दार्जिलिंग से भाजपा लगाएगी चौका, राजू बिष्ट को मिला फिर से मौका

-अपने विरोधियों को पहुंचाया सीमा के पार, चुनावी मैदान में उनकी सेना है तैयार

सिलीगुड़ी : दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र का चुनाव दूसरे फेज यानि 26 अपैल को है। भाजपा यहां से चौका लगाने का मौका मिला है। टिकट को लेकर चल रहे रस्साकसी के बीच राजू बिष्ट अपने विरोधियों को विकास के पहाड़ पर सीमा के पार पहुंचाने में सफल हुए है। भाजपा की सूची जारी होते ही राजू बिष्ट के समर्थकों में जहां उत्साह और उमंग का माहौल है वही पार्टी कार्यकर्ताओं में काफी खुशी देखी जा रही है। पूर्वोत्तर भारत का प्रवेशद्वार सिलीगुड़ी शहर भी दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र में ही आता है जो कि पूरे उत्तर बंगाल की अघोषित राजधानी है। राजू बिष्ट के टिकट मिलने से ममता बनर्जी का सपना” दार्जिलिंग होगा अपना” पूरा हो पाना मुश्किल लगता है। जाएगा। राजू बिष्ट के टिकट मिलने से चर्चा होने लगी है की अब टीएमसी खेमा अपने चुनावी खर्च पर अंकुश लगाएगी। ऐसा है लोकसभा की वर्तमान स्थिति: उत्तर बंगाल राज्य या फिर यूं कह लें कि पूरे भारत में दार्जिलिंग लोकसभा सीट ही शायद इकलौती ऐसी सीट है जहां राष्ट्रीय दलों की दाल नहीं गलती है। मगर, आश्चर्य की बात यह है कि, इसका इतिहास देखें तो, एकाध बार छोड़ हर बार राष्ट्रीय दल ही इस सीट पर जीतते आए हैं।‌ इधर, हाल के दशक में यह सीट मानो भाजपा की सुनिश्चित सीट सी हो गई है, लेकिन भाजपा की अपनी बदौलत नहीं बल्कि दार्जिलिंग पहाड़ी क्षेत्र के दलों की ही बदौलत है।वर्ष 2009 में जसवंत सिंह, वर्ष 2014 में एसएस अहलूवालिया और वर्ष 2019 में राजू बिष्ट की जीत के साथ इस संसदीय क्षेत्र से भाजपा अपनी जीत की हैट्रिक लगा चुकी है। पर, अब आगे 2024 में नतीजा कुछ और भी हो सकता है। क्योंकि, अब समीकरण बहुत बदल चुके हैं। अहम है दार्जिलिंग लोकसभा सीट: दार्जिलिंग लोकसभा सीट पश्चिम बंगाल राज्य ही नहीं बल्कि पूरे भारत की एक बहुत ही अहम लोकसभा सीट है। इसलिए कि यहीं विश्व प्रसिद्ध पर्यटन केंद्र पहाड़ों की रानी दार्जिलिंग है। यहां यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे की ट्वॉय ट्रेन चलती है तो वहीं हसीन वादियों में उगने वाली दार्जिलिंग चाय का पूरी दुनिया में अपना ही जलवा है। देश-दुनिया से हमेशा लाखों की तादाद में सैलानियों का दार्जिलिंग आने-जाने का सिलसिला लगा रहता है। दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण है कि इसके गोरखा बहुल पहाड़ी क्षेत्र में 110 बरस से अधिक समय से अलग राज्य ‘गोरखालैंड’ की मांग होती आ रही है। भौगोलिक दृष्टि से भी न सिर्फ पश्चिम बंगाल बल्कि पूरे भारत के लिए दार्जिलिंग क्षेत्र का अपना अलग महत्व है। पूर्वी हिमालय में स्थित दार्जिलिंग क्षेत्र के पश्चिम में नेपाल का सबसे पूर्वी प्रांत, पूर्व में भूटान, उत्तर में भारतीय राज्य सिक्किम और सुदूर उत्तर में चीन का तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र स्थित है। वहीं, दार्जिलिंग जिले के दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में बांग्लादेश स्थित है।
