मणिपुर में हिंसा को लेकर लोगों का जीना हुआ मुश्किल, यहां ‘लाइफ अंडर कर्फ्यू’ की तरह
मणिपुर में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (एएफएसपीए) लागू करने की मांग
– कुकी उग्रवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग को लेकर मैतेई समुदाय ने हिंसक प्रदर्शन शुरू
बांग्लादेश बोर्डर से अशोक झा: शीतकालीन सत्र के पहले पूर्वोत्तर भारत का खूबसूरत प्रांत लगातार हिंसा के चपेट में है। विपक्ष इसको हवा देने में लगा है। मणिपुर में पिछले एक महीने में फिर से एकबार हिंसा भड़क उठी है। इस बीच मणिपुर विधानसभा के 10 कुकी विधायकों ने गुरुवार को मणिपुर में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (एएफएसपीए) लागू करने की मांग की है। एक संयुक्त बयान में, 10 कुकी विधायकों ने कहा, ”14 नवंबर, 2024 के आदेशों के अनुसार एएफएसपीए लगाने को लेकर वास्तव में शेष 13 पुलिस न्याय क्षेत्रों में अधिनियम का विस्तार करने के लिए तत्काल समीक्षा की आवश्यकता है।”उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पिछले साल तीन मई से मेइती द्वारा लूटे गए 6,000 से अधिक अत्याधुनिक हथियारों की बरामदगी के लिए पूरे राज्य में एएफएसपीए लागू किया जाना चाहिए क्योंकि हिंसा को रोकने के लिए यह लंबे समय से अपेक्षित कार्रवाई है। यही वजह है कि सरकार ने यहां कई इलाकों में कर्फ्यू लगा रखा है। कई जिलों में इंटरनेट सेवाएं बंद हैं। केंद्र सरकार यहां हालात कंट्रोल करने के लिए लगातार कोशिश कर रही है। पिछले दिनों यहां सुरक्षाबलों की संख्या बढ़ाई गई। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कई बड़े फैसले भी लिए, लेकिन हालात अब भी बेकाबू नजर आ रहे हैं। मणिपुर का मौजूदा हाल काफी खराब है। मणिपुर के मौजूदा हालात एक बार फिर पहले जैसे हैं। राज्य के कई इलाके हिंसा की चपेट में हैं। एक तरफ कुकी समुदाय के लोग अपनी मांग को लेकर हिंसा कर रहे हैं तो दूसरी तरफ मैतेई समुदाय एक ही परिवार के छह लोगों की हत्या के विरोध में सख्त कार्रवाई की मांग को लेकर सड़कों पर है। मणिपुर की ताजा हिंसा की शुरुआत जिरीबाम से हुई। पहले सुरक्षाबलों की चौकी पर कुकी उग्रवादियों ने हमला किया। जवाबी कार्रवाई में कुछ उग्रवादी मारे गए. इसके बाद इन्होंने 12 नवंबर 2024 को एक ही परिवार की तीन महिलाओं और तीन बच्चों को अगवा किया। बाद में इनके शव 16 नवंबर को असम-मणिपुर सीमा पर मिले, जिसके बाद कुकी उग्रवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग को लेकर मैतेई समुदाय ने हिंसक प्रदर्शन शुरू कर दिया। मणिपुर में स्थिति को कंट्रोल करने के लिए केंद्र सरकार ने सीएपीएफ की 50 और कंपनियां भेजने का फैसला किया है। इस तरह अब राज्य में सीएपीएफ की 268 कंपनियां तैनात हो जाएंगी. इनमें पांच हजार जवानों की संख्या और बढ़ जाएगी। इस तरह, राज्य के हिंसा प्रभावित इलाकों में जवानों की तैनाती की संख्या 26,800 हो जाएगी. इन 50 कंपनियों में सबसे बड़ी संख्या सीआरपीएफ की कंपनियों की होगी, जबकि बाकी कंपनियां बीएसएफ और अन्य सुरक्षाबलों की होंगी. जो अतिरिक्त 50 कंपनी यहां जाएगी उनमें अतिरिक्त 6500 अर्धसैनिक बल होंगे. यहां पहले से ही 40,000 केंद्रीय बल मौजूद हैं।