होली भू-सांस्कृतिक आस्था का नर्तन, दर्शन दिग्दर्शन

अशोक झा, सिलीगुड़ी: मौसम बदल रहा है और होली की मस्ती सब पर छाई है। चहुदिश, दिक्काल, लाल गुलाल, सबके गाल। एक मुट्ठी गुलाल आपके भी गाल। होली मधु विद्या का मधु प्रसाद है। यह लोक-महोत्सव है। भारत की भू-सांस्कृतिक आस्था का नर्तन, दर्शन दिग्दर्शन है। यहां लोक अभिव्यक्ति है, राष्ट्रीय एकत्व है और सांस्कृतिक समरसता है। लोक आनंद की अनुभूति है। होली सबकी प्रीति है, राष्ट्र की रीति है। भारत की उमंग और भारत के मन की रंग तरंग है। जब भी कोई होली का प्रसंग आता है तब राधा–कृष्ण की छवि आंखों के आगे आती है। ऐसी धारना ही बन चली है की यह त्योहार इसी युगल जोड़ी द्वारा प्रदत्त है। कई मायनो में यह सही भी है। परन्तु कुछ ऐसे भी लोग हैं जो सहज विश्वासी नहीं हैं। कई लोग इस बात को लेकर प्रमाण मांगते हैं कि किसी भी शास्त्र मे राधा–कृष्ण ने होली पर एक दूसरे पर रंग बरसाए थे ऐसा दृष्टांन्त बताएं। होली में किसी भी प्रकार का नशा करने का उल्लेख नहीं। फिर यह कुप्रथा कहां से आयी? होली आनंद का त्यौहार है और उसे इसी रूप मे मनाना चाहिए। लोकाचार मे लोग कभी पिचकारी से रंग डालते है अथवा गुलाल अबीर एक दूसरे के चेहरे पर मलते हैं। कहीं फाग गाया जाता है तो कहीं ढोलक कि थाप पर पैर थिरकने लगते हैं. ये है होली का वर्तमान स्वरुप। प्रकृति नित्य नूतन है। चिरन्तन और आनंदरस से परिपूर्ण। इसके अन्तःपुर में आनंदरस का महास्रोत है। भारतीय चिन्तन में इस स्रोत का नाम है-उत्स। उत्सव इसी आनंद रस का आपूरण है। नदियों के तट पर उत्सव और नृत्य। काल सबका नियंता है। भारतीय उत्सवों में प्रकृति और मुहूर्त की जुगुलबन्दी है। होली भारत के मन का सामूहिक उल्लास है। द्यावा-अंतरिक्ष मदनरस, आनंदरस और प्रीतिरस का वातायन। होली वसंतोत्सवों का चरम है और वसन्त है प्रकृति का अपनी परिपूर्णता में खिलना। प्रकृति सदाबहार नायिका है। प्रकृति में नियमबद्धता है। वैदिक ऋषियों ने सृष्टि के इस संविधान को ऋत कहा, ग्रीष्म, वर्षा, शिशिर, हेमंत, पतझड़ और बसंत इसी ऋत के ऋतु-रूप हैं। वसंत परिपूर्ण प्राकृतिक तरुणाई है। भारतीय उत्सवों का अन्तः प्रेरण यह भरी पूरी प्रकृति है। प्रकृति की अंग-अंग उमंग का नाम है वसंत। वसंत ऋतु राज है। पृथ्वी सगंधा है। सो फूलों से सुगंध उड़ती है, मरूद्गण इस सुगंध को दशों दिशाओं तक पहुंचाते हैं। धरती आकाश गंध आपूरित होते हैं। तिक्त नीम अशोक हो जाती है और बेहया हो जाती है मौलश्री। तब गुलाब रातरानी जैसी सुगंध देने लगता है और रातरानी कमलगंध में हहराती प्रीति। प्रकृति के सभी रूप रसवन्त हो जाते हैं। नदियां नर्तन करती हैं, झीले गीत गाती हैं, वनस्पतियां झूम उठती हैं। शरद् और ग्रीष्म गलमिलौवल करते हैं। पक्षी गीत गाते हैं। वे नियम बंधन में रहते हैं। लेकिन वसंत और होली में शास्त्रीयता का कोई बंधन नहीं। होली आनंद का अतिरेक है। अतिरेक प्रायः शास्त्रीय नहीं होता। होली में लोक अपने छन्द स्वयं गढ़ता है। ऊर्जा का अतिरेक उत्सव बनता है। मनुष्य की तरह समाज का भी मूल-उत्स होता है। भारतीय समाज का मूल-उत्स संस्कृति है। होली भारत का मधुरस है, मधुछन्द है, सामगान है, लोकनृत्य है और लोक संस्कृति का चरम है। भारतीय उत्सव है प्रकृति का प्रसाद। होली महाप्रसाद है। होली पूरे बरस भर की मधुऊर्जा है। परिपूर्ण उत्सव है। होली संपूर्ण मानव समाज को अंगांगी भाव से अंगीकृत करने का नेह निमंत्रण है। आधुनिक मानस विदेशी पर मोहित है, परदेशी रंग के कारण रंग में भंग है। नेह निमंत्रण है कि आओ चढ़ा ले रंग देशी कि रंग परदेशी उतर जाये। देश के उत्तर, दक्षिण और पूरब, पश्चिम होली सबकी प्यारी है। होली विश्ववारा हिन्दू संस्कृति का मनआनंद है। होली गीत गाता नृत्य मगन अध्यात्म है। धरती, आकाश, वन और सम्पूर्ण उपवन, का गीत, संगीत है। होली जाति, पंथ उम्र से परे जीवन्त महाउल्लास है। होली की तमाम कथाएं हैं। महाभारत में भविष्य पुराण का उल्लेख है। कथा के अनुसार कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि राजा रघु के पास ढोण्ढा राक्षसी की शिकायत हुई, यह बच्चों को तंग करती थी। रघु को ज्योतिषियों ने बताया कि शिव वरदान के अनुसार उसे खेलते बच्चों से डरना चाहिए। फाल्गुन पूर्णिमा को लोग-बच्चे हंसे, ताली बजाएं तीन बार अग्नि के चक्कर लगाएं, पूजा करें। गीत गायें। ऐसा ही किया गया, वह मर गयी। प्रहलाद की कथा दूसरी है। होली हजारों बरस प्राचीन राष्ट्र के सांस्कृतिक विकास का परिणाम है। इसके उत्सव ऋग्वेद में हैं। ऋग्वैदिक पूर्वज सृजनशील है। सृजनशीलता ही वैदिक ऋचांए कविताएं हैं। यहां मंत्रों के साथ संगीत और नृत्य भी है। रूप, रस, गंध, स्पर्श की अनुभूति से आनंद रस का अतिरेक छलकता है। यही आनंद उत्सव बनता है। ऋषि कवि अपने खेल में देवताओं को भी साझीदार बनाते है, वे मरूतों को उत्सव ‘क्रीडन्ति’ बताते हैं। सोम को घोड़े के समान खेलने वाला बताते हैं। लेकिन सूर्य और अग्नि बड़े देवता है। सूर्य ऋतुएं विभाजित करता है। होली आप सबको आनंदरस रंग से परिपूरित करे। रिपोर्ट अशोक झा

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