दो ज़िले से ज़्यादा का एक लोकसभा सीट:
यूं तो आमतौर पर एक जिले में एक लोकसभा सीट होती है या फिर जिला बड़ा हो तो एक ही जिले में दो लोकसभा सीट भी होती है। मगर देश में यह अपने आप में अलग मामला है कि दार्जिलिंग लोकसभा सीट वर्तमान समय में दो जिलों और तीसरे ज़िले की एक विधानसभा क्षेत्र को मिलाकर बनी है। एक दार्जिलिंग जिला, दूसरा कालिम्पोंग जिला और तीसरा उत्तर दिनाजपुर ज़िले का चोपड़ा विधानसभा क्षेत्र। दरअसल, 14 फरवरी 2017 को दार्जिलिंग जिले का ही विभाजन कर कालिम्पोंग को पश्चिम बंगाल का 21वां जिला बना दिया गया। दार्जिलिंग सीट में पहाड़ी क्षेत्र से दो विधानसभा क्षेत्र दार्जिलिंग व कर्सियांग और इसी जिले के मैदानी इलाके से तीन विधानसभा क्षेत्र सिलीगुड़ी, माटीगाड़ा-नक्सलबाड़ी व फांसीदेवा शामिल हैं। वहीं, कालिम्पोंग जिले का एकमात्र विधानसभा क्षेत्र कालिम्पोंग भी दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र का ही हिस्सा है। 3149 वर्ग किलोमीटर में फैले दार्जिलिंग जिले की आबादी 18,46,823 और 1075.92 वर्ग किलोमीटर में फैले कालिम्पोंग जिले की आबादी 2,51,642 है।‌
अजब-गजब राजनीतिक समीकरण
दार्जिलिंग जिला व दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र का राजनीतिक समीकरण अजब-गजब है। वर्ष 2009, 2014 और 2019, लगातार तीन बार दार्जिलिंग लोकसभा सीट पर भाजपा की ही जीत हुई है। यहां तक कि वर्ष 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भी दार्जिलिंग जिले की सभी पांच विधानसभा सीटें भी भाजपा ने ही जीती। हालांकि, दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत पड़ने वाले कालिम्पोंग जिले की एकमात्र विधानसभा सीट कालिम्पोंग भाजपा नहीं जीत पाई। उस सीट पर बिनय तामंग गुट के गोरखा जन्मुक्ति मोर्चा (गोजमुमो) के उम्मीदवार रुदेन साडा लेप्चा विधायक निर्वाचित हुए। पर, बाद में वह अनित थापा के भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा में शामिल हो गए जो कि पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस समर्थित है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव और वर्ष 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव, दोनों में ही दार्जिलिंग जिला क्षेत्र में सर्वत्र भाजपा की ही एकतरफा जीत हुई। यहां तक कि राज्य की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और स्वयं पहाड़ी दल कोई गुल नहीं खिला पाए। मगर, भाजपा का यह विजय रथ अगले ही साल रुक गया और अब तक रुका ही हुआ है। वर्ष 2022 में हुए सिलीगुड़ी नगर निगम चुनाव और सिलीगुड़ी महकमा परिषद चुनाव दोनों में ही भाजपा चारों खाने चित्त हो गई। इन दोनों चुनावों में तृणमूल कांग्रेस की एकतरफा जीत हुई। वह भी इतिहास में पहली बार 2022 के चुनाव में ही ऐसा हुआ कि तृणमूल कांग्रेस ने सिलीगुड़ी नगर निगम और सिलीगुड़ी महकमा परिषद दोनों पर पूर्ण बहुमत से एकतरफा जीत हासिल की।