सैर सपाटा : रोचेस्टर की डायरी 13 @ अब सुनिए अमेरिका में उस भूतिया रात की कहानी : Halloween

सैर सपाटा : रोचेस्टर की डायरी 13
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क्या भूत-प्रेत सच में होते हैं ? चुड़ैलें सिर्फ रोमांच पैदा करने वाली कहानियों का ही हिस्सा हैं या वास्तव में यह लोगों को डराती भी हैं ? इस तरह के अनेक प्रश्न आम लोगों के मन में जब- तब पैदा होते रहते हैं । कुछ इसे मानते हैं तो कुछ इसके अस्तित्व को ही सिरे से इनकार करते हैं। लेकिन मेरे लिए यह जानना काफी रोचक है कि अमेरिका जैसे विकसित देश में न केवल ऐसी अदृश्य शक्तियों में विश्वास किया जाता है बल्कि उनके लिए एक खास दिन भी मुकर्रर होता है । और वह दिन आत्माओं का होता है।
हर साल 31 अक्टूबर को हेलोविन त्यौहार के रूप में अमेरिका ही नहीं यूरोप के अनेक देशों में इसे बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है । इसे ऑल हेलोस इवनिंग, ऑल हेलोइन, ऑल हेलोव इव भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि धरती पर दो प्रकार के लोग रहते हैं।
एक दुनिया जीवित लोगों की होती है , दूसरी मृत लोगों की।
कई बार ऐसा होता है कि इन दोनों के बीच दूरियां खत्म हो जाती हैं। जिसके परिणाम स्वरूप मृत आत्माएं जीवित लोगों की दुनिया में चली आती हैं। यह आत्माएं लोगों को परेशान करती हैं।
यह भी कहा जाता है कि फसलों के मौसम में ये आत्माएं पृथ्वी पर आ आती हैं और किसानों का काफी नुकसान करती हैं । इसलिए इन्हें संतुष्ट रखने और आम लोगों से दूर रखने के लिए ही हेेलोविन नामक त्यौहार का जन्म होता है।
इस अवसर पर वह सब कुछ किया जाता है जिससे आत्माएं लोगों को परेशान न करें और मानव जाति की सुख- शांति बनी रहे। मुझे यह सब भारत में मनाए जाने वाले पितृपक्ष की तरह ही प्रतीत होता है।
पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए प्रक्रिया भले ही अलग-अलग हो परंतु सबका मकसद उनको हर तरह से संतुष्ट रखना लगता है। अर्थात पूर्वजों की आत्मा को शांति पहुंचाना समस्त क्रियाकलापों का मुख्य उद्देश्य है। ऐसा माना जाता है कि हेलोविन की शुरुआत आयरलैंड और स्कॉटलैंड से हुई है।
वैसे तो इसकी परंपरा हजारों साल पुरानी बताई जाती है। लेकिन हेेलोविन शब्द का पहली बार इस्तेमाल 16वीं शताब्दी में किया गया है।
यह सेल्टिक लोगों का त्योहार माना जाता है। हेलोविन का तात्पर्य होता है आत्माओं का दिन ।
हेलोविन में लोग घरों की सजावट करते हैं । लेकिन यह सजावट थोड़ा अलग किस्म की होती है। घर के बाहर एक बड़ा सा कद्दू रखा जाता है।
अक्सर नारंगी रंग में होने वाले कद्दू को अंदर से खोखला कर उसमें आंख और मुंह बनाया जाता है। बाहर से उसको डरावनी शक्ल दी जाती है । त्यौहार के बाद इसे दफना देने की परंपरा रही है ।
इनके अलावा भूत-प्रेत, कंकाल, चुड़ैल के पुतले लगाए जाते हैं । कुछ लोग जानवरों के पुतले भी सजाते हैं । यह सजावट प्रकाश आदि के जरिए इतनी आकर्षक होती है कि इसे देखने के लिए लोग घरों से बाहर शहर में निकलते हैं । बच्चों में सर्वाधिक उत्साह इन दिनों देखा जाता है। हालांकि हेलोविन को सजाने में बड़े भी पीछे नहीं रहते हैं।
मैंने खुद अपनी कॉलोनी में इसकी सजावट करते बुजुर्गों को भी देखा है। हेलोविन में खास तरह की ड्रेस पहनने का रिवाज है । लोग डरावने कपड़े पहनते हैं और भूत और चुड़ैल की पोशाक में सड़कों पर भी दिखाई पड़ते हैं । बच्चे भी तरह-तरह के कपड़े पहनते हैं ।
