भारतीय परम्परा महाकुम्भ का काशी के पातालपुरी मठ में हुआ शुभारम्भ
रामपंथ को दलित और वनवासी समाज को दीक्षित करने की मिली जिम्मेदारी

वाराणसी। विशाल भारत संस्थान द्वारा आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय सुभाष महोत्सव के चौथे दिन नरहरिपुरा स्थित पातालपुरी मठ में भारतीय परम्परा महाकुम्भ का आयोजन किया गया। पूर्वजों और परम्पराओं के जरिये समाज को जोड़ने और नेताजी सुभाष के धर्म पथ पर चलने के लिये काशी के संतों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, मुस्लिम ब्राह्मणों का जुटान पातालपुरी मठ में हुआ। परम्परा महाकुम्भ के मुख्य अतिथि इंडियन बैंक के उप महाप्रबंधक संचित कुमार, मुख्य वक्ता प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय परिषद सदस्य रामाशीष सिंह, अध्यक्षता कर रहे काशी धर्म परिषद के अध्यक्ष महंत बालक दास जी महाराज ने संयुक्त रूप से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मूर्ति पर माल्यार्पण कर एवं दीपोज्वलन कर परम्परा महाकुम्भ का शुभारंभ किया। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मूर्ति पर माल्यार्पण कर इतिहास के महानायक सुभाष को सन्यासी सुभाष कहकर सम्बोधित किया।
पातालपुरी मठ के पीठाधीश्वर महंत बालक दास जी महाराज ने संचित कुमार, रामाशीष जी, गोविन्द दास, अंजनी दास एवं डॉ० कवीन्द्र नारायण को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया। बाल आजाद हिन्द बटालियन की सेनापति दक्षिता भरतवंशी ने अतिथियों को सलामी दी। वनवासी बच्चों ने रुद्राष्टकम सुनाकर सबका मन मोह लिया।
मुख्य वक्ता रामाशीष सिंह ने कहा कि भारतीय संस्कृति की परम्परा त्याग एवं आत्मोत्सर्ग की रही है। हमने अपनी परम्पराओं, संस्कार, अचार विचार से दुनिया को प्रभावित किया। भेदभाव रहित समाज का निर्माण किया। स्वामी विवेकानंद एवं नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने अपना सम्पूर्ण जीवन धर्म एवं देश की रक्षा करने के लिये लगा दिया। नेताजी अपने जीवन एवं अचार विचार से देश के प्रति अपने कर्तव्य बोध की भावना को जागृत करते हैं। धार्मिक रहे, धर्म के कर्तव्य का पालन करें, प्रकाश की तरफ आगे बढ़ें, यही हमारे देश की परंपरा रही है।
मुख्य अतिथि संचित कुमार ने कहा कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने सामाजिक दूरियां कम करके देश को आजादी दिलाई। भारत की आजादी उनके वीरता, शौर्य एवं पराक्रम से मिली। हैम सभी को उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए।
अध्यक्षता कर रहे महंत बालक दास जी महाराज ने कहा कि हमारा देश संबंधों और संस्कारों के लिये जाना जाता है। संस्कार विहीन शिक्षा समाज को गलत दिशा में ले जाती है। हमारे देश में अनेक ऐसे अवतार हुए जिनके जीवन से हमे जीवन जीने की कला प्राप्त होती है। आज सुभाष जी की वजह से हम स्वतंत्रता पूर्वक जीवन जी रहे हैं।
विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ० राजीव श्रीगुरुजी ने कहा कि पूरब से पश्चिम तक, उत्तर से दक्षिण तक जड़ों से जुड़ने का महाअभियान विशाल भारत संस्थान चला रहा है। जिनके पूर्वज मिल रहे हैं, उनको अपनी परम्पराएं भी याद आ रही है। गांव और गोत्र की खोज इसमें प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। मुसलमानों की ओर से यह अभियान चल रहा है कि हम अरबी, तुर्की, ईरानी, मंगोलियन उपनाम नहीं लगाएंगे। हमारे पूर्वज जो थे वही उपनाम हम लगाएंगे। अब भारतीय परम्पराओं का पालन करने का घर-घर अभियान चल रहा है। हिन्दू और मुसलमानों के पूर्वज जब एक ही हैं, तो परम्पराएं भी समान है। हम एक दूसरे से रिश्तों को तलाश कर स्वीकार्यता के सिद्धांत को अपनाएं।
विशिष्ट अतिथि गोविन्द दास जी महाराज ने कहा कि यदि सुभाष बाबू नहीं होते तो हमे आज़ादी नहीं मिलती। हम सभी को उनके रास्ते पर चलने की जरूरत है।
संचालन मयंक श्रीवास्तव ने किया एवं धन्यवाद ज्ञान प्रकाश जी ने दिया। इस अवसर पर डॉ० कवीन्द्र नारायण, अंजनी दास जी महाराज, डॉ० अर्चना भारतवंशी, डॉ० मृदुला जायसवाल, डॉ० नजमा परवीन, नाज़नीन अंसारी, आभा भारतवंशी, नौशाद अहमद दूबे, शंकर पाण्डेय, कुँअर नसीम रज़ा सिकरवार, सत्यम राय, शिवशरण सिंह, सौरभ पाण्डेय, सत्यम सिंह, आकाश यादव, धनंजय यादव, इली भारतवंशी, खुशी भारतवंशी, उजाला भारतवंशी, दक्षिता भारतवंशी, किसन वनवासी, हरि शंकर सिन्हा, डी०एन० सिंह आदि सैकड़ों लोग मौजूद रहे।