बांग्लादेश में विभिन्न हिस्सों में झड़प में 300 से अधिक लोगों की हो चुकी है मौत
बांग्लादेश में विभिन्न हिस्सों में झड़प में 300 से अधिक लोगों की हो चुकी है मौत
हिंसा थमने का नहीं ले रहा है नाम, इंटरनेट को पूरी तरह किया गया है बंद
अशोक झा, सिलीगुड़ी: बांग्लादेश में हिंसा के बाद हालात काफी नाजुक हैं। सरकार ने प्रदर्शनकारियों के आम जनता से ‘लॉन्ग मार्च टू ढाका’ में भाग लेने का आह्वान करने के बाद इंटरनेट को पूरी तरह बंद करने का सोमवार को आदेश दिया।इससे एक दिन पहले बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों और सत्तारूढ़ पार्टी के समर्थकों के बीच देश के विभिन्न हिस्सों में झड़प में 300 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। झड़पें रविवार की सुबह हुईं जब प्रदर्शनकारी ‘स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन’ के परचम तले आयोजित ‘असहयोग कार्यक्रम’ में भाग लेने पहुंचे। अवामी लीग, छात्र लीग और जुबो लीग के कार्यकर्ताओं ने उनका विरोध किया तथा फिर दोनों पक्षों के बीच झड़प हुई।नोबेल पुरस्कार विजेता और बांग्लादेशी अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस ने स्थिति पर अपनी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने विरोध प्रदर्शनों पर भारत की प्रतिक्रिया की भी आलोचना की है और चेतावनी दी है कि बांग्लादेश में अशांति पड़ोसी देशों तक फैल सकती है। पिछले महीने भारत ने बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शनों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इसे बांग्लादेश का घरेलू मुद्दा बताया और साप्ताहिक प्रेस ब्रीफिंग के दौरान कोई भी बयान देने से परहेज किया। यूनुस ने अब भारत के रुख पर अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि इस मुद्दे को घरेलू मामले के रूप में देखना निराशाजनक है। उन्होंने तर्क दिया कि अगर आपके भाई के घर में आग लगी है, तो इसे केवल उनका आंतरिक मुद्दा मानकर खारिज नहीं किया जा सकता। यूनुस ने इस बात पर जोर दिया कि 170 मिलियन की आबादी वाले बांग्लादेश में संघर्ष में काफी हिंसा और बिगड़ती कानून व्यवस्था शामिल है, और इसका निश्चित रूप से पड़ोसी देशों पर असर पड़ेगा। हालाँकि, गौर करने वाली बात ये भी है कि, बांग्लादेश में अक्सर अल्पसंख्यक हिन्दुओं को निशाना बनाए जाने की खबरें आती रहती हैं, लेकिन उन पर नोबल प्राइज विजेता मोहम्मद यूनुस की प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिलती। आज जब बांग्लादेश सरकार कह रही है कि, पाकिस्तानी साजिश से उनके देश में हिंसा भड़काई जा रही है और वो उसे रोकने का प्रयास कर रही है, तो यूनुस कह रहे हैं कि, भारत शेख हसीना सरकार की आलोचना करे। बता दें कि, यूनुस हसीना सरकार के मुखर आलोचक रहे हैं। शेख हसीना ने यूनुस पर गरीबों का शोषण करने का आरोप लगाया है, और वर्तमान में उन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं, जिनके बारे में उनके समर्थकों का दावा है कि वे राजनीति से प्रेरित हैं। यूनुस ने भारत से बांग्लादेश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया का समर्थन करने और चुनावों में पारदर्शिता की कमी के लिए बांग्लादेशी सरकार की आलोचना करने का आग्रह किया। असंवेदनशीलता को लेकर लगातार आक्रोशित होते गए, और अंततः प्रधानमंत्री हसीना के इस्तीफे की मांग करने लगे। विरोध प्रदर्शनों के जवाब में, बांग्लादेशी सरकार ने इंटरनेट बंद कर दिया है। चल रहे विरोध प्रदर्शन प्रधानमंत्री हसीना के 20 साल के कार्यकाल के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं। आलोचकों और मानवाधिकार समूहों ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अत्यधिक बल प्रयोग करने के लिए हसीना सरकार की निंदा की है, हालांकि सरकार इन आरोपों से इनकार करती है। बांग्लादेश में हिंसा को देखते हुए भारत सरकार ने अपने नागरिकों के लिए एक सलाह जारी की है, जिसमें उन्हें पड़ोसी देश की यात्रा करने से बचने की सलाह दी गई है। सलाह में वर्तमान में बांग्लादेश में मौजूद भारतीयों से अत्यधिक सावधानी बरतने, घर के अंदर रहने और आपातकालीन फोन नंबरों के माध्यम से ढाका में भारतीय उच्चायोग से संपर्क बनाए रखने का भी आग्रह किया गया है।