म्यांमार से लगती भारतीय सीमा पर अब बाड़ लगाने का काम शुरू

सिलीगुड़ी: मणिपुर में पिछले एक हफ्ते से हिंसा की ताजा घटनाएं हो रही हैं। भाजपा शासित बीरेन सिंह की सरकार इसके लिए म्यांमार सीमा से आने वाले घुसपैठियों को जिम्मेदार बता रही है। उसने केंद्र सरकार से फौरन कदम उठाने को कहा। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण भारत-म्यांमार सीमा के बड़े हिस्से पर बाड़ लगाएगा और मणिपुर में 10 किमी के हिस्से में यह काम किया जा चुका है और सुरक्षा के लिए इस भाग को असम राइफल्स को सौंपा जा चुका है। भारत म्यांमार बॉर्डर पर आखिर मुक्त आवाजाही क्या है और इस पर अचानक सवाल क्यों उठ रहे हैं कि वहां बाड़ लगने से समस्या खत्म हो जाएगी। भारत और म्यांमार के बीच की सीमा चार राज्यों मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में 1,643 किमी तक फैली है। मुक्त आवाजाही व्यवस्था (फ्री मूवमेंट रिजीम- एफएमआर) दोनों देशों के बीच एक पारस्परिक रूप से सहमत व्यवस्था है जो दोनों तरफ सीमा पर रहने वाली जनजातियों को बिना वीजा के दूसरे देश के अंदर 16 किमी तक यात्रा करने की अनुमति देती है।कौन लाया था एफएमआर: एफएमआर को 2018 में नरेंद्र मोदी सरकार की एक्ट ईस्ट नीति के हिस्से के रूप में उस समय लागू किया गया था जब भारत और म्यांमार के बीच राजनयिक संबंध बढ़ रहे थे। दरअसल, एफएमआर को 2017 में ही लागू किया जाना था, लेकिन अगस्त में उभरे रोहिंग्या शरणार्थी संकट के कारण इसे टाल दिया गया था। यानी मुक्त आवाजाही व्यवस्था मोदी सरकार ने खुद लागू की थी और अब उसे बंद करने की बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को असम में की है। नॉर्थ ईस्ट राज्यों को लेकर अक्सर महत्वपूर्ण घोषणाएं असम से ही की जाती हैं। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा नॉर्थ ईस्ट की सलाह से मोदी सरकार नॉर्थ ईस्ट को लेकर फैसले लेती है। भारत और म्यांमार के बीच की सीमा का सीमांकन 1826 में अंग्रेजों द्वारा क्षेत्र में रहने वाले लोगों की राय लिए बिना किया गया था। सीमा ने प्रभावी ढंग से एक ही जातीयता और संस्कृति के लोगों को उनकी सहमति के बिना दो देशों में विभाजित कर दिया। वर्तमान आईएमबी यानी इंडिया म्यांमार बॉर्डर अंग्रेजों द्वारा खींची गई रेखा को दर्शाता है। लेकिन दोनों ओर की संस्कृतियां, धर्म एक जैसे हैं, उन्होंने इस सीमा को कभी माना ही नहीं। 2021 में लोकतांत्रिक सरकार को हटाकर सैन्य शासन स्थापित किए जाने के बाद लगातार गृह युद्ध की स्थिति बनी हुई है। हालांकि, सेना के सत्ता संभालने के बाद से ही लोकतंत्र समर्थकों द्वारा लगातार प्रतिरोध किया जाता रहा है, लेकिन अब कुछ सशस्त्र जातीय समूहों द्वारा सेना के खिलाफ मोर्चा खोल देने से सशस्त्र संघर्ष ने व्यापक रूप ले लिया है। इस संघर्ष की वजह से हजारों की संख्या में शरणार्थी सीमा पार करके भारत में प्रवेश कर चुके हैं। अब तो सशस्त्र विद्रोहियों से जान बचाने के लिये सैकड़ों सैनिक भी भारत में प्रवेश करने लगे हैं, जिन्हें वापस भेजने पर सहमति बन रही है। इन हालात को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय का कहना है कि म्यांमार से लगती भारतीय सीमा पर अब बाड़ लगायी जाएगी। हालांकि, पर्वतों व नदी वाले बेहद जटिल इलाके में बाड़ लगाना एक दुष्कर कार्य