शाम को बच्चे कद्दू जैसे आकार का बैग लेकर अपने आसपास के घरों में जाते हैं । वहां लोग बच्चों को उपहार आदि देते हैं। घरों के सामने चॉकलेट आदि रखे जाते हैं । अभिवादन में हैप्पी हेलोविन बोलने की परंपरा है।
इस अवसर पर कुछ लोग डरावनी पोशाक पहनकर बच्चों को डराते हैं । उनको तरह-तरह से खुश करते हैं । इस रवायत को ट्रिक और ट्रीट कहा जाता है ।
घर के सामने डरावनी चीजें रखने और डरावनी पोशाक पहनने के पीछे यही मान्यता है कि बुरी आत्माएं घरों के आसपास फटकने न पाएं। ईसाई समुदाय के लोगों की मान्यता है कि भूत-प्रेत के कपड़ों में देखकर पूर्वजों की आत्माओं को शांति मिलती है और वह वापस लौट जाती हैं।
इस अवसर पर लालटेन भी जलाई जाती है । जिससे अच्छी आत्माओं को रास्ता दिखाया जा सके और बुरी आत्माएं प्रकाश के कारण वहां से डर कर चली जाएं। इस रात आग जलाई जाती है।
जिसमें मृत जानवरों की हड्डियां फेंकने की परंपरा है। यह सब इसलिए किया जाता है ताकि बुरी आत्माओं को आसपास पहुंचने से रोका जा सके।
सामान्य तौर पर अमेरिकी लोग बिल्लियों से बड़ा प्रेम करते हैं। बड़ी-बड़ी दुकानों पर बिल्लियों के लिए काफी महंगे सामान मैंने खुद देखा है । लेकिन जब बात हेलोविन की आती है , तब काली बिल्ली को उस दिन अशुभ मान लिया जाता है ।
माना जाता है कि काली बिल्ली को उस दिन न तो गोद में लेना चाहिए और न ही घर पर रखना चाहिए । उस दिन काली बिल्ली का रास्ता काटना भी अशुभ समझा जाता है । तब काली बिल्ली को शैतान का रूप मान लिया जाता है।
आजकल हेलोविन का धार्मिक स्वरूप धीरे-धीरे बदलता जा रहा है। अब लोग इसे मनोरंजन और मौज मस्ती के एक दिन के रूप में देखते हैं और बाजार इसे अवसर के रूप में ।
शहर के माल में , बड़ी-बड़ी दुकानों में महीनों पहले से इस अवसर पर पहने जाने वाले कपड़े , सजावट के सामान मंगा लिए जाते हैं ।
जब रोचेस्टर जैसे शहर में इस त्यौहार पर इतनी सजावट होती है , तो बड़े शहरों में तो इसका स्वरूप और भी व्यापक हो जाता होगा।
वैसे हेलोविन से जुड़ी परंपराओं को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि आजकल किन-किन रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है । हेलोविन पर तरह-तरह के व्यंजन बनाकर दोस्तों- रिश्तेदारों को पार्टी देने का भी प्रचलन है। कुछ लोग इस अवसर पर खेलों को भी जोड़ते हैं।
जैसे एक रोचक खेल यह भी है । जिसमें सेब को पानी के टब में रखा जाता है । फिर उसे प्रतिभागी दांत से पकड़कर बाहर निकालते हैं। कुछ और खेल भी हैं लेकिन उनकी चर्चा से इस आलेख का अनावश्यक विस्तार हो जाएगा।
इस त्यौहार को मनाने में हमारे परिवार की भी भागीदारी रही । शाम को रुक-रुक कर बरसात होने के बावजूद बच्चे तरह तरह की पोशाक पहने घर पर आते रहे और “हैप्पी हेलोविन” कहकर अपना गिफ्ट ले जाते रहे । चॉकलेट बॉक्स बाहर रखे होने के बाद भी बच्चे दरवाजा खटखटा कर बाहर बुलाते थे। वे चाहते तो बिना बताए भी ले जा सकते थे ।
रात में हम शहर की रौनक देखने के लिए भी निकले। इस अवसर पर एक स्थान पर लाइट और साउंड पर आधारित रोचक कार्यक्रम देखने को मिला। खुले मैदान में और ठंड की रात में इस कार्यक्रम को देखने के लिए काफी लोग एकत्र थे । भीड़ देखकर लगा कि पहले हेलोविन का चाहे जो भी धार्मिक स्वरूप रहा हो , लेकिन अब तो यह मनोरंजन और खुशियां मनाने का एक अवसर समझ में आता है। कैसी लगी यह भूतों वाली रात की पूरी कहानी।
क्रमश: …..-लेखक आशुतोष पाण्डेय अमर उजाला वाराणसी के सीनियर पत्रकार रहे हैं, इस समय वह अमेरिका घूम रहे हैं,उनके संग आप भी करिए दुनिया की सैर

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