंगाल विधान सभा की तीन सीटों पर उपचुनाव हुए थे और तीनों ही सीटें तृणमूल कांग्रेस के खाते में चली गईं। इसकी समीक्षा बैठक में काफ़ी हंगामा हुआ था।

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