कौन है छठी मैया, जिसकी पूजा में सूर्य की होती ही पूजा
अशोक झा, सिलीगुड़ी: दिवाली का पर्व खत्म हो चुका है और अब कुछ दिनों बाद छठ पूजा शुरू होने वाली है। चार दिनों के छठ महापर्व की शुरुआत नहाय-खास के साथ होती है। जिसे बिहार में सबसे ज्यादा मान्यता दी जाती है।इस व्रत में सूर्य भगवान को अर्घ दिया जाता है लेकिन उसका भी मुहूर्त होता है और उस शुभ मुहूर्त में ही भगवान सूर्य को अर्घ दी जाती है। कहा जाता है कि यह सूर्य उपासना का पर्व है और इस पर्व के करने से कई सारी रोगों से भी मुक्ति लोगों को मिल जाती है। कहा जाता है कि जो छठ व्रती खरना पूजा के नियमों का पालन करती हैं, उनकी सारी मनोकामनाएं छठी मैया पूरी करती हैं। मान्यता है इस दिन घर में छठी मैया का आगमन होता है। लेकिन ये बहुत कम लोग ही जानते हैं कि छठी मैया कौन थी और क्यों छठ पूजा में उनको पूजा जाता है। तो चलिए जानते हैं कि आखिर छठी मैया कौन थी। कौन है छठी मैया: माना जाता है कि छठी मैया सूर्य देव की बहन थी और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए ये महत्वपूर्ण व्रत किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि छठी माता की पूजा करने से साधक को आरोग्यता, वैभव और संतान सुख का आशीर्वाद मिलता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब ब्रह्मा जी ने पृथ्वी के साथ प्रकृति का भी निर्माण किया। देवी प्रकृति माता ने खुद को छह रूपों में विभाजित किया, जिसके छठे अंश को छठी मैया के रूप में जाना जाता है। वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार राजा प्रियंवद और पत्नी मालिनी की कोई संतान नहीं थी। इस बात से दुखी होकर दोनों संतान प्राप्ति की इच्छा लेकर ऋषि कश्यप के पास पहुंचे। तब ऋषि ने उन्हें संतान सुख पाने के लिए यज्ञ करने को कहा लेकिन उनका पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। राजा प्रियंवद ने पुत्र वियोग में प्राण त्यागने का फैसला लिया। तब छठी मैया प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति में छठे अंश से उत्पन्न हुईं हूं, इसलिए मैं षष्ठी कहलाऊंगी। क्यों की जाती है छठ पूजा: हिंदू धर्म के सभी त्योहारों और व्रतों में छठी मईया की पूजा सबसे कठिन और फलदायी मानी जाती है. ऐसा माना जाता है कि जो कोई भी व्यक्ति पूरी आस्था, भक्ति और विश्वास के साथ इस पर्व को मनाता है और 36 घंटे का व्रत रखता है, छठी मईया और भगवान सूर्य खुद उसके पुत्र और परिवार की लंबी आयु की रक्षा करते हैं। छठ पूजन सामग्रियों को सूप या दउरा में रखकर छठी घाट ले जाया जाता है। साथ ही छठी मईया की गीत भी गया जाता है। इस साल छठ पर्व 5 नवंबर से शुरू हो रहा है और समापन 8 नवंबर को होगा। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि छठ महापर्व में बांस के सूप या दउरा का क्या महत्व है। साथ ही बांस के सूप और दउरा का क्या मान्यता है। आइए इन सभी के बारे में विस्तार से जानते हैं।
क्यों किया जाता है छठ महापर्व: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छठ महापर्व संतान के लिए किया जाता है। छठ पर्व माने के पीछे एक बहुत ही बड़ा धार्मिक महत्व छिपा हुआ है। मान्यता है कि जो निसंतान महिलाएं छठ का व्रत रखती हैं उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही संतान की सेहत भी अच्छी हो जाती है। संतान के जीवन में किसी भी प्रकार की कोई परेशानियां नहीं आती हैं।
किसके लिए किया जाता है छठ महापर्व: दरअसल छठ महापर्व संतान के लिए ही किया जाता है। मान्यता है कि छठ महापर्व करने से संतान के जीवन में खुशहाली आती है। उनका जीवन प्रगति की ओर बढ़ता है। सेहत संबंधित सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं। धन-धान्य से जुड़ी सारी परेशानियां भी खत्म हो जाती हैं। छठ में क्यों किया जाता है बांस के सूप का प्रयोग:छठ पर्व में बांस के सूप का प्रयोग बहुत ही शुभ माना गया है। मान्यता है कि जिस तरह बांस का पौधा तेजी से बढ़ता है ठीक उसी तरह संतान की प्रगति होती है। मान्यता है कि छठ पूजा में बांस का प्रयोग करना बहुत ही जरूरी होता है। इसके बिना छठ पर्व की पूजा अधूरी मानी जाती है।
छठ पर्व की क्या है मान्यता: ज्योतिषियों के अनुसार, छठ पूजा में सूर्य देव को अर्घ्य देते समय बांस के सूप का इस्तेमाल किया जाता है। मान्यता है कि इस दौरान महिलाएं बांस से बने सूप, टोकरी या दउरा में फल और फूल आदि रखकर छठ घाट पर ले जाती हैं। छठ पर्व के दिन छठी मैया को सूप या टोकरी की सहायता से भेंट दी जाती हैं। छठ पूजा में बांस के सूप या टोकरी में पूजा करने से धन और संतान का सुख मिलता है।