है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर यह कदम उठाना जरूरी हो गया है। पिछले अनुभव देखें तो बांग्लादेश सीमा पर बाड़ लगाने से कानून-व्यवस्था की स्थिति में खासा सुधार देखा गया है। दरअसल, म्यांमार से भारत के चार राज्यों अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड व मणिपुर की सीमा लगती है। यह सीमा करीब 1643 किलोमीटर लंबी है। इस समस्या का जटिल पक्ष यह है कि दोनों देशों के लोगों की आवाजाही निर्बाध रूप से जारी रहती है। जिसके लिये एक सीमित इलाके तक वीजा लेने की जरूरत नहीं होती। इतना ही नहीं, दोनों देशों के लोग एक-दूसरे के इलाके में हाट-बाजार करके घर वापस आ जाते हैं। इसके अलावा सीमा के दोनों तरफ रहने वाली आबादी के बीच गहरे सामाजिक व आर्थिक रिश्ते आज भी कायम हैं। ऐसे में बाड़ लगाने के प्रयासों का स्थानीय स्तर पर विरोध होने की आशंका है। यहां तक कि मिजोरम के मुख्यमंत्री भी इस फैसले से असहमति जता चुके हैं। लेकिन राष्ट्रीय हितों के मद्देनजर इस दिशा में कदम उठाये जाने की जरूरत है। लेकिन यह भी हकीकत है कि सशस्त्र विद्रोहियों व म्यांमार की सैन्य सरकार के बीच लगातार बढ़ते टकराव के चलते यह संकट आने वाले दिनों में और बढ़ने की आशंका है। जिसके चलते शरणार्थी संकट के बढ़ने के ही आसार हैं। हाल-फिलहाल विद्रोहियों के हमलों से बचने के लिये भारतीय सीमा में घुस आए सैकड़ों म्यामांरी सैनिकों को वापस भेजने की प्रक्रिया भी चल रही है। इस संकट को देखते हुए केंद्र सरकार मुक्त आवागमन की व्यवस्था को बदलने की बात कह रही है। दरअसल, सैन्य तख्ता पलट के बाद म्यांमार के तीन अल्पसंख्यक जनजातीय समूहों के विद्रोहियों द्वारा एकजुट होकर हमला करने से म्यांमारी सेना की मुश्किलें अधिक बढ़ गई हैं। यहां तक कि म्यांमार की सेना अपने देश के असंतुष्ट लोगों पर भी हवाई हमले तक कर रही है। जिसकी वजह से मिजोरम व मणिपुर की सीमा से लगते इलाकों में बड़ी संख्या में शरणार्थी पहुंच रहे हैं। बताया जा रहा है कि अकेले मिजोरम के सीमावर्ती इलाकों में लगाए गए शिविरों में शरणार्थियों की संख्या तीस हजार से अधिक हो चुकी है। निस्संदेह, अच्छे पड़ोसी के नाते भारत म्यांमार के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहता है, लेकिन अपने देश की चिंताओं को भी नजरअंदाज नहीं कर सकता। निस्संदेह, देश में शरणार्थियों के आने से भारतीय सीमावर्ती राज्यों के संसाधनों पर जन दबाव बढ़ेगा। इससे कालांतर कानून व्यवस्था की समस्या भी पैदा होगी। विगत में मणिपुर में जारी हिंसा में म्यामांर से आए चरमपंथी तत्वों की भूमिका की बात राज्य सरकार करती रही है। ऐसे में मुक्त आवाजाही समझौते पर पुनर्विचार करने का तार्किक आधार भी है। जिससे बिना वीजा के एक-दूसरे देश की सोलह किमी सीमा तक स्वतंत्र आवाजाही के समझौते पर नये सिरे से सोचने की जरूरत है। अन्यथा अवैध आप्रवासन की समस्या जटिल हो सकती है। ध्यान रखने वाली बात है कि देश में असम व पश्चिम बंगाल के कई विधानसभा क्षेत्रों में अवैध आप्रवासन से जनसंख्या का स्वरूप बदल चुका है। मणिपुर की हालिया हिंसा में भी घुसपैठियों की भूमिका की चर्चा होती रही है। निश्चय ही इस संकट की अनदेखी भू-राजनीतिक संकटों को बढ़ाने वाली साबित हो सकती है। रिपोर्ट अशोक झा

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