80 साल के उम्र में बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का निधन
बंगाल में शोक की लहर, ममता ने जताया दुख
अशोक झा, कोलकोता: बुद्धदेव भट्टाचार्य को कम्युनिस्ट पार्टी के वामपंथी दल में एक परिवर्तनकारी नेता के रूप में देखा जाता था। पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का 80 साल की उम्र में आज निधन हो गया। उन्होंने सुबह 8.20 बजे अपने आवास पर अंतिम सांस ली। काफी लंबे वक्त से बीमार चल रहे थे। उनके करीबी रहे सहयोगी अशोक नारायण भट्टाचार्य का कहना है की पार्टी के कुछ कॉमरेड उन्हें मार्क्सवादी कम, बंगाली ज़्यादा मानते थे। उनके पहनावे और बातचीत के सलीके के चलते कुछ दूसरे कॉमरेड उन्हें भद्रलोक कहा करते थे। आर्थिक उदारवाद लागू करने और पूंजीवाद के साथ तालमेल बिठाने के चलते कुछ कॉमरेड उन्हें ‘बंगाली गोर्बाचोव’ भी कहते थे। पूर्व मुख्यमंत्री की मौत पर राज्य के मौजूदा सीएम ममता बनर्जी ने दुख जाहिर करते हुए एक्स पर पोस्ट किया। उन्होंने लिखा-“आकस्मिक निधन से स्तब्ध और दुखी हूं। मैं पिछले कई दशकों से उन्हें जानती हूं। पिछले कुछ वर्षों में जब वह बीमार थे और प्रभावी रूप से घर पर ही थे, तब मैंने उनसे कई बार मुलाकात की थी। दुख की इस घड़ी में मीरादी और सुचेतन के प्रति मेरी हार्दिक संवेदना। मैं CPI(M) पार्टी के सदस्यों और उनके सभी अनुयायियों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करती हूं। हमने निर्णय ले लिया है कि उनकी अंतिम यात्रा और संस्कार के दौरान उन्हें पूरा सम्मान देंगे। पहले ज्योति बसु की कैबिनेट में अहम मंत्री और बाद में 2000 से लेकर 2011 तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के तौर पर, मैं उन्हें ऐसे शख़्स के तौर पर देखता रहा जिन्हें दिन भर की कामकाजी व्यस्तता के बाद यूरोपीय फ़िल्मकारों की बेहतरीन फ़िल्में देखना पसंद था। बंगाल में वाम मोर्चे के 34 साल के शासन के दौरान भट्टाचार्य दूसरे और आखिरी माकपा मुख्यमंत्री थे जो वर्ष 2000 से 2011 तक लगातार 11 साल तक पद पर रहे।भट्टाचार्य को 29 जुलाई 2023 को कई बीमारियों के चलते कलकत्ता के अलीपुर में एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उनका निमोनिया का इलाज चल रहा था और उन्हें वेंटिलेशन पर रखा गया था. लेकिन इलाज के बाद उनकी हालत में सुधार हुआ और 9 अगस्त को उन्हें छुट्टी दे दी गई। माकपा के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने कहा, ‘बुद्धदेव भट्टाचार्य का गुरुवार सुबह निधन हो गया. अचानक उनकी तबीयत खराब हुई थी, डॉक्टर आए, लेकिन वे ज्यादा कुछ नहीं कर सके… अंतिम संस्कार 9 अगस्त को किया जाएगा. उन्होंने अपना शरीर दान कर दिया था, इसलिए इसे मेडिकल कॉलेज को सौंप दिया जाएगा। लंबे समय से श्वांस संबंधी बीमारी से पीड़ित भट्टाचार्य ने अपने खराब स्वास्थ्य के कारण पांच साल से अधिक समय तक सार्वजनिक जीवन से दूरी बनाए रखी थी।माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य के रूप में उन्होंने 2015 में पार्टी की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था और केंद्रीय समिति से इस्तीफा दे दिया था।2016 से वे अपने बिगड़ते स्वास्थ्य और कम होती दृष्टि के कारण पाम एवेन्यू पर अपने छोटे से अपार्टमेंट में ही सीमित थे. 2018 की शुरुआत में उन्होंने पार्टी की केंद्रीय समिति और पोलित ब्यूरो से और उसी साल मार्च में माकपा राज्य समिति से अपने स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के कारण इस्तीफा दे दिया था. पार्टी ही उनके मेडिकल खर्चों को वहन कर रही थी।वर्ष 2022 में जब एनडीए सरकार ने उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार देने की घोषणा की तो उन्होंने इसे लेने से मना कर दिया था। भट्टाचार्य का कहना था, ‘मैं इस पुरस्कार के बारे में कुछ नहीं जानता. इस बारे में मुझे किसी ने कुछ नहीं बताया।अगर उन्होंने मुझे पद्म भूषण देने का फैसला किया है, तो मैं इसे स्वीकार करने से इनकार करता हूं।कवि और अनुवादक भट्टाचार्य एक शौकीन पाठक थे और गैब्रियल गार्सिया मार्केज़ उनके पसंदीदा लेखकों में से एक थे।भट्टाचार्य को राज्य में बहुचर्चित टाटा नैनो कार परियोजना सहित प्रमुख परियोजनाओं को लाने के लिए भी जाना जाता है. इस परियोजना का उद्देश्य दुनिया की सबसे सस्ती कार का उत्पादन करना था और इसके विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) संयंत्र के लिए सिंगूर को चुना गया था। भट्टाचार्य के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने 2006 में इस परियोजना के लिए सिंगूर में 997 एकड़ भूमि अधिग्रहित की और इसे टाटा मोटर्स को सौंप दिया. हालांकि, तत्कालीन विपक्षी नेता और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख ममता बनर्जी द्वारा भूमि अधिग्रहण के विरोध के कारण 2008 में इस परियोजना को रद्द कर दिया गया था। अक्टूबर 2010 में उद्योगपति रतन टाटा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री के साथ एक संक्षिप्त बैठक के बाद टाटा नैनो परियोजना को राज्य से बाहर ले जाने का फैसला किया. जब परियोजना को बंगाल से बाहर ले जाने के कारण के बारे में पूछा गया, तो उद्योगपति ने ममता बनर्जी के नेतृत्व वाले विपक्षी आंदोलन पर अपनी निराशा का जिक्र किया था।बढ़ते विरोध और राजनीतिक दबाव के कारण टाटा ने नैनो कार परियोजना को गुजरात में स्थानांतरित करने का फैसला किया. भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया के कारण विभिन्न विवाद हुए, जिसमें एक मध्यस्थ न्यायाधिकरण ने टाटा मोटर्स को टाटा नैनो कार परियोजना की विफलता के कारण हुए नुकसान के लिए 766 करोड़ रुपये से अधिक का मुआवजा दिया था।