इतना ही नहीं, वर्ष 2022 में ही हुए दार्जिलिंग नगर पालिका चुनाव और दार्जिलिंग पहाड़ी क्षेत्र के गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) चुनाव, दोनों में ही भाजपा का कमल नहीं खिल पाया। दार्जिलिंग नगर पालिका पर पहाड़ की एकदम नई उभरी, अजय एडवर्ड की ‘हाम्रो पार्टी’ की जीत हुई। वहीं, तृणमूल कांग्रेस समर्थित अनित थापा के भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा (BGPM) ने जीटीए पर कब्जा जमाया। हालांकि, बाद में दार्जिलिंग नगर पालिका पर भी BGPM ही काबिज़ हो गई। BGPM के सलाहकार गोपाल लामा को इस बार टीएमसी ने अपना उम्मीदवार बनाया है। वर्ष 2009 में जसवंत सिंह, वर्ष 2014 में एसएस अहलूवालिया और वर्ष 2019 में राजू बिष्ट की जीत के साथ इस संसदीय क्षेत्र से भाजपा अपनी जीत की हैट्रिक लगा चुकी है। पर, अब आगे 2024 में नतीजा कुछ और भी हो सकता है। क्योंकि, अब समीकरण बहुत बदल चुके हैं।अहम है दार्जिलिंग लोकसभा सीट
दार्जिलिंग लोकसभा सीट पश्चिम बंगाल राज्य ही नहीं बल्कि पूरे भारत की एक बहुत ही अहम लोकसभा सीट है। इसलिए कि यहीं विश्व प्रसिद्ध पर्यटन केंद्र पहाड़ों की रानी दार्जिलिंग है। यहां यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे की ट्वॉय ट्रेन चलती है तो वहीं हसीन वादियों में उगने वाली दार्जिलिंग चाय का पूरी दुनिया में अपना ही जलवा है।
2009 से बीजेपी के पास है दार्जिलिंग सीट: बीजेपी ने 2009, 2014 और 2019 में दार्जिलिंग लोकसभा सीट से जीत हासिल की थी. सबसे पहले जसवंत सिंह 2009 में दार्जिलिंग से बीजेपी के सांसद बने थे, उसके बाद 2014 में एस एस अहलूवालिया और 2019 में राजू बिष्ट सांसद बने। गोरखा समुदायों को आदिवासी दर्जा देने का वादा: 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान बीजेपी ने पहाड़ी इलाके के लिए एक स्थायी राजनीतिक समाधान खोजने और 11 गोरखा समुदायों को आदिवासी दर्जा देने का वादा किया था. भले ही बीजेपी ने परमानेंट सोल्यूशन को परिभाषित नहीं किया है, लेकिन पहाड़ी इलाकों में ज्यादातर लोगों ने इसकी व्याख्या गोरखालैंड राज्य के रूप में की है।’मैं चैन से नहीं बैठूंगा’:
बिष्ट ने कहा, “मैं लोगों को आश्वस्त करता हूं कि मैं यह सुनिश्चित करने के लिए अथक प्रयास कर रहा हूं कि हमारे क्षेत्र के लोगों को भी सम्मान और प्रतिष्ठा का जीवन मिल सके। जब तक हमारी सामूहिक आकांक्षाएं पूरी नहीं हो जातीं, मैं चैन से नहीं बैठूंगा।
बता दें कि सिक्किम के मुख्यमंत्री पी एस तमांग भी गोरखा समुदायों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने के लिए केंद्र से भी पैरवी कर रहे हैं. दिवासी दर्जे की मांग करने वाले 11 समुदायों में भुजेल, गुरुंग, मंगर, नेवार, जोगी, खास, राय, सुनुवर, थामी, यक्का (दीवान) और धिमल शामिल हैं।
पीएम मोदी को लिखा था पत्र
पिछले हफ्ते दार्जिलिंग से सभी 11 समुदायों के प्रतिनिधियों की एक टीम इस मांग को लेकर दिल्ली भी गई थी। अब देखना होगा कि अपने दूसरे कार्यकाल और मोदी के तीसरे कार्यकाल में गोरखा का सपना पूरा होता है या नहीं। रिपोर्ट अशोक झा

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