भारी धातु से प्रभावित प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के संबंध में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की महत्वपूर्ण खोज

भारी धातु कैडमियम की बढ़ती सांद्रता/मात्रा के कारण सायनोबैक्टीरिया एवं पौधों में प्रकाश संश्लेषण पर पड़ रहा है प्रतिकूल प्रभाव

• काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एवं भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, परमाणु उर्जा विभाग, भारत सरकार, का संयुक्त शोध

वाराणसी: बढ़ती मानवीय गतिविधि यां, तेज औद्योगिकीकरण एवं आधुनिक कृषि पद्धतियों व प्रक्रियाओं (कीटनाशकों आदि का उपयोग) आदि के कारण विभिन्न परिस्थितिकीयों में भारी धातु जैसे कैडमियम की मात्रा में गुणात्मक वृद्धि हुई है। विशेषज्ञों की राय में यह प्रकाशसंश्लेषी जीवों पर बड़ा खतरा है क्योंकि प्रकाश संश्लेषण की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई भारी धातु के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती है। सरल शब्दों में कैडमियम की बढ़ती मात्रा फसलों के पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। लंबे समय में यह खाद्य-सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को और गंभीर कर सकता है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण पहले से ही बढ़ गई हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि सायनोबैक्टीरिया प्रकाश संश्लेषणी प्रोकैरियोट्स का एक महत्वपूर्ण वर्ग है जिसकी उत्पत्ति लगभग 2.6 अरब वर्ष पूर्व मानी जाती है, जब पर्यावरणीय परिस्थिति अत्यंत कठिन थी। यह सायनोबैक्टीरिया भारी धातु के प्रति तुलनात्मक रूप से प्रतिरोधी है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विज्ञान संस्थान के वनस्पति विभाग के शोधकर्ताओं ने इस संबंध में महत्वपूर्ण खोज की है।

डॉ. योगेश मिश्रा, सहायक आचार्य, के नेतृत्व में कार्य कर रहे शोध दल के सदस्य आकांक्षा श्रीवास्तव तथा शुभांकर विश्वास ने यह समझने की कोशिश की कि सायनोबैक्टीरिया भारी धातु की उपस्थिति में किस प्रकार प्रकाश संश्लेषण को बनाये रखता है। प्रकाश संश्लेषण के दौरान इलेक्ट्रांन का प्रवाह दो तरह से होता है- रैखिक व चक्रीय। कैडमियम की सांद्रता बढ़ने से रैखिक इलेक्ट्रांन प्रवाह प्रभावित होता है। शोध दल ने माँडल सायनोबैक्टीरिया ऐनाबीना पी0सी0सी0 7120 में अपने इस अध्ययन के दौरान पाया कि भारी धातु की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को बनाये रखने के लिए चक्रीय इलेक्ट्रांन प्रवाह सक्रिय रहता है जबकि रैखिक इलेक्ट्रांन प्रवाह प्रभावित करता होता है। शोध के परिणामस्वरूप यह भी ज्ञात हुआ लेक्सए (LexA) प्रोटीन प्रकाश संश्लेषण संबंधी प्रमुख जीनों को विनियमित करके इसके प्रतिक्रिया को नियंत्रित करता है। इस संबंध में यह अब तक की पहली ऐसी खोज है।

डॉ. योगेश मिश्रा ने कहा कि यह खोज वर्षों से किए गये एक विस्तृत अध्ययन का परिणाम है। इस श्रृंखला का यह नवीनतम शोध वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका बीबीए- प्रोटीन एंड प्रोटिओमिक्स (जनवरी, 2023) में प्रकाशित हुआ है। इस कार्य से भारी धातु विषाक्तता से जुड़े शोध के भविष्य में मार्ग प्रशस्त होने की उम्मीद है। डॉ मिश्रा ने बताया कि यह बेहतर प्रकाश संश्लेषण दक्षता के साथ तनाव सहिष्णु फसलों को विकसित करने में मदद कर सकता है जो अंततः खाद्य सुरक्षा की चुनौती से निपटने में मददगार साबित हो सकता है। इसके साथ ही हमारे प्रयोगों के निष्कर्ष बेहतर प्रकाश संश्लेषण क्षमता से युक्त संयोजक सायनोबैक्टीरिया के विकास के प्रति आशान्वित करता है।
श्रृंखला के पिछले कार्यों को प्रतिष्ठित सहकर्मी समीक्षित पत्रिकाओं यथा इनवायरोमेंटल एंड ऐक्सपेरिमेंटल बॉटनी (2022) तथा अल्गल रिसर्च (2021) में प्रकाशित किया गया था। परमाणु उर्जा विभाग, भारत सरकार, द्वारा वित्तपोषित यह अध्ययन बीएचयू एवं भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र के संयुक्त तत्वाधान में किया गया। अनुसंधान दल के अन्य सदस्यों में भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र के डॉ हेमा राजाराम व डॉ अरविन्द कुमार शामिल हैं।

डॉ योगेश मिश्रा के विषय मे-
डॉ. योगेश मिश्रा ने सन् 2008 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की तथा मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट, जर्मनी व उमिया प्लांट साइंस सेन्टर, स्वीडन में पोस्ट-डॉक्टरल फेलो के रूप में सन् 2008 से सन् 2013 तक कार्यरत रहे। नवम्बर 2015 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे सहायक प्राध्यापक के रूप में नियुक्ति होने के पूर्व डॉ. मिश्रा चंडीगढ़ विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत थे। उनकी रूचि का क्षेत्र सायनोबैक्टीरिया और पौधे का आण्विक तनाव जीव विज्ञान है।

अध्ययन के नतीजों का ऑनलाइन लिंकः
https://www.sciencedirect.com/science/article/pii/S157096392300016X?via%3Dihub

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