ईद का दिन है गले आज तो मिल ले जालिम,रस्म-ए-दुनिया भी है मौका भी है दस्तूर भी

– वास्तव में यह त्यौहार समाज में मिठास घोलने का त्यौहार
– किसी प्रकार की सामाजिक कलुषता के लिए कोई स्थान नहीं होता
अशोक झा, सिलीगुड़ी: आज सिलीगुड़ी में ईद का चांद नजर आया है। कल बड़े ही धूमधाम से ईद मनाया जाएगा।ईद-उल-फितर का त्योहार खुशियों, बरकतों और मोहब्बत की सौगात लेकर आता है। रमजान के पूरे महीने इबादत, रोजे और सब्र के बाद जब ईद का चांद नजर आता है, तो हर दिल खुशी से झूम उठता है। ये दिन केवल उत्सव नहीं, बल्कि आपसी प्रेम, भाईचारे और दुआओं का संगम होता है।भारत में ईद कब मनाई जाएगी। ध्यान दें कि 29 मार्च को सऊदी अरब में चांद देखा गया तो इस तरह वहां आज 30 मार्च, रविवार को ईद मनाई जा रही है। वहीं, भारत में चांद 30 मार्च को दिखने के आसार हैं. ऐसे में भारत में 31 मार्च, सोमवार को ईद-उल-फितर मनाई जा सकती है। आमतौर पर भारत में ईद सऊदी अरब के एक दिन बाद मनाई जाती है. वहीं, जब रोजा शुरू होने की बात आती है तो सऊदी अरब में इस साल रमजान 1 मार्च से और भारत में 2 मार्च से हुई थी। सऊदी में रोजा भी पहले शुरू हुआ और ईद भी पहले मनाई जा रही है। गरीबों में फितरा:इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार रमजान महीने की 29वीं या 30वीं की रात को जब चांद दिख जाता है तो ईद मनाई जाती है। चांद दिखने के बाद ही ईद की तैयारियां जोरों पर शुरू कर दी जाती है। ईद की नमाज से पहले ‘फितरा’ देना होता है ताकि गरीबों और जरूरतमंदों को भी ईद की खुशियां मनाने में कोई दिक्कत न हो। अपने सामर्थ्य के हिसाब से मुसलमान फितरा दे सकते हैं। फितरा में तीन किलो गेहूं या तीन किलो चावल की राशि घर के हर सदस्य के लिए निकालने का विधान है. फिर इस राशि को गरीबों में बांट दिया जाता है।कैसे मनाई जाती है ईद:ईद के दिन मुसलमानों के घर एक से एक पकवान बनते हैं, नए कपड़े पहने जाते हैं, घर पर सेवइयां बनाई जाती है. रमजान के महीने में रोजों के दौरान और इबादत करने के बाद अल्लाह की तरफ से ईद का दिन इनाम के तौर हर एक मुसलमान को दिया जाता है, ऐसी मान्यता है. करीब करीब हर बार ऐसा होता है कि भारत से एक दिन पहले ही सऊदी अरब में ईद का चांद दिखाई देता है और जिस दिन सऊदी अरब में ईद मनाई जाती है उससे अगले दिन भारत में ईद होती है। भारत की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह तीज-त्यौहारों का मुल्क है। इस दिन का इतंजार जितनी बेसब्री के साथ मुसलमान नागरिकों को रहता है उतनी ही शिद्दत के साथ हिन्दू नागरिक भी इसकी प्रतीक्षा करते हैं खास कर वे हिन्दू कारीगर और छोटा-मोटा धंधा करने वाले लोग जो खाने-पीने का सामान बेच कर अपने परिवार का पेट पालते हैं या बच्चों के लिए खिलौने व अन्य सामान बेचने का काम करते हैं। रेहड़ी-पटरी वाले या खोमचा लगा कर अपनी रोजी कमाने वाले हिन्दू दुकानदार इस दिन को बड़ी उम्मीद के साथ देखते हैं। भारत में मुस्लिम त्यौहारों पर भी भारतीयता की छाप रहती है। इस देश की रंग-रंगीली संस्कृति ने सभी धर्मों के लोगों को प्रभावित किया है। मीठी ईद पर मुस्लिम नागरिक अल्लाह की इबादत में विशेष नमाज पढ़ कर अपनी बेहतरी की दुआएं मागते हैं जिसमें जिस देश में वे रहते हैं उसकी बेहतरी भी शामिल होती है। नमाज पढ़ने के बाद वे एक-दूसरे से गले मिलकर सारे गिले-शिकवे दूर करते हैं। इस