महामारियों से मानवता को मिली हैं भविष्य के लिए महत्वपूर्ण सीखें: प्रो0 चन्द्रिमा साहा

 

वाराणसी। प्रख्यात वैज्ञानिक तथा इण्डियन इंस्टीट्यूट आॅफ केमिकल बायोलाॅजी, कोलकता, में जे0सी0 बोस विशिष्ट चेयर प्रोफेसर प्रो0 चन्द्रिमा साहा ने कहा है कि यूं तो महामारियां मानव जाति के लिए अत्यन्त घातक व पीड़ादायी साबित हुई हैं लेकिन इसके साथ-साथ इन्होंने भविष्य के लिए महत्वपूर्ण सीखें भी दी हैं। प्रो0 साहा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित विज्ञान संस्थान द्वारा राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर आयोजित विशिष्ट व्याख्यान दे रही थीं। ‘‘महामारियां: मानव अस्तित्व पर प्रभाव’’ विषय पर व्याख्यान देते हुए प्रो0 साहा ने मानवता के इतिहास के सबसे भयावह महामारियों के दौर की चर्चा करते हुए चेचक, प्लेग, ब्लैक डेथ, स्पेनिश फ्लू, एड्स तथा मौजूदा कोविड-19 काल के महत्वपूर्ण पहलुओं को सामने रखा। उन्होंने बताया कि एक दौर वह था जब मानव जाति को जीवाणुओं, बैक्टीरिया व वायरस आदि के बारे में किसी तरह की कोई जानकारी नहीं थी लेकिन विज्ञान के निरन्तर प्रगतिमान होते रहने से आज आधुनिक अनुसंधान व चिकित्सा से महामारियों को पराजित करने की क्षमता विकसित की जा रही है। उन्होंने बताया कि मानव जाति और जीवाणुओं का विकास लगभग साथ-साथ ही होता रहा है। उन्होंने 14 वीं शताब्दी के आसपास यूरोप में महामारी से बचाव के लिए क्वारंटाइन तथा आइसोलेशन सुविधाओं के इस्तेमाल तथा चिकित्सकों द्वारा संक्रमण से बचाव के लिए पहने जाने वाले विशेष प्रकार के कपड़ों का जिक्र किया और बताया कि कैसे उस दौर में जब रोगाणुओं और संक्रमण के बारे में कोई ज्ञान उपलब्ध नहीं था तब भी ऐसे तरीके इस्तेमाल किये जा रहे थे, जिनका प्रयोग आज भी प्रभावी है, भले ही उनका स्वरूप परिवर्तित व विकसित क्यों न हो गया हो। उन्होंने बताया कि 17वीं व 18वीं शताब्दी के दौरान ही बैक्टीरिया के बारे में खोज हो पायी जिसके बाद इस क्षेत्र में शोध बढ़ते रहे और महामारियों से संघर्ष के लिए मानव जाति की तैयारी भी बेहतर होती रही। उन्होंने कहा कि जैविक युद्ध का हथियार भी समझे जाने वाली चेचक महामारी के संदर्भ में टीकाकरण और उन्मूलन सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक खोजों में मानी जा सकती है। उन्होंने यह भी बताया कि हर्ड इम्यूनिटी की अवधारणा भी चेचक के दौरान भी अस्तित्व में आयी। उन्होंने यह भी बताया कि प्राचीन काल में महामारियों का विस्तार व्यापार मार्गों में आवा-जाही के दौरान संक्रमण फैलने से हुआ। प्रो0 चन्द्रिमा साहा ने कहा कि इतिहास में फैली महामारियों के बारे में तीन तरीकों से महत्वपूर्ण जानकारी हासिल की जा सकती है और वो हैं-साहित्य, चित्रकला तथा ऐतिहासिक डीएनए की जांच। उन्होंने कहा कि महामारियों की बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह हम पर मानसिक और शारीरिक रूप से असर तो डालती ही हैं, हमारी जीन्स पर भी अपना प्रभाव छोड़ती हैं।
कोविड महामारी के संदर्भ में वैज्ञानिक प्रगति और उपलब्धियों की चर्चा करते हुए प्रो0 साहा ने बताया कि चाहे उत्तम गुणवत्ता के पीपीई किट हो या ड्रोन से दवाओं और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति, कृत्रिम बुद्धिमता का चिकित्सकीय जांच में प्रयोग हो या कामकाज को आॅनलाइन तरीके से करने की प्रौद्योगिकी का विकास, हमने देखा है कि सैकड़ों साल पहले फैली महामारियों के दौर से लेकर आज तक, विज्ञान ने हमें कहां से कहां तक पहुंचा दिया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय विज्ञान दिवस विज्ञान की इन्हीं महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक उपलब्धियों का जश्न मनाने का अवसर है।
उद्घाटन सम्बोधन देते हुए प्रो0 एस0एन0 सिंह, स्कूल आॅफ बायोटेक्नोलाॅजी, ने कहा कि विज्ञान दिवस भारतीय विज्ञान को वैश्विक स्तर पर प्रसिद्धि दिलाने का भी अवसर है।
भौतिकी विभाग में विशिष्ट आचार्य प्रो0 यशवन्त सिंह ने महान वैज्ञानिक व भौतिक शास्त्री सर सी0वी0 रमन व उनकी ऐतिहासिक खोज रमन प्रभाव पर प्रस्तुति दी,उन्होंने बताया कि कैसे सर सी0वी0 रमन ने स्वयं को विज्ञान व मानव जाति के हित के लिए समर्पित करते हुए कार्य किया।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो0 अनिल कुमार त्रिपाठी ने कहा कि प्रो0 साहा के व्याख्यान से विद्वार्थियों व उपस्थित श्रोताओं को महामारियों से जुड़े ऐसे तमाम पक्षों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई जिनसे वे अभी तक अनभिज्ञ थे।उन्होनंे कहा कि यह जानकारियां भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए प्रभावी समाधान खोजने हेतु भावी वैज्ञानिकों को महत्वपूर्ण दृष्टिकोण उपलब्ध कराएगी।
भौतिकी विभाग के प्रो0 आर0के0सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन प्रेषित किया। डाॅ0 अर्चना तिवारी ने कार्यक्रम का संचालन किया। विज्ञान संस्थान के विद्यार्थियों रितुराज, सक्षम, ओम, अनुष्का तथा अभिनन्दन ने कुलगीत की प्रस्तुती दी।

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