लाठी-डंडे लिए लोगों को अस्पताल परिसर में निजी कार, एम्बुलेंस, मोटरसाइकिलों और बसों में तोड़फोड़ करते देखा गया, जिससे मरीजों, तीमारदारों, चिकित्सकों और अन्य कर्मियों में भय पैदा हो गया। प्रदर्शनकारियों ने हसीना के वार्ता के निमंत्रण को खारिज कर दिया और सरकार के इस्तीफे की मांग की। प्रदर्शन के समन्वयकों ने स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों, निजी विश्वविद्यालयों और मदरसों के छात्रों के साथ-साथ श्रमिकों, पेशेवरों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं और अन्य आम लोगों से विरोध प्रदर्शन में भाग लेने का आह्वान किया। सरकार विरोधी प्रदर्शनों के समन्वयक नाहिद इस्लाम ने घोषणा की है कि वे अपनी एक सूत्री मांग को लेकर सोमवार को प्रदर्शन और सामूहिक धरना देंगे। उन्होंने एक बयान में कहा कि सोमवार को वे आरक्षण सुधार आंदोलन के दौरान हाल ही में देश भर में मारे गए लोगों की याद में शहीद स्मारक पट्टिकाओं का अनावरण करेंगे। बांग्लादेश में हाल में पुलिस और मुख्य रूप से छात्र प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें देखने को मिली थीं जिसमें 200 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। प्रदर्शनकारी विवादास्पद आरक्षण प्रणाली को समाप्त करने की मांग कर रहे थे जिसके तहत 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में हिस्सा लेने वाले लड़ाकों के रिश्तेदारों को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया था। बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार ने एक गजट नोटिफिकेशन जारी करते हुए आतंकवाद विरोधी अधिनियम 2009 की धारा 18/1 के तहत कट्टरपंथी इस्लामी और पाकिस्तान के प्यादे जमात-ए-इस्लामी और उसके स्टूडेंट विंग ‘छात्र शिविर’ को आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया है।
बांग्लादेश सरकार का ये फैसला पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ा झटका है, जो इस संगठन के जरिए बांग्लादेश को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा था और जिसका मंसूदा देश में अराजक माहौल बनाकर शेख हसीना की सरकार को उखाड़ फेंकना था।
जमात-ए-इस्लामी आतंकी संगठन घोषित: रूस के प्रमुख दैनिक समाचार पत्र, रोसिस्काया गजेटा में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताहिक, जमात-ए-इस्लामी को आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया गया है और प्रतिबंधित किया गया है। बांग्लादेश के अधिकारियों ने 1 अगस्त 2024 को जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया और बांग्लादेशी गृह मंत्रालय ने इसकी पुष्टि भी कर दी है। जमात-ए-इस्लामी, छात्र शिविर और अन्य संबंधित संगठनों पर प्रतिबंध आतंकवाद निरोधक अधिनियम की धारा 18(1) के तहत एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से लगाया गया है। प्रतिबंध से पहले, कानून मंत्रालय ने अपनी कानूनी राय दी थी और फाइल गृह मंत्रालय को भेजी थी। इसके बाद, कानून मंत्री अनीसुल हक ने संवाददाताओं से कहा, कि ये समूह अब अपने मौजूदा नामों से राजनीति में शामिल नहीं हो सकेंगे। सरकार के मंत्री जमात और छात्र शिबिर पर बांग्लादेश में पिछड़े दिनों आरक्षण खत्म करने की मांग को लेकर भड़के आंदोलन में हिंसा भड़काने के लिए इस संगठन पर आरोप लगा रहे हैं। 29 जुलाई को अवामी लीग के नेतृत्व में 14-पार्टी गठबंधन के शीर्ष नेताओं ने अवामी लीग प्रमुख प्रधानमंत्री शेख हसीना की अध्यक्षता में एक बैठक के दौरान जमात और शिबिर पर प्रतिबंध लगाने पर सहमति जताई थी। इससे पहले 2013 में चुनाव आयोग ने अदालत के फैसले के बाद जमात का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया था। जिसपर जमात-ए-इस्लामी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और वहां से भी निराशा मिलने के बहाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की अपीलीय प्रभाग ने 19 नवंबर 2023 को जमात-ए-इस्लामी के रजिस्ट्रेशन रद्द करने के फैसले को बरकरार रखते हुए उसकी अपील को खारिज कर दिया।
पाकिस्तान का प्यादा है जमात-ए-इस्लामी: आपको बता दें, कि बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व वाली पहली सरकार ने देश की स्वतंत्रता का विरोध करने और पाकिस्तानी कब्जे वाली सेनाओं के साथ सहयोग करने में भूमिका को लेकर जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया था। बाद में, बंगबंधु की हत्या के बाद, सैन्य तानाशाह जनरल जियाउर रहमान ने इस संगठन से प्रतिबंध हटा दिया, जिससे जमात-ए-इस्लामी को देश में अपनी गतिविधियां फिर से शुरू करने में मदद मिली। जमात-ए-इस्लामी की स्थापना मुस्लिम ब्रदरहुड के नेता सैय्यद अबुल अला मौदूदी ने “इस्लामी विजय” और “दुनिया को इस्लाम के झंडे के नीचे लाने” के कुख्यात एजेंडे के साथ की थी। कुछ साल पहले, बांग्लादेश में अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने 1971 में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान JeI की भूमिका को पाकिस्तानी कब्जे वाली सेनाओं के एक सक्रिय समूह के रूप में वर्णित किया था।पाकिस्तानी सेना के सहायक बलों, जैसे कि रजाकार, अल-बद्र, अल-शम्स और शांति समिति के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिन्होंने बंगाली स्वतंत्रता सेनानियों, विशेष रूप से हिंदुओं के खिलाफ अत्याचारों में सक्रिय रूप से भाग लिया। JeI और उसके आतंकियों ने सैकड़ों हज़ारों हिंदू पुरुषों, महिलाओं और बच्चों का नरसंहार किया गया, जबकि बड़ी संख्या में हिंदू लड़कियों और महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया।।यहां यह जिक्र करना आवश्यक है, कि जमात-ए-इस्लामी पर भारत में भी प्रतिबंधित लगा हुआ है और 2003 से इसे रूसी ने भी आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया था। जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध की घोषणा करते हुए भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक ट्वीट में कहा था, कि “आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की जीरो टॉलरेंस की नीति का पालन करते हुए सरकार ने जमात-ए-इस्लामी, जम्मू कश्मीर पर प्रतिबंध को पांच साल के लिए बढ़ा दिया है। 1950 के दशक में, जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान ने एक उग्रवादी छात्र विंग, इस्लामी जनियत-ए-तलबा की शुरुआत की थी, जिसने कई शहरी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों पर नियंत्रण हासिल कर लिया, और ये अकसर हिंसक गतिविधियों में शामिल रहा करता था। जमात-ए-इस्लामी गाजा स्थित हमास और फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद सहित विभिन्न आतंकवादी संगठनों के साथ गहरे संबंध रखता है। यह मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ भी गहरे संबंध रखता है। यह खतरनाक इस्लामी आतंकवादी इकाई 1960 के दशक से यूरोप में मौजूद है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में भी इसकी मौजूदगी है।