दिन कोई भी व्यक्ति अपनी माली हालत की वजह से छोटा-बड़ा नहीं होता है। इस्लाम धर्म का यह सन्देश समाज के सभी वर्गों के लिए होता है, अतः हिन्दू नागरिक भी दिल खोल कर मीठी ईद के दिन मुसलमान मित्रों के गले मिलते हैं। वास्तव में यह त्यौहार समाज में मिठास घोलने का त्यौहार है। इसीलिए इसे कुछ ग्रामीण इलाकों में सिवइयों वाली ईद भी कहा जाता है। आपसी भाईचारे का सन्देश देने वाली इस ईद में किसी प्रकार की सामाजिक कलुषता के लिए कोई स्थान नहीं होता। इसलिए भारत में यह परंपरा रही है कि इस दिन हिन्दू नागरिक अपने मुस्लिम मित्रों के घर जाकर उन्हें ईद की मुबारक बाद देते हैं। हम ईद मुबारक केवल सामाजिक रिश्तों को प्रगाढ़ करने के लिए ही नहीं कहते बल्कि मुल्क की खुशहाली के लिए भी कहते हैं क्योंकि वही देश स्थायी तरक्की करता है जिस देश में आपसी सामाजिक भाईचारा कायम रहता है। इसी वजह से इस दिन होने वाली नमाज में मुल्क की तरक्की के लिए भी दुआ मांगी जाती है। जिस प्रकार हम होली, दीवाली का त्यौहार मिलजुल कर मनाते हैं उसी प्रकार मीठी ईद का त्यौहार भी हमें मनाना चाहिए। किसी भी तरह के बैर-भाव को भूल कर आपस में गले मिलना चाहिए। यह भारत की ही विशेषता है कि यहां के सभी तीज-त्यौहार आपसी एकता को बढ़ावा देते हैं। इसकी वजह मूल रूप से इनका कृषि क्षेत्र की अर्थव्यवस्था से जुड़ना होता है। और जो व्यक्ति खेती करता है वह सबसे पहले एक किसान होता है हिन्दू-मुसलमान बाद में। यह गौर करने वाली बात है कि कोई भी इंसान भगवान या अल्लाह के यहां यह दरख्वास्त देकर जन्म नहीं लेता कि उसे हिन्दू या मुसलमान बनाया जाये। जो बालक जिस हिन्दू या मुसलमान के घर में जन्म लेता है वह उसी धर्म का पालन करने लगता है। अतः समाज में यह जज्बा सबसे प्रबल होना चाहिए कि वह सबसे पहले इंसान है क्योंकि अल्लाह या भगवान उसे इसी रूप में जन्म देता है। वह जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है वैसे-वैसे ही हिन्दू या मुसलमान बनता जाता है। सबसे पहले उसका धर्म इंसानियत ही होता है। अतः यह बेवजह नहीं है कि हमारे पुरखों ने हमें जो संविधान आजादी के बाद दिया वह मानवीयता पर ही टिका हुआ है। उसमें प्रत्येक हिन्दू-मुस्लिम को बराबर का दर्जा दिया हुआ है। धार्मिक पर्व या त्यौहार समाज में खुशी बांटने के लिए ही बने होते हैं। मीठी ईद से पहले रमजान के महीने में मुस्लिम नागरिक आत्मशुद्धि के लिए भी कार्य करते हैं। वे पूरे महीने रोजा या व्रत रखते हैं और दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं। पूरे महीने वे स्वयं को अल्लाह द्वारा बख्शी गई नेमतों के हवाले ही करते हैं। इन रोजों को रखने वाले मुसलमान नागरिक अमीर व गरीब भी होते हैं मगर इस्लाम धर्म के मुताबिक इस महीने हर मुस्लिम नागरिक अपने से गरीब नागरिक के लिए जकात भी देता है। वह अपनी आमदनी का एक अंश इस कार्य में लगाता है। हकीकत है कि भारत के 90 प्रतिशत मुसलमान आर्थिक रूप से बहुत पिछड़े हुए हैं। इनमें अधिकतर वे लोग हैं जिन्हें पसमांदा मुस्लिम कहा जाता है। सामाजिक एकता व सौहार्द को बनाये रखने के लिए मीठी ईद का असली सन्देश पढ़ना चाहिए। इस सिलसिले में देश के 32 लाख गरीब मुसलमानों को प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से जो ईद का तौहफा दिया जा रहा है उसका खैर मकदम भी होना चाहिए। उसकी आलोचना करना उचित नहीं है।