यूपी का रियल एस्टेट जीएसटी काउंसिल से चाहता है कई रियायत

यूपी के शो-विंडो में रियल एस्टेट से जुड़े कारोबारी जीएसटी दफ्तर से लेकर वित्त मंत्री से शनिवार को हो रही जीएसटी काउंसिल की बैठक में रियायत पर विचार को लेकर लगाई गुहार

नई दिल्ली। यूपी में जीएसटी चोरी को लेकर ताबड़तोड़ छापे भले थम गए हो लेकिन शनिवार का केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में होने वाली बैठक पर निगाह कारोबारियों की गड़ी हैं। यूपी के शो-विंडो में मौजूद रियल एस्टेट के कारोबारी नोएडा में जीएसटी दफ्तर से लेकर केंद्रीय वित्तमंत्री से जीएसटी को लेकर कई रियायतों को लेकर गुहार लगाई है। जीएसटी काउंसिल की शनिवार को होने वाली आनलाइन बैठक में कारोबारियों को क्या मिलेगा? इसका इंतजार करना होगा।
रियल एस्टेट से जुड़े कारोबारियों की संस्था क्रेडाई के एनसीआर अध्यक्ष व गौड़ ग्रुप के सीएमडी मनोज गौड़ ने वित्त मंत्री से अनुरोध किया है कि डेवलपर्स के पक्ष में जीएसटी को और ज्यादा प्रासंगिक बनाने के लिए जीएसटी काउंसिल में रियायत के कई बिंदुओं पर विचार करना चाहिए। उनका अनुरोध है जीएसटी काउंसिल को इनपुट टैक्स क्रेडिट के साथ 8% या 12% की पुरानी दर पर या इनपुट टैक्स क्रेडिट के बिना 1% या 5% की दर से कर की सुविधा देने पर विचार करना चाहिए। इसके साथ ही वह डेवलपर्स को परियोजना के हिसाब से जीएसटी की दर चुनने का विकल्प देने का भी अनुरोध किया है। वह चाहते हैं कि किफायती आवास इकाई के लिए बिक्री मूल्य की सीमा भूमि की कीमतों और महानगरीय व गैर-महानगरीय क्षेत्रों के लिए निर्माण की बढ़ी हुई लागत को देखते हुए बढ़ाई जाए। उनका कहना है कि रेरा के तहत परिभाषित कारपेट क्षेत्र वाली इकाई को फिर से परिभाषित किया जा सकता है, ‘जो महानगरीय क्षेत्रों में 90 वर्गमीटर और अन्यत्र 120 वर्गमीटर से अधिक नहीं है। जीएसटी आयुक्त से लेकर वित्त मंत्रालय तक भेजे अनुरोध में उन्होंने कहा कि लंबी अवधि के लीज को भूमि की बिक्री के समान व्यवहार में लाने के लिए उपयुक्त संशोधन करें। मालिकों को मुफ्त में सौंपे गए अपार्टमेंट पर जीएसटी देय नहीं होना चाहिए, जो घरों की कमी की आवश्यकता को पूरा करेगा।
महागुन ग्रुप के निदेशक अमित जैन का कहना है जीएसटी एक टैक्स कलेक्श्न के लिए एक बहुत अच्छा सिस्टम है मगर इसको थोड़ा और सरल बनाया जा सकता है। डेवलपर्स के लिए अगर इनपुट टैक्स क्रेडिट को 8 प्रतिशत या 12 प्रतिशत पर किया जाता है तो यह डेवलपर्स के लिए काफी मददगार हो सकता है।
मिगसन ग्रुप के एमडी यश मिगलानी का कहना है डेवलपर्स के लिए जीएसटी को फिर से परिभाषित करने की पहल जीएसटी कौंसिल द्वारा की जानी चाहिए। उनका कहना है जैसे रेरा के तहत निर्धारित कारपेट क्षेत्र वाली इकाई को फिर से परिभाषित कर सकते हैं जो कि महानगरीय क्षेत्र में 90 वर्गमीटर और अन्य क्षेत्र में 120 वर्गमीटर से अधिक नहीं है। अगर यह होता है तो डेवलपर्स को काफी राहत मिलेगी। क्रेडाई एनसीआर के संयुक्त सचिव निखिल हवेलिया का अनुरोध है डेवलपर्स के लिए जीएसटी काउंसिल में नए सिरे से विचार करके फिर से परिभाषित करना चाहिए ताकि कोरोना का जो असर बाजार पर पड़ा था उससे पूरी तरह उबरने में रियल एस्टेट कारोबारियों को मदद मिल सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button