प्रदर्शनकारियों ने जिरीबाम कस्बे में दो चर्च और तीन घरों में आग लगा दी. थांगमेइबंद में प्रदर्शनकारियों ने विधानसभा भवन से सिर्फ 200 मीटर की दूरी पर टायर जलाए।मणिपुर में हिंसा रोकने के लिए राज्य और केंद्र सरकार अलग-अलग कोशिशें कर रही हैं. राज्य सरकार ने हिंसा प्रभावित सात जिलों में अगले दो दिन तक इंटरनेट बंद करने का फैसला लिया है. यह आदेश 23 नवंबर तक के लिए है। मणिपुर हिंसा के चलते केंद्र सरकार ने 14 नवंबर को इंफाल वेस्ट, इंफाल ईस्ट, जीरोबाम, कांगपोकपी और बिश्नुपुर जिलों में सेकमाई, लामसांग, लामलाई, जीरीबाम, लीमखोंग और मोईरांग पुलिस थाना के अंतर्गत आते इलाकों में AFSPA लगाया था. मणिपुर की राजधानी इंफाल (पूर्व और पश्चिम), विष्णुपुर, थाउबल और काकचिंग जैसे जिलों में 16 नवंबर को अनिश्चित काल के लिए कर्फ्यू लगा दिया था नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने सीएम बीरेन सिंह को हटाने की मांग करते हुए रविवार (17 नवंबर 2024) को बीजेपी सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। इस बीच बीजेपी की मणिपुर इकाई में दरार मंगलवार (19 नवंबर2024) को और गहरी हो गई. 37 में से 19 बीजेपी विधायकों ने मंगलवार को हुई सीएम बीरेन सिंह की अध्यक्षता में हुई एनडीए की बैठक में हिस्सा नहीं लिया. इन विधायकों में दोनों समुदायों के नेता शामिल थे। मणिपुर के सीएमएन बीरेन सिंहने राज्य में हिंसा के लिए कांग्रेस और उनके नेता पी चिदंबरम को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा है, “जब वो तत्कालीन कांग्रेस सरकार में गृह मंत्री थे और ओकराम इबोबी सिंह (मणिपुर के) सीएम थे तो वो म्यांमार के जोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी के अध्यक्ष थांगलियानपाउ गुइते को मणिपुर लेकर आए थे. यह संगठन म्यांमार में प्रतिबंधित है। अशांति के बीच सिंह ने न्याय और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का वादा किया है, हालांकि उनके इस रुख के कारण कुकी-जो विधायकों और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम जैसे राजनीतिक नेताओं के साथ उनका टकराव हुआ है। मणिपुर के लोगों का कहना है कि इस बार की हिंसा पिछले साल की हिंसा से कहीं अधिक खतरनाक है। यह कहना सही होगा कि इस बार मणिपुर के हालात ‘युद्ध’ जैसे लग रहे हैं। हिंसा प्रभावित इलाकों में हर तरफ हथियारों से लैस केंद्रीय सशस्त्र बल दिखाई देते हैं। हिंसा करने वाले उपद्रवी भी आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं। लगता है जैसे कोई जंग चल रही हो। लोगों में कोविड के समय जैसा भय का माहौल बनता जा रहा है। लोग अपने घरों से बाहर निकलने में डर रहे हैं। जहां बच्चे खेलते हुए दिखाई देते थे, अब वहां सन्नाटा छाया रहता है। लोगों का कहना है कि मैतेई और कुकी समुदायों के बीच इस हिंसा का स्थायी निपटारा जरूरी हो गया है। इसमें राजनीतिक सकारात्मक सोच सबसे जरूरी है, तभी यहां समस्या का कोई समाधान निकल सकता है। वरना हालात कभी सामान्य तो कभी ऐसे ही चलते रहेंगे। इंफाल में रहने वाले हेओरोकचैम ए का कहना है कि मणिपुर में जिस तरह के हालात चल रहे हैं। उसे देखते हुए यहां ‘लाइफ अंडर कर्फ्यू’ की तरह ही हो गई है। लोगों के आने-जाने पर कर्फ्यू, इंटरनेट और डिजिटल सिस्टम पर कर्फ्यू। लोग अपने घरों से बाहर निकलते हुए डर रहे हैं। बड़े और वीआईपी लोगों को छोड़ दें तो इनके नीचे वाली कैटेगिरी के परिवारों में अगर किसी की मैतेई की पत्नी कुकी है और किसी कुकी की पत्नी मैतेई है, तो सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लोग अपनी-अपनी पत्नियों को उनके समुदाय में भेज रहे हैं। ताकि कम से कम अगर कहीं हिंसा हुई तो उनकी जिंदगी को तो कोई खतरा नहीं होगा। हिंसा रूकने पर यह वापस तो आ जाएंगी, लेकिन इस दौरान दोनों समुदाय के परिवार और इनके बच्चे बहुत सफर कर रहे हैं।मणिपुर हिंसा मामले में एक दूसरी मार्मिक पारिवारिक-सामाजिक समस्या भी सामने आने लगी है। इसमें जहां लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट गहराने लगा है। वहीं मैतेई और कुकी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली जिन महिलाओं की शादियां एक-दूसरे समुदाय में हुई हैं। हिंसा के दौरान वह महिलाएं अपने मैतेई और कुकी ससुराल को छोड़कर अपने-अपने समुदाय के मायके में जा रही हैं। मणिपुर के लोगों का कहना है कि इसमें ऐसा नहीं है कि वह नाराज होकर जा रही हैं, बल्कि उनके पति और ससुराल वाले ही उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ऐसा कर रहे हैं। इससे दोनों समुदायों के परिवार खासतौर से इनके बच्चे सफर कर रहे हैं।जिस जिरीबाम इलाके से मई 2023 के बाद अब फिर से हिंसा भड़की। वहां रहने वाली जानकी का कहना है कि डेली रूटीन सारा बिगड़ गया है। बिजनेस नहीं है, खाने-पीने की भी समस्या होने लगी है। लोग एक-दूसरे से मदद मांग कर घर चलाने पर मजबूर हो रहे हैं। कर्फ्यू में ढील मिलने के बावजूद आम लोग बेहद जरूरी काम के लिए बाहर निकल रहे हैं। बाहर इस बात का बड़ा खतरा है कि कब प्रदर्शनकारी भीड़ किसी को निशाना बना डाले। जहां मई 2023 से पहले तक मैतेई और कुकी के कितने ही लोगों के बीच पारिवारिक संबंध और दोस्ती थी। अब उनकी गर्माई कम होती दिखाई देने लगी है। इंटरनेट बंद होने का भी बड़ा फर्क पड़ रहा है। सोशल मीडिया ग्रुप पर बातचीत नहीं हो पा रही। उन्होंने यह भी बताया कि यहां पिछले कुछ समय से जो सरकारी राशन मिलता था, वह भी नहीं मिल रहा। दुकानें बहुत कम समय के लिए खोली जा रही हैं। यहीं मणिपुर की एक और महिला ने बताया कि उनके अंकल प्राइवेट बस के ड्राइवर हैं। वह मैतेई हैं। लेकिन समस्या यह है कि अब वह बस नहीं चला पा रहे, क्योंकि पहाड़ी इलाके कुकी बहुल हैं। और वहां बस ले जाना जिंदगी के साथ सीधा खिलवाड़ है। अब बस नहीं चला पाने की वजह से जो हर दिन का मेहनताना मिलता था, वह रूक गया है। इससे घर चला पाना बहुत मुश्किल